हृदय की विरह वेदना

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ashish kumar tripathi

17 Jul 20242 min read

Published in poetry

हृदय की विरह वेदना

हृदय जल रहा है विरह श्वास लेकर,
      कहो पास कैसे तुम्हारे मैं आउं |
हृदय की गली में मधुर स्वप्न सी,
      खड़ी मुस्कुराती ही तुमको मैं पाऊं |

हृदय जल रहा है विरह श्वास लेकर,
      कहो पास कैसे तुम्हारे मैं आऊँ |

वही रूपसी तुम भरी धूप में भी,
      वही कांच सी तुम घनी छाँव में भी |
निमंत्रण झुके नेत्र से तुम थीं देतीं,
      मूंदी सी पलकों से आवाज़ देतीं|
यही सोच कर मैं स्तब्ध पड़ा हूँ,
      वही सोच कर मैं निःशब्द पड़ा हूँ |

हृदय जल रहा है विरह श्वास लेकर,
      कहो पास कैसे तुम्हारे मैं आऊँ |

ना रत्नों से शोभा तुम्हारी बढ़ी है,
      न श्रृंगार से आभा ही बढ़ी है|
उसी रूप में तुम सदैव हो भाति,
      खिले मुख पर जब तुम केशों को लाती|

इसी ध्यान में है हृदय की जलन आज,
      इसी ध्यान में है मन में चुभन आज |
मन की चुभन को कैसे जताऊँ,
      समुद्रों परे तुम कैसे मैं आऊँ |

हृदय जल रहा है विरह श्वास लेकर,
      कहो पास कैसे तुम्हारे मैं आऊँ |
हृदय की गली में मधुर स्वप्न सी,
      खड़ी मुस्कुराती ही तुमको मैं पाऊं |

 

रचयिता :
आशीष कुमार त्रिपाठी “अलबेला”

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हृदय की विरह वेदना

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ashish kumar tripathi

17 Jul 20242 min read

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हृदय की विरह वेदना

हृदय जल रहा है विरह श्वास लेकर,
      कहो पास कैसे तुम्हारे मैं आउं |
हृदय की गली में मधुर स्वप्न सी,
      खड़ी मुस्कुराती ही तुमको मैं पाऊं |

हृदय जल रहा है विरह श्वास लेकर,
      कहो पास कैसे तुम्हारे मैं आऊँ |

वही रूपसी तुम भरी धूप में भी,
      वही कांच सी तुम घनी छाँव में भी |
निमंत्रण झुके नेत्र से तुम थीं देतीं,
      मूंदी सी पलकों से आवाज़ देतीं|
यही सोच कर मैं स्तब्ध पड़ा हूँ,
      वही सोच कर मैं निःशब्द पड़ा हूँ |

हृदय जल रहा है विरह श्वास लेकर,
      कहो पास कैसे तुम्हारे मैं आऊँ |

ना रत्नों से शोभा तुम्हारी बढ़ी है,
      न श्रृंगार से आभा ही बढ़ी है|
उसी रूप में तुम सदैव हो भाति,
      खिले मुख पर जब तुम केशों को लाती|

इसी ध्यान में है हृदय की जलन आज,
      इसी ध्यान में है मन में चुभन आज |
मन की चुभन को कैसे जताऊँ,
      समुद्रों परे तुम कैसे मैं आऊँ |

हृदय जल रहा है विरह श्वास लेकर,
      कहो पास कैसे तुम्हारे मैं आऊँ |
हृदय की गली में मधुर स्वप्न सी,
      खड़ी मुस्कुराती ही तुमको मैं पाऊं |

 

रचयिता :
आशीष कुमार त्रिपाठी “अलबेला”

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