मैं जब न रहूंगी

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meenu yatin

11 Aug 20241 min read

Published in poetry

मैं जब न रहूंगी

मैं जब न रहूंगी ,
मैं फिर भी रहूंगी 
जो तुम गुनगुनानते हो, अक्सर
उन तरानों में शायद।

कभी गीत सा ,
कभी गजल की तरह,
पाओगे मुझको
किताबों में शायद ।

तेरे दिल में उठते
उमड़ते -घुमड़ते
अधूरे सवालों के
पूरे जवाबों में शायद।

किसी दिन तुम्हारी
पुरानी डायरी के पन्नों में
सूखे हुए गुलाबों में शायद।

तुम्हारे होठों पे मुस्कान
लाने वाले ख्वाबों में शायद।
तुम्हारी हथेली को थामे हुए
कंधे पे तेरे सिर को टिकाए
जो हमने निभाए
उन वादों में शायद।

यूँ ही हँसते हँसते
भर आती हैं जो अकसर
उन प्यारी आँखों में शायद।
मैं जब न रहूंगी 
मैं फिर भी रहूंगी ।

 

मीनू यतिन

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मैं जब न रहूंगी

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meenu yatin

11 Aug 20241 min read

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मैं जब न रहूंगी

मैं जब न रहूंगी ,
मैं फिर भी रहूंगी 
जो तुम गुनगुनानते हो, अक्सर
उन तरानों में शायद।

कभी गीत सा ,
कभी गजल की तरह,
पाओगे मुझको
किताबों में शायद ।

तेरे दिल में उठते
उमड़ते -घुमड़ते
अधूरे सवालों के
पूरे जवाबों में शायद।

किसी दिन तुम्हारी
पुरानी डायरी के पन्नों में
सूखे हुए गुलाबों में शायद।

तुम्हारे होठों पे मुस्कान
लाने वाले ख्वाबों में शायद।
तुम्हारी हथेली को थामे हुए
कंधे पे तेरे सिर को टिकाए
जो हमने निभाए
उन वादों में शायद।

यूँ ही हँसते हँसते
भर आती हैं जो अकसर
उन प्यारी आँखों में शायद।
मैं जब न रहूंगी 
मैं फिर भी रहूंगी ।

 

मीनू यतिन

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