मैं अनाथ हूँ।

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धनेश परमार

28 Jul 20247 min read

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मैं अनाथ हूँ।

पवन ने सुबह-सुबह अपनी माँ को कहा, “मॉम, आज मेरी स्कूल में पेरेंट्स डे (parents day) है, आप आओगी या पापा ? ग्यारह बजे आना है, डायरी में लिखकर दीजिए कौन आने वाला है।”

पवन यानि भूमि और भूषण का एक मात्र पुत्र। शहर की ख्याति प्राप्त अंग्रेजी माध्यम की स्कूल की चौथी कक्षा में पढ़ता है। स्कूल जितना महँगा उसके कार्यक्रम भी ज्यादा। हर रोज किसी न किसी प्रवृत्ति होती है और आज पेरेंट्स डे यानि माँ या पापा दोनों में से किसी एक को तो जाना ही पड़ेगा। लेकिन पवन के घर में विकट प्रश्न था क्योंकि भूमि स्कूल टीचर थी और दोपहर के समय उन्हें स्कूल जाना होता है, और भूषण को सुबह 9 बजे से ऑफिस पहुँचना होता है।

पवन के दैनंदिन कार्य आने से माहौल गर्म हो जाता है।

भूषण ने ठंडे स्वर से कहा, “तेरी मॉम ही आएगी, बेटा। वह अकेली ही इस घर में बुद्धिमान है।”

इतना सुनते ही भूमि झल्लाई, “नहीं-नहीं, हम तो रहे गँवार। तेरे डेड ही आएंगे, बड़े अफसर जो है। वे अच्छा बोल सकते हैं।”

पवन रोने जैसा हो गया और बोला, “चलो आज भी कोई नहीं आएगा।” और धीरे कदमों से स्कूल की ओर चल दिया।

उनके जाने के बाद भी भूषण और भूमि के इंटेलीजेंट संवाद चलते रहे और भूषण गया तब तक जारी रहे। शाम वापस आने तक युद्धविराम रहा।

शाम 7 बजे डिनर टेबल पर पवन ने रोती आवाज में कहा, “आप क्यों नहीं आए ? मुझे आज पनिशमेंट (punishment) मिली। सबके मॉम-डेड आते हैं।”

भूषण ने कहा, “भूमि तुम हद करती हो। तुम्हें एक-आध घंटा तो पवन के लिए निकालना ही चाहिए। तुम इतनी लापरवाह रहो ऐसा कैसे चलेगा, पवन के भविष्य का सवाल है।”

भूमि तुरंत बोली, “आपको पवन की इतनी परवाह है तो आप क्यों नहीं जाते ?”

भूषण ने कहा,” मुझे कहाँ समय मिलता है ?”

भूमि फिर व्यंग्य में बोली, “हाँ जी, आपको समय कहाँ से मिले ? निठल्ली तो मैं बैठी हूँ न। सुबह-शाम रसोई करती हूँ, घर का काम करती हूँ और नौकरी करने के साथ-साथ पवन को होम-वर्क भी कराती हूँ। फिर भी फुरसत में हूँ।”

भूषण ने समझाने के सूर में कहा, “देखो भूमि, घर पहला, तुम्हें जाना चाहिए था।”

पर भूमि ज्यादा भड़क गई, मैं भी वही कहती हूँ कि घर पहला, आपको घर में मदद करनी चाहिए। मैं अकेली थक जाती हूँ।”

अत: भूषण और चिड़ गया, बोला, “माँ -बाप ने कुछ काम करवाया ही नहीं है, इसलिए तीन लोगों का काम करते थक जाती हो। मेरी माँ को देखो, आज भी गाँव में पाँच-पचीस लोगों को खिलाती है।”

“वो तो आपकी माँ ने नौकरी नहीं की है।” भूमि भी कुछ कम नहीं थी।

भूषण और भूमि का झगडा पवन की बात से एक-दूसरे के माँ-बाप तक पहुँच गया और बरतन की खड़खड़ाहट के साथ बंद हुआ।

 

