
खोल दो रास्ता
खोल दो रास्ता
खोल दो रास्ता की
टैंकर जाए,
अस्पतालों तक
ऑक्सीजन पहुंचाए
आन्दोलन की आड़ में
कहीं, कई घरों के
चिराग ना
बुझ जाए।
बात अपनी रखो,
समाधान का पर्याय ढूँढ़ो।
पर ज़िद और नासमझी में,
समय ना बीत जाए।
हर चुनौती में, यह समाज
खड़ा हुआ है,
हर मुश्किल से लड़ा है,
गुरूओं की ये पुरातन
परंपरा,
आज राजनीति का
शिकार न होने पाए।
खोल दो रास्ते की,
जिंदगी उससे
गुजरने पाए।
रचयिता-
दिनेश कुमार सिंह
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