दौड़

ये किस चीज़ की है दौड़ ? जो हमारे पास नहीं, पहले […]

ख़ूब हँसो

हँसो मुस्कुराओ, जी खोलकर खिलखिलों, इतना हँसो, की बैठे-बैठे ही गिर जाओ,

चाह

घडी़ की सुइयों सी चलती जिदंगी हर धूप हर छांव में ढलती […]

डर

यह डर ही तो है,जो सारे खेल रचाता है, यह डर ही […]

याद

कुछ तो बदल ही जाता है कोई भी पहले सा नहीं लगता […]

दुआ

हो रहा था ख्वाहिशों का बँटवारा मैंनें रहमत -ए-रब मांग ली।

मैं

हूँ भीड़ में शामिल मगर इसका हिस्सा नहीं ।

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