भूषण और भूमि के ग्यारह साल के वैवाहिक जीवन के कई उतार-चढ़ाव आए लेकिन पिछले दो-तीन वर्षों से दोनों के बीच बात कम और विवाद ज्यादा होता था। दोनों को पवन की चिंता थी, लेकिन उनको लेकर ही झगडे बढ़ने लगे थे। घर मानो कि खाने-पीने का और झगडने का स्थल बन गया है। पवन का कोमल मन इन बातों से ऊबता, थकता और निराश होता था। शुरूआत में पवन की देखभाल के लिए दादी माँ आई थी जो उन्हें पसंद था लेकिन उन्होनें देखा कि दादी के कारण झगडे बढ़ गए थे। और इसके चलते दादी भी गाँव में रहना पसंद करने लगी, अकेला रहने के अलावा उनके पास कोई उपाय नहीं था।

भूषण और भूमि दोनों पवन को खूब स्नेह करते और दोनों पवन को अपने पक्ष में करने के लिए प्रयत्नशील रहते थे । एक-दूसरे की अनुपस्थिति में दोनों पवन को पूछते कि तुझें मॉम पसंद है या डेड? पवन दोनों को सत्य ही कहता। भूमि को कहता कि जब आप मुझे प्यार करती हो तो मुझे अच्छी लगती हो। मेरे साथ होम-वर्क करते समय, नए कपड़े लाने पर, गार्डन में ले जाने पर, आप कैसी प्यारी मॉम हो। लेकिन स्विमिंग पूल में रेस करने की डेड के साथ मजा आती है। क्रिकेट खेलना आपको कहाँ आता है ? इसमें तो डेड ही चाहिए, बाईक पर बैठकर झू……मममम करते रेस करने की मजा तो डेड के साथ ही आती है न? और जब डेड पूछते तो कहता, आपके साथ खेलने की, स्विमिंग, रेसिंग करने की मजा आती है, लेकिन रात को डर लगता है तब प्यार करते हुए मॉम के साथ ही सोना पड़ता है न ? होम-वर्क करने के लिए तो मॉम ही चाहिए। आप तो चीड़ जाते हो, सुताई करते हो।

फिर भी दोनों को विश्वास था की पवन सिर्फ उन्हें ही चाहता है। फिर भी यह चाहत उनके झगडे नहीं रोक पाई। दोनों के अहम टकराते रहे और झगडे बढ़ते रहे। इससे ऊबने पर बात तलाक तक पहुँच गई। कोर्ट में केस दाखिल हो गया और कोर्ट के चक्कर भी शुरू हो गए।

पवन को तो वैसे देखा जाए तो खुश होना चाहिए क्योंकि जब से तलाक का केस शुरू हुआ है तब से उनके मान-पान बढ़ गए हैं और मॉम-डेड दोनों उन्हें अपनी ओर करने के प्रयास करते थे । फिर भी उनका निर्दोष बाल मन इस मनौती के पीछे की व्यूह रचना समझने पर निराश हो जाता था। स्कूल में उनका एक मित्र था यथार्थ।

पवन ने यथार्थ को पूछा, “यथार्थ, तेरे मॉम-डेड झगडते हैं ?”

यथार्थ ने कहा, “मेरे तो मॉम-डेड ही नहीं है, मैं तो अनाथाश्रम में रहता हूँ। एक भले अंकल मेरी फीस भरते है और इसलिए मैं इस स्कूल में पढ़ पा रहा हूँ।”

पवन ने यथार्थ से प्रश्न किया कि “क्या अनाथाश्रम में कोई झगडता है ?”

यथार्थ ने कहा, “नहीं, वहाँ तो लड़ने पर दंड देते हैं, वहाँ झगडा नहीं कर सकते।”

पवन ने कहा, “तुम मुझे वहाँ ले जाओगे ?”

यथार्थ ने कहा, नहीं, वहाँ तो जिसके मा-बाप नहीं है वो ही रहते हैं। इसे अनाथ कहते हैं। तु तो नसीबवाला है, तुम्हारे पास तो माँ और बाप दोनों हैं।”

पवन सोचता रहा कि कौन नसीबवाला है – वह या यथार्थ ?

