बारीश की बूंदे

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namrata gupta

12 Aug 20241 min read

Published in poetry

बारीश की बूंदे

बारीश की बूंदे
पड़ने लगी झमा झम,
उठी मिटटी से सौंधी खुसबू,
मौसम हो गया है सुहाना।
अब अपने -अपने घरो से
जल्दी – जल्दी बाहर आओ
न चलेगा कोई बहाना।

प्रकृति की ख़ूबसूरती
में लग गयें चार चाँद,
चारो ओर,
हरियाली ही हरियाली है छाई,
धुले धुले से पर्वतों के बीच,
बादलों ने ली अंगड़ाई,
वाह रे ऊपर वाले !!
तुमने भी प्रकृति क्या खूब रचाई !

 

रचयिता नम्रता गुप्ता

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बारीश की बूंदे

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namrata gupta

12 Aug 20241 min read

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बारीश की बूंदे

बारीश की बूंदे
पड़ने लगी झमा झम,
उठी मिटटी से सौंधी खुसबू,
मौसम हो गया है सुहाना।
अब अपने -अपने घरो से
जल्दी – जल्दी बाहर आओ
न चलेगा कोई बहाना।

प्रकृति की ख़ूबसूरती
में लग गयें चार चाँद,
चारो ओर,
हरियाली ही हरियाली है छाई,
धुले धुले से पर्वतों के बीच,
बादलों ने ली अंगड़ाई,
वाह रे ऊपर वाले !!
तुमने भी प्रकृति क्या खूब रचाई !

 

रचयिता नम्रता गुप्ता

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