
मैं तैनू फिर मिलांगी, अमृता प्रीतम !

मैं तैनू फिर मिलांगी, अमृता प्रीतम !
मैं तैनू फिर मिलांगी, कित्थे?
किस तरह पता नहीं
शायद तेरे तखियल दी चिगांरी बण के
तेरे कैनवस ते उतरांगी
जा खोरे तेरे केनवस दे उत्ते
इक रहस्यम्यी लकीर बण के
खामोश तैनू तक्दी रवांगी।
मैं तैनू फिर मिलांगी। “
ये खूबसूरत पंक्तियाँ एक प्रमुख भारतीय कवयित्री और लेखिका अमृता प्रीतम द्वारा लिखी गई थीं, जिन्होंने पंजाबी और बाद में हिंदी में भी लिखा था। वह अपनी मार्मिक कविता “अज्ज आंखें वारिस शाह नू” (मैं वारिस शाह-ओदे से वारिस शाह का आह्वान करती हूं) के लिए जानी जाती हैं।
ये 18वीं सदी के पंजाबी कवि का शोकगीत है । भारत के विभाजन के दौरान हुए नरसंहारों पर उनकी व्यथा की अभिव्यक्ति है।
अमृता कौर का जन्म 31 अगस्त 1919 को गुजरांवाला, पंजाब, ब्रिटिश भारत में हुआ था। (जो अब पाकिस्तान में है ), उनकी माता राज बीबी, (एक स्कूल शिक्षिका) थीं। और पिता करतार सिंह हितकारी की , जो बृज भाषा भाषा के कवि और विद्वान थे, और एक साहित्यिक पत्रिका के संपादक थे। इसके अलावा वह एक सिख धर्म के उपदेशक व प्रचारक थे ।अमृता केवल ग्यारह वर्ष की थीं जब उनकी माँ की मृत्यु हो गई। अपने पिता के साथ लाहौर चले जाने के बाद वह 1947 में भारत प्रवास तक वहीं रहीं।और वहीं शिक्षा ली।अमृता धार्मिक नहीं बल्कि आध्यात्मिक थीं। उन्होंने अपनी आत्मकथा में उल्लेख किया है कि उन्होंने अपनी बीमार मां को बचाने के लिए भगवान से प्रार्थना की थी कि भगवान बच्चों की प्रार्थना का जवाब देते हैं, लेकिन भगवान में उनका विश्वास उनकी मां के निधन के साथ ही खत्म हो गया।
उन्होंने अपनी कविताओं में प्रेम और प्रेम की पीडा़ का बहुत ही मार्मिक वर्णन किया है।
“दूर कहीं से आवाज आई,
आवाज जैसे तेरी हो
कानों ने गहरी साँसे लीं
जिंदगी की लड़ी काँप उठी
मासूम खुशी हाथ छुडा़ कर
दोनों नन्हीं बाँहे फैला कर
एक दोशीजे की तरह
नंगे पाँव भाग उठी।”
भावनाओं से ओत प्रोत उनकी कविताएं समय काल का संजीदा उल्लेख करती हैं।
“मेरा शहर एक लंबी बहस की तरह है
सड़कें बेतुकी दलीलों सी और
गलियां इस तरह जैसे एक बात को कोई इधर घसीटता है कोई उधर।”
उन्होनें अपने समय काल में महिलाओं की स्थिति और उनके दर्द को अपनी कविताओं में उतारा । वह प्रगतिशील लेखक आंदोलन का हिस्सा बनी 31 अक्टूबर 2005 को दिल्ली में उनकी मृत्यु हो गई।
उन्हें कई पुरस्कारों से सम्मानित किया गया –
1957 में साहित्य अकादमी पुरस्कार
1958 में पंजाब सरकार के भाषा द्वारा पुरस्कृत।
1988 में बल्गारिया वैरोव पुरस्कार, (अंतरराष्ट्रीय)
1982 में भारत का सर्वोच्च साहित्यिक पुरस्कार ज्ञानपीठ पुरस्कार।
पाकिस्तान के पंजाबी कवियों ने उन्हें शाह के मकबरे से चद्दर भेजी। पाकिस्तान की पंजाब अकादमी द्वारा पुरस्कृत किए जाने पर अमृता ने कहा, “बडे़ दिनों बाद मेरे मायके को मेरी याद आई “।
12मई 1986-11मई 1992 राज्य सभा की मनोनीत सदस्या रहीं।
वयस्क ज़िम्मेदारियों का सामना करते हुए और अपनी माँ की मृत्यु के बाद अकेलेपन से घिरने के कारण उन्होंने कम उम्र में ही लिखना शुरू कर दिया था। उनकी पहली कविताओं का संकलन “अमृत लहरें” (अमर लहरें) था जो 1936 में प्रकाशित हुआ था।जब वह लाहौर छोड़कर दिल्ली आ गईं। इसके बाद 1947 में, जब वह गर्भवती थीं और देहरादून से दिल्ली की यात्रा कर रही थीं। उन्होंने अपनी कविता “आखां वारिस शाह नू” के माध्यम से अपनी व्यथा व्यक्त की। (मैं आज वारिस शाह से पूछती हूं)
यह कविता विभाजन की भयावहता की सबसे मार्मिक याद दिलाती है। यह कविता हीर और रांझा की दुखद गाथा के लेखक सूफी कवि वारिस शाह को संबोधित है।
1960 में तलाक के बाद उनकी कई कविताओं और कहानियों में उनके विवाह के दुखद अनुभवों को दर्शाया गया है। उनकी आत्मकथाएँ “ब्लैक रोज़ेज़” और “रसीदी टिकट” सहित उनके कई कार्यों का अंग्रेजी, फ्रेंच, डेनिश, जापानी और अन्य भाषाओं में अनुवाद किया गया है। कई भारतीय व विदेशी भाषाओं में उनके लेखों का अनुवाद किया गया।
उनकी उल्लेखनीय कृतियों में से कुछ चर्चित कृतियाँ:
डॉक्टर देव (1949)
पिंजर (1950)
आशू 1958
बुलावा (1960)
बंद दरवाजा( 1961)
तेरहवाँ सूरज (1978)
पांच बरस लंबी सड़क, पिंजर, अदालत, उन्चास दिन, सागर और सीपियां, कोरे कागज इत्यादि।
आत्मकथा -रसीदी टिकट,ब्लैक रोजेज,शैडो आफ वर्डस।
कविताएं-अमृत लहरें, जीउन्दा जीवन।
ओ गीतां वालियां(1942)
बदलम दे लाली(1943)
साझँ दे लाली(1943)
लोक पीरा (1944)
पंजाब दी आवाज(1952)
सुहेनदे(1955)
कस्तूरी, इक सी अनीता,एक बात,
कागज ते कैनवस इत्यादि।
संस्मरण -कच्चा आंगन, एक थी सारा।
कहानी संग्रह -कहानियाँ जो कहाँनिया नहीं हैं, कहानियों के आँगन में।