आखिरकार कोर्ट के फैसले का दिन आ ही गया। आज पवन को मॉम और डेड दोनों की ओर से रिश्वत दी जा रही थी। चोकलेट, खिलौने, आदि। लेकिन फिर भी पवन का झुकाव किस की ओर है वो जानने में वे अक्षम थे। भूमि सोचती थी कि मानो कि पवन कोर्ट में उनके डेड के साथ जाऊँगा कहेगा तो ? दूसरी ओर भूषण को भी वही चिंता थी कि फैसला भूमि के पक्ष में गया तो ?

न्यायाधीश ने प्रश्न किया, “बेटा, पवन, तुझें किसके साथ रहना है ?”

पवन ने दो-तीन मिनट सोचा, सबकी निगाहें उन पर थी। पवन धीरे से बोला, “मुझे अनाथाश्रम जाना है। मुझे वहाँ भेज दो।”

न्यायाधीश ने कहा, “तेरे तो माँ और बाप दोनों ही है। दोनों में से किसी एक के साथ आराम से रहो और बोलो किसके पास रहना है?

पवन ने पूछा, “आप मॉम और डेड को तलाक दिलवाओगे न ? अब मॉम डेड की पत्नी है ? और डेड मॉम के पति है ?”

न्यायाधीश के नकार में गर्दन घुमाने पर पवन ने कहा, “तो फिर वे दोनों मेरे मॉम और डेड नहीं है। अब मैं अनाथ हूँ। इसलिए मुझे अनाथाश्रम में जाना है, जहाँ कोई लड़ता नहीं है, कोई ऊँची आवाज में खीजता नहीं है। मुझे अनाथाश्रम में छोड़ दो।”

कोर्ट में सन्नाटा सा छा गया।

पवन की दादीमाँ धीरे से बोली , “मैं खोल रही हूँ अनाथाश्रम, जिस कोई माँ-बाप अपने जीते जी ही संतानों को अनाथ बना देते हैं उन्हें नम्र विनती, मेरा अनाथाश्रम उनके संतानों के लिए सदैव खुला है।”

 

धनेश रा. परमार

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मैं अनाथ हूँ।

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धनेश परमार

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मैं अनाथ हूँ।

पवन ने सुबह-सुबह अपनी माँ को कहा, “मॉम, आज मेरी स्कूल में पेरेंट्स डे (parents day) है, आप आओगी या पापा ? ग्यारह बजे आना है, डायरी में लिखकर दीजिए कौन आने वाला है।”

पवन यानि भूमि और भूषण का एक मात्र पुत्र। शहर की ख्याति प्राप्त अंग्रेजी माध्यम की स्कूल की चौथी कक्षा में पढ़ता है। स्कूल जितना महँगा उसके कार्यक्रम भी ज्यादा। हर रोज किसी न किसी प्रवृत्ति होती है और आज पेरेंट्स डे यानि माँ या पापा दोनों में से किसी एक को तो जाना ही पड़ेगा। लेकिन पवन के घर में विकट प्रश्न था क्योंकि भूमि स्कूल टीचर थी और दोपहर के समय उन्हें स्कूल जाना होता है, और भूषण को सुबह 9 बजे से ऑफिस पहुँचना होता है।

पवन के दैनंदिन कार्य आने से माहौल गर्म हो जाता है।

भूषण ने ठंडे स्वर से कहा, “तेरी मॉम ही आएगी, बेटा। वह अकेली ही इस घर में बुद्धिमान है।”

इतना सुनते ही भूमि झल्लाई, “नहीं-नहीं, हम तो रहे गँवार। तेरे डेड ही आएंगे, बड़े अफसर जो है। वे अच्छा बोल सकते हैं।”

पवन रोने जैसा हो गया और बोला, “चलो आज भी कोई नहीं आएगा।” और धीरे कदमों से स्कूल की ओर चल दिया।

उनके जाने के बाद भी भूषण और भूमि के इंटेलीजेंट संवाद चलते रहे और भूषण गया तब तक जारी रहे। शाम वापस आने तक युद्धविराम रहा।

शाम 7 बजे डिनर टेबल पर पवन ने रोती आवाज में कहा, “आप क्यों नहीं आए ? मुझे आज पनिशमेंट (punishment) मिली। सबके मॉम-डेड आते हैं।”

भूषण ने कहा, “भूमि तुम हद करती हो। तुम्हें एक-आध घंटा तो पवन के लिए निकालना ही चाहिए। तुम इतनी लापरवाह रहो ऐसा कैसे चलेगा, पवन के भविष्य का सवाल है।”

भूमि तुरंत बोली, “आपको पवन की इतनी परवाह है तो आप क्यों नहीं जाते ?”

