
बारीश की बूंदे
बारीश की बूंदे
बारीश की बूंदे
पड़ने लगी झमा झम,
उठी मिटटी से सौंधी खुसबू,
मौसम हो गया है सुहाना।
अब अपने -अपने घरो से
जल्दी – जल्दी बाहर आओ
न चलेगा कोई बहाना।
प्रकृति की ख़ूबसूरती
में लग गयें चार चाँद,
चारो ओर,
हरियाली ही हरियाली है छाई,
धुले धुले से पर्वतों के बीच,
बादलों ने ली अंगड़ाई,
वाह रे ऊपर वाले !!
तुमने भी प्रकृति क्या खूब रचाई !
रचयिता नम्रता गुप्ता
Comments (0)
Please login to share your comments.