बाँसुरी वाला

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dineshkumar singh

28 Jul 20243 min read

Published in stories

बाँसुरी वाला

 

घर से करीब आधे किलोमीटर दूर एक चाय की टपरी या ठेला है।  ७ रूपए में वहाँ पर “कटिंग चाय” (आधा कप चाय) मिलती है। एक कटिंग चाय में आप तक़रीबन ४-५ चुस्कियाँ ले सकते हो।  पर बात क़्वालिटी (गुणवत्ता) की हो तो यह भी काफी है।  मै अक्सर यहाँ शाम को चाय पीने आता हूँ। ऐसे जगह सिर्फ चाय पीने के ही नहीं पर कहानियों के भी घर होते है।

एक दिन देर शाम मै वहां चाय पीने गया। चाय वाला फ्रेश चाय उबाल रहा था।  इसलिए मै इंतज़ार करने लगा।  अचानक वहाँ एक बांसुरी बेचने वाला आया।  चूंकि मेरे आलावा वहां ३-४ लोग और थे, आशा वश वो वहां आ गया।  काफी थका लग रहा था। वहाँ खड़े एक सज्जन उसको छेड़ने लगे, अनावश्यक सवाल जवाब करने लगे।  दुबला पतला, नाटे कद काठी का बाँसुरी वाला उसे हँसते हुए जवाब दे रहा था।

मैंने इशारे से चायवाले को उसे बिस्किट और चाय देने को कहा।  उसने बिस्किट उसे बढ़ा दिया।  उसने मना किया, पर चायवाले ने उसे हाथ में थमा दिया।  मैंने पुछा आज कितना धंधा हुआ। उसने कहा १५ किमी घूमा हूँ पर आज सिर्फ ५० रूपए ही कमा पाया।  कोई अच्छा दिन हो तो २५० रुपये तक कमा लेता हूँ.  चायवाले ने हम सभी को चाय थमाई और कहानी आगे बढ़ने लगी।

बाँसुरी वाले ने बताया की पिछले दस सालों से वह यह काम कर रहा है।  इसी बाँसुरी के काम से उसने पैसे बचाकर अपने दो बहनों की शादी की। अब घर में उसकी मां है, छोटा भाई है।  वो दसवीं में है।  वह उसकी उम्मीद है। उसे वोह आगे पढ़ाना चाहता है।  इसलिए उसकी यह मेहनत जारी है। दिनभर घूम घूम कर बांसुरी बेचता हूँ। पूछने पर पता चला की उसका घर वहाँ से २० किमी और दूर था।  उसने कहा उसे पैदल ही जाना होगा क्योंकि आज दिन की कमाई पूरी नहीं हुई है और उसे उम्मीद है की कुछ बिक्री और होगी।

चाय ख़त्म हो गई थी।  उसके चहरे पर एक ताज़गी थी पर बाकियों के चेहरे बुझे हुए थे, सिर्फ चाय वाले को छोड़कर। क्योंकि उसकी कहानी भी शायद कुछ अलग ना थी। यह ही तो जीवन है।

बाँसुरी वाले ने चाय का कप रखा और शुक्रिया बोलकर निकल गया।  वो मज़ाक उड़ाने वाले भाई साहब ने चाय वाले को बाँसुरी वाले के चाय का
पैसा देना चाहा पर उसने मना कर दिया।  कहा कि इन भाई साहब ने पहले ही दे दिया।  उनके बदले भाव को देखकर अच्छा लगा।

लौटते वक़्त यह ही सोच रहा था कि हर ऐसे थके चेहरों के पीछे ना जाने कितने संघर्षो और सपनों की कहानियाँ छुपी हुई है। 

 

दिनेश कुमार सिंह

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घर से करीब आधे किलोमीटर दूर एक चाय की टपरी या ठेला है।  ७ रूपए में वहाँ पर “कटिंग चाय” (आधा कप चाय) मिलती है। एक कटिंग चाय में आप तक़रीबन ४-५ चुस्कियाँ ले सकते हो।  पर बात क़्वालिटी (गुणवत्ता) की हो तो यह भी काफी है।  मै अक्सर यहाँ शाम को चाय पीने आता हूँ। ऐसे जगह सिर्फ चाय पीने के ही नहीं पर कहानियों के भी घर होते है।

एक दिन देर शाम मै वहां चाय पीने गया। चाय वाला फ्रेश चाय उबाल रहा था।  इसलिए मै इंतज़ार करने लगा।  अचानक वहाँ एक बांसुरी बेचने वाला आया।  चूंकि मेरे आलावा वहां ३-४ लोग और थे, आशा वश वो वहां आ गया।  काफी थका लग रहा था। वहाँ खड़े एक सज्जन उसको छेड़ने लगे, अनावश्यक सवाल जवाब करने लगे।  दुबला पतला, नाटे कद काठी का बाँसुरी वाला उसे हँसते हुए जवाब दे रहा था।

मैंने इशारे से चायवाले को उसे बिस्किट और चाय देने को कहा।  उसने बिस्किट उसे बढ़ा दिया।  उसने मना किया, पर चायवाले ने उसे हाथ में थमा दिया।  मैंने पुछा आज कितना धंधा हुआ। उसने कहा १५ किमी घूमा हूँ पर आज सिर्फ ५० रूपए ही कमा पाया।  कोई अच्छा दिन हो तो २५० रुपये तक कमा लेता हूँ.  चायवाले ने हम सभी को चाय थमाई और कहानी आगे बढ़ने लगी।

बाँसुरी वाले ने बताया की पिछले दस सालों से वह यह काम कर रहा है।  इसी बाँसुरी के काम से उसने पैसे बचाकर अपने दो बहनों की शादी की। अब घर में उसकी मां है, छोटा भाई है।  वो दसवीं में है।  वह उसकी उम्मीद है। उसे वोह आगे पढ़ाना चाहता है।  इसलिए उसकी यह मेहनत जारी है। दिनभर घूम घूम कर बांसुरी बेचता हूँ। पूछने पर पता चला की उसका घर वहाँ से २० किमी और दूर था।  उसने कहा उसे पैदल ही जाना होगा क्योंकि आज दिन की कमाई पूरी नहीं हुई है और उसे उम्मीद है की कुछ बिक्री और होगी।

चाय ख़त्म हो गई थी।  उसके चहरे पर एक ताज़गी थी पर बाकियों के चेहरे बुझे हुए थे, सिर्फ चाय वाले को छोड़कर। क्योंकि उसकी कहानी भी शायद कुछ अलग ना थी। यह ही तो जीवन है।

बाँसुरी वाले ने चाय का कप रखा और शुक्रिया बोलकर निकल गया।  वो मज़ाक उड़ाने वाले भाई साहब ने चाय वाले को बाँसुरी वाले के चाय का
पैसा देना चाहा पर उसने मना कर दिया।  कहा कि इन भाई साहब ने पहले ही दे दिया।  उनके बदले भाव को देखकर अच्छा लगा।

लौटते वक़्त यह ही सोच रहा था कि हर ऐसे थके चेहरों के पीछे ना जाने कितने संघर्षो और सपनों की कहानियाँ छुपी हुई है। 

 

दिनेश कुमार सिंह

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