भूषण ने कहा,” मुझे कहाँ समय मिलता है ?”

भूमि फिर व्यंग्य में बोली, “हाँ जी, आपको समय कहाँ से मिले ? निठल्ली तो मैं बैठी हूँ न। सुबह-शाम रसोई करती हूँ, घर का काम करती हूँ और नौकरी करने के साथ-साथ पवन को होम-वर्क भी कराती हूँ। फिर भी फुरसत में हूँ।”

भूषण ने समझाने के सूर में कहा, “देखो भूमि, घर पहला, तुम्हें जाना चाहिए था।”

पर भूमि ज्यादा भड़क गई, मैं भी वही कहती हूँ कि घर पहला, आपको घर में मदद करनी चाहिए। मैं अकेली थक जाती हूँ।”

अत: भूषण और चिड़ गया, बोला, “माँ -बाप ने कुछ काम करवाया ही नहीं है, इसलिए तीन लोगों का काम करते थक जाती हो। मेरी माँ को देखो, आज भी गाँव में पाँच-पचीस लोगों को खिलाती है।”

“वो तो आपकी माँ ने नौकरी नहीं की है।” भूमि भी कुछ कम नहीं थी।

भूषण और भूमि का झगडा पवन की बात से एक-दूसरे के माँ-बाप तक पहुँच गया और बरतन की खड़खड़ाहट के साथ बंद हुआ।

 

भूषण और भूमि के ग्यारह साल के वैवाहिक जीवन के कई उतार-चढ़ाव आए लेकिन पिछले दो-तीन वर्षों से दोनों के बीच बात कम और विवाद ज्यादा होता था। दोनों को पवन की चिंता थी, लेकिन उनको लेकर ही झगडे बढ़ने लगे थे। घर मानो कि खाने-पीने का और झगडने का स्थल बन गया है। पवन का कोमल मन इन बातों से ऊबता, थकता और निराश होता था। शुरूआत में पवन की देखभाल के लिए दादी माँ आई थी जो उन्हें पसंद था लेकिन उन्होनें देखा कि दादी के कारण झगडे बढ़ गए थे। और इसके चलते दादी भी गाँव में रहना पसंद करने लगी, अकेला रहने के अलावा उनके पास कोई उपाय नहीं था।

भूषण और भूमि दोनों पवन को खूब स्नेह करते और दोनों पवन को अपने पक्ष में करने के लिए प्रयत्नशील रहते थे । एक-दूसरे की अनुपस्थिति में दोनों पवन को पूछते कि तुझें मॉम पसंद है या डेड? पवन दोनों को सत्य ही कहता। भूमि को कहता कि जब आप मुझे प्यार करती हो तो मुझे अच्छी लगती हो। मेरे साथ होम-वर्क करते समय, नए कपड़े लाने पर, गार्डन में ले जाने पर, आप कैसी प्यारी मॉम हो। लेकिन स्विमिंग पूल में रेस करने की डेड के साथ मजा आती है। क्रिकेट खेलना आपको कहाँ आता है ? इसमें तो डेड ही चाहिए, बाईक पर बैठकर झू……मममम करते रेस करने की मजा तो डेड के साथ ही आती है न? और जब डेड पूछते तो कहता, आपके साथ खेलने की, स्विमिंग, रेसिंग करने की मजा आती है, लेकिन रात को डर लगता है तब प्यार करते हुए मॉम के साथ ही सोना पड़ता है न ? होम-वर्क करने के लिए तो मॉम ही चाहिए। आप तो चीड़ जाते हो, सुताई करते हो।