सोलह साल की उम्र में उन्होंने प्रीतम सिंह से शादी की, जिनसे उनकी सगाई बचपन में ही हो गई थी और उन्होंने अपना नाम अमृत कौर से बदलकर अमृत प्रीतम रख लिया। उनके दो बच्चे थे।
वह एक स्वतंत्र विचारों वाली महिला थीं। और वह अपनी शर्तों पर जिंदगी जीती थीं। उनके शब्दों में, “जहाँ कहीं भी आजाद रूह की झलक पड़े, समझना वह मेरा घर है। “
उन्हें शादी में घुटन महसूस हुई। उस समय तक उन्होंने कविता लिखना शुरू कर दिया था और उन्हें “साहिर “नाम के एक शायर से प्यार हो गया था, जिनसे उनकी एक मुशायरे में मुलाकात हुई थी। उनके प्यार ने उनकी कविताओं को नया आकार दिया। अमृता ने अपनी काव्य रचनाओं में साहिर के प्रति अपने प्यार को व्यक्त किया।
उन्होंने एक कविता “सुनेहदे” (संदेश) लिखी थी। यह वास्तव में साहिर के साथ अमृता की एकतरफ़ा बातचीत थी।

बाद में उन्होंने अपने और साहिर के बीच की खामोशी पर “सात बरस” लिखा। मौन और भाषा उनके बीच दो बाधाएँ थीं।वह अपने संवेदनशील लेखन के शिखर पर थीं, जब इंद्रजीत, एक पंजाबी चित्रकार जो इमरोज़ के नाम से लोकप्रिय थे, और उनसे दस साल छोटे थे, उनके जीवन में आए। उन्होंने बिना किसी रिश्ते के जीवन भर उनका हाथ थामे रखा। वह साहिर के प्रति उसके प्यार को जानते थे लेकिन उसने कभी इसकी परवाह नहीं की। अमृता शादी के बुरे अनुभव से गुज़रीं इसलिए उन्हें दोबारा शादी करने में कोई दिलचस्पी नहीं थी। इमरोज़ उनके प्रेमी, प्रशंसक, साथी और आत्मिक मित्र थे। उनकी पहली मुलाकात तब हुई जब इमरोज़ को उनकी पुरस्कार विजेता कविता “सुनेहदे “को डिजाइन करने के लिए बुलाया गया। वह एक कलाकार थे और एक उर्दू पत्रिका “शमा” के लिए काम कर रहे थे। इमरोज़ ने अपना पूरा जीवन अमृता के लिए समर्पित कर दिया।
अमृता ने कई वर्षों तक पंजाबी में एक मासिक साहित्यिक पत्रिका” नागमणि” का संपादन किया, जिसे उन्होंने इमरोज़ के साथ मिलकर 33 वर्षों तक चलाया। उनकी कविता ‘मैं तेनु फिर मिलांगी” इमरोज़ के प्रति उनके गहरे प्रेम की अभिव्यक्ति है। वहीं इमरोज़ ने अपना कलात्मक कार्य अमृता को समर्पित किया। अमृता के लिए उनका प्यार बिना शर्त था। अमृता बीमार पड़ गईं और इमरोज़ ने पूरे दिल से उनका पालन-पोषण किया। अमृता के निधन के बाद इमरोज ने “जश्न जारी है” नामक एक काव्य पुस्तक प्रकाशित की, जो उनके निधन के बाद उनकी स्थिति को दर्शाती है।
“मैं जब खामोश हो गया
और ख्याल भी खामोश होते हैं, तो एक हल्की-हल्की सरगोशी होती है उसके एहसास का, उसकी शायरी की”
Amrita and Imroz
अमृता को मानव हृदय की संवेदनशील अभिव्यक्ति के साथ-साथ दिल को छू लेने वाली प्रेम अभिव्यक्ति के लिये, और साहित्य जगत में उनके अप्रतिम योगदान के लिये हमेशा याद किया जाएगा।
मीनू यतिन
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