अधिकार

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ashish kumar tripathi

29 Jul 20241 min read

Published in poetry

अधिकार

यह कैसा जीवन मेला है
अधिकार है पर प्यार नहीं
सब ओर जल से घिरा हुआ
जल है पर पेय जलधार नहीं
अधिकार है पर प्यार नहीं

खजूर पेड़ सा खड़ा हुआ
पथिक को तनिक विश्राम नहीं
किस काम में हूँ पड़ा हुआ,
सकाम हूँ निष्काम नहीं
अधिकार है पर प्यार नहीं

सशक्त हूँ मन शक्ति से
उद्देश्यों की बहुरक्ति से
सशक्त हूँ लाचार नहीं
फिर क्यों, फिर क्यों,
अधिकार है पर प्यार नहीं
संसार है पर सार नहीं,
अधिकार है पर प्यार नहीं।

 

रचयिता
आशीष कुमार त्रिपाठी “अलबेला”

 

 

 

 

 

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ashish kumar tripathi

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यह कैसा जीवन मेला है
अधिकार है पर प्यार नहीं
सब ओर जल से घिरा हुआ
जल है पर पेय जलधार नहीं
अधिकार है पर प्यार नहीं

खजूर पेड़ सा खड़ा हुआ
पथिक को तनिक विश्राम नहीं
किस काम में हूँ पड़ा हुआ,
सकाम हूँ निष्काम नहीं
अधिकार है पर प्यार नहीं

सशक्त हूँ मन शक्ति से
उद्देश्यों की बहुरक्ति से
सशक्त हूँ लाचार नहीं
फिर क्यों, फिर क्यों,
अधिकार है पर प्यार नहीं
संसार है पर सार नहीं,
अधिकार है पर प्यार नहीं।

 

रचयिता
आशीष कुमार त्रिपाठी “अलबेला”

 

 

 

 

 

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