
पुस्तक समीक्षा :’दून के पाँखी’ कवि दिनेश कुमार सिंह

पुस्तक समीक्षा :’दून के पाँखी’ कवि दिनेश कुमार सिंह
सारांश
‘दून के पाँखी’ दिनेश कुमार सिंह की इक्यावन कविताओं का संग्रह है, जिस में कवि ने जीवन और समाज के बारे में अपने अनुभव व्यक्त किए हैं। ‘दून के पाँखी’ का अर्थ है, घाटी के पक्षी, जो घाटी में उड़ते रहते हैं। यह कविताओं का संकलन भी उन पक्षियों की तरह, उन के विचारों को दर्शाता है।
लेखक के बारे में
दिनेश कुमार सिंह B.E (इलेक्ट्रॉनिक्स इंजीनियरिंग) और M. Tech (सॉफ्टवेयर इंजीनियरिंग ), और वर्तमान में टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज (TCS) में IT में कार्यरत हैं। अपने 25 वर्षों के IT करियर में, उन्होंने देश-विदेशों के विभिन्न सम्मेलनों में 50 से अधिक तकनीकी पत्र प्रकाशित किए हैं, अपनी व्यस्ता के मध्य, समय-समय पर उन्होंने अपनी कविताओं के माध्यम से अपने विचार व्यक्त किए। उनकी अनेक कविताएँ इंटरनेट पर विभिन्न साइटों पर उपलब्ध हैं। वर्ष 2021 में, उन्हें स्टोरीबेरीज़ (StoryBerrys) के स्टार लेखक पुरस्कार मिला।
पुस्तक समीक्षा
मुझे बेहद सुखद आश्चर्य हुआ, जब दिनेश ने मुझे अपनी पुस्तक ‘दून के पाँखी’ के प्रकाशन के बारे में बताया, और अधिक ख़ुशी हुई जब मुझे पुस्तक मिली। दिनेश स्टोरीबेरीज़ (StoryBerrys) के स्टार लेखक होने के नाते, मैं उनकी कविताएँ अक्सर पढ़ती हूँ। उनकी कवितायें पढ़ने में आसान, पर पाठकों को एक विचारोत्तेजक संदेश के साथ छोड़ देती हैं ।
दिनेश की कविताएँ उनके विचारों का प्रतिनिधित्व करती हैं, जो उनके मन में ‘दून की पांखी’ की तरह उड़ती रहती हैं। इस पुस्तक के लिए उन्होंने जिन 51 कविताओं का चयन किया है, वे उनकी अब तक की उनकी श्रेष्ठत्म कविताएँ हैं, वे जीवन और समाज के बारे में उनके अनुभवों से संबंधित विभिन्न विषयों पर हैं।
इस संकलन में स्पष्ट रूप से अपनी माँ के प्रति उनके प्रेम को महसूस किया जा सकता है। उन्होंने पुस्तक की प्रस्तावना अपनी माँ को समर्पित किया है, और 51 में से 5 कविताएँ उनकी माँ के लिए हैं। विशेष रूप से, ‘तू साथ नहीं है माँ’ पुस्तक की अंतिम कविता, जहाँ वे अपनी माँ से कहते है कि, ‘मेरे पास अब सब कुछ है, लेकिन तुम नहीं’, दिल को छू लेने वाली है।
उनकी कई कवितायें – अकेला, शून्य का पत्थर, कमज़ोर कहानी, तुम भी खो जाओगे, बुद्धा हो गया हूं, दिन भर के किस्से, सूखे रिश्ते, फासला, – दिल को छू जाने वाली हैं, उनके भीड़ में एकाकी होने का एहसास कराती हैं, हम सब इस एहसास से कभी ना कभी गुज़रें हैं। पर एक तरफ अगर, एकाकीपन की पीड़ा हैं तो कवितायें जैसे – दरवाज़ा, लड़ाई, दलदल, मन एक समुन्दर हैं, राह नई, सच जीत जायेगा – हिम्मत बढ़ाने वाली ।
अपने एकाकीपन को ‘धुंध’ में सरल शब्दों में व्यक्त करते हैं-
“अब तो लगता हैं कि
सबको विराम दे दूँ
और शुरू से शुरआत करूँ ।
बस इसी धुंध में फँसा हूँ,
मैं खुद को तलाश कर रहा हूँ। “
आगे ‘अकेला’ में बड़ी खूबसूरती से लिखते हैं-
“कोशिश कर रहा हूँ
मेल मिलाप की,
पर वह मिलना नहीं,
मुझें बदलना चाहते हैं।
ऐसी कोशिशों से मैं,
घबराता हूँ।”
‘कमजोर कहानी’ की यह पंक्तियाँ-
“इस घूमती धरती पर,
मैं भी घूम रहा हूँ।
अपने पुराने विचारों में,
नय रंगों का वहां भर रहा हूँ।
नाटक वहीँ, उसके पात्र वो ही,
और मैं नया लिखने का,
सिर्फ दम भरता रहा।”
दिनेश जी की शैली सरल और शब्दों को चयन जन-मानस की भाषा हैं, जो ‘ठंडी हवा का झोका’ सा महसूस होती हैं। ५१ कविताएँ, उनके जीवन के उन पलों को दर्शाते हैं, जो उन्होंने कविताओं में पिरो दिया। यह पल हम सब की ज़िन्दगी में आते है। इस कारण पाठक इन कविताओं से अपने आप को जुड़ा महसूस करते हैं।
हर कविता के साथ एक चित्र भी हैं जो कविता को और खूबसूरत बनाती हैं। प्रिंटिंग क्वालिटी बढ़िया हैं।
अगर आप कुछ अच्छा पढ़ना चाहतें हैं, तो ‘दून के पाँखी’ जरूर पढ़िए।
राखी सुनील कुमार
Book details
Publisher : Bhartiya Sahitya Sangrah भारतीय साहित्य संग्रह (1 January 2022)
Hardcover : 112 pages
ISBN-10 : 161301726X
ISBN-13 : 978-1613017265
Reading age : 10 years and up
Country of Origin : India
Watch Author Interview –
Comments (0)
Please login to share your comments.