
आगाज़
आगाज़
चल चलें एक नया आगाज़ करते हैं,
खुदसे दोस्ती की एक नई शुरुआत करते हैं।
छोड़ आते हैं पुराने ज़ख्मों को पीछे कहीं,
ख़ुद की एक नई पहचान बनाते हैं।
बाहर की दुनिया को छोड़,
अंदर की सैर कर आते हैं।
भूल ना पाए कोई भी हमें अब,
अपनी एक ऐसी छवि बनाते हैं।
अपने भी नाज़ करें अब ,
कुछ ऐसा काम कर आते हैं।
कागज के फूलों को छोड़,
हम अपना बग़ीचा सजाते हैं।
अपने नवीन विचारों से,
एक नई आस जगाते हैं।
चल बेरंग सी इस जिंदगी में,
भरे कुछ नये सुनहरे रंग।
मुस्कुराएं आज फिर से,
एक दूसरे के संग।
रचयिता स्वेता गुप्ता
Comments (0)
Please login to share your comments.