फिर भी दोनों को विश्वास था की पवन सिर्फ उन्हें ही चाहता है। फिर भी यह चाहत उनके झगडे नहीं रोक पाई। दोनों के अहम टकराते रहे और झगडे बढ़ते रहे। इससे ऊबने पर बात तलाक तक पहुँच गई। कोर्ट में केस दाखिल हो गया और कोर्ट के चक्कर भी शुरू हो गए।

पवन को तो वैसे देखा जाए तो खुश होना चाहिए क्योंकि जब से तलाक का केस शुरू हुआ है तब से उनके मान-पान बढ़ गए हैं और मॉम-डेड दोनों उन्हें अपनी ओर करने के प्रयास करते थे । फिर भी उनका निर्दोष बाल मन इस मनौती के पीछे की व्यूह रचना समझने पर निराश हो जाता था। स्कूल में उनका एक मित्र था यथार्थ।

पवन ने यथार्थ को पूछा, “यथार्थ, तेरे मॉम-डेड झगडते हैं ?”

यथार्थ ने कहा, “मेरे तो मॉम-डेड ही नहीं है, मैं तो अनाथाश्रम में रहता हूँ। एक भले अंकल मेरी फीस भरते है और इसलिए मैं इस स्कूल में पढ़ पा रहा हूँ।”

पवन ने यथार्थ से प्रश्न किया कि “क्या अनाथाश्रम में कोई झगडता है ?”

यथार्थ ने कहा, “नहीं, वहाँ तो लड़ने पर दंड देते हैं, वहाँ झगडा नहीं कर सकते।”

पवन ने कहा, “तुम मुझे वहाँ ले जाओगे ?”

यथार्थ ने कहा, नहीं, वहाँ तो जिसके मा-बाप नहीं है वो ही रहते हैं। इसे अनाथ कहते हैं। तु तो नसीबवाला है, तुम्हारे पास तो माँ और बाप दोनों हैं।”

पवन सोचता रहा कि कौन नसीबवाला है – वह या यथार्थ ?

आखिरकार कोर्ट के फैसले का दिन आ ही गया। आज पवन को मॉम और डेड दोनों की ओर से रिश्वत दी जा रही थी। चोकलेट, खिलौने, आदि। लेकिन फिर भी पवन का झुकाव किस की ओर है वो जानने में वे अक्षम थे। भूमि सोचती थी कि मानो कि पवन कोर्ट में उनके डेड के साथ जाऊँगा कहेगा तो ? दूसरी ओर भूषण को भी वही चिंता थी कि फैसला भूमि के पक्ष में गया तो ?

न्यायाधीश ने प्रश्न किया, “बेटा, पवन, तुझें किसके साथ रहना है ?”

पवन ने दो-तीन मिनट सोचा, सबकी निगाहें उन पर थी। पवन धीरे से बोला, “मुझे अनाथाश्रम जाना है। मुझे वहाँ भेज दो।”

न्यायाधीश ने कहा, “तेरे तो माँ और बाप दोनों ही है। दोनों में से किसी एक के साथ आराम से रहो और बोलो किसके पास रहना है?

पवन ने पूछा, “आप मॉम और डेड को तलाक दिलवाओगे न ? अब मॉम डेड की पत्नी है ? और डेड मॉम के पति है ?”

न्यायाधीश के नकार में गर्दन घुमाने पर पवन ने कहा, “तो फिर वे दोनों मेरे मॉम और डेड नहीं है। अब मैं अनाथ हूँ। इसलिए मुझे अनाथाश्रम में जाना है, जहाँ कोई लड़ता नहीं है, कोई ऊँची आवाज में खीजता नहीं है। मुझे अनाथाश्रम में छोड़ दो।”

कोर्ट में सन्नाटा सा छा गया।

पवन की दादीमाँ धीरे से बोली , “मैं खोल रही हूँ अनाथाश्रम, जिस कोई माँ-बाप अपने जीते जी ही संतानों को अनाथ बना देते हैं उन्हें नम्र विनती, मेरा अनाथाश्रम उनके संतानों के लिए सदैव खुला है।”

 

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