भारत की संस्कृति है अर्पण, तर्पण और समर्पण

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29 Jul 202416 min read

Published in spiritualism


||श्री सद्गुरवे नमः||

पितृपक्ष पर विशेष…

 

भारत की संस्कृति है अर्पण, तर्पण और समर्पण

 

दिनांक 16.07.2022 दिन शनिवार को सीधी, मध्यप्रदेश में सद्गुरुदेव के दिव्य आशीर्वचन…

 

अखण्ड मंडलाकारं व्याप्तं येन चराचरं…

प्रिय आत्मन्,

कल से एक ही बात पूछ रहे हैं लोग कि क्या करें गुरुजी, बड़े हम दुखी हैं| हम कहे कि आपलोग जुटो, वहीं इसका उत्तर देंगे सत्संग में| यह संसार जो है दुःख का कारण है| भगवान् बुद्ध ने भी कहा है, संसार में यदि कुछ सत्य है तो वह दुःख है| यदि दुःख से निवृत्त होना चाहते हो तो उसका कारण खोजो| तब न निवारण होगा! हमलोग झोला छाप डॉक्टर के यहाँ जाते हैं| झोला छाप डॉक्टर समझते हो न! यहाँ भी होगा| उस झोले में दवाई- इंजेक्शन सब कुछ रहता है| दर्द है तुमको तो फटाफट इंजेक्शन दे देगा| लोग वहाँ जाने के आदी हैं| लेकिन बुद्ध कहते हैं कि झोला छाप डॉक्टर के यहाँ मत जाओ| दुःख का कारण खोजो| एम्स में यदि जाओगे, लाइन लगाओगे तो निश्चित रूप से आपको एक-दो महीने तक दवा नहीं मिलेगी| यह जांच करो- वह जाँच करो- आपको दौड़ाया जायेगा| जब सब जाँच के बाद डॉक्टर के यहाँ टेस्ट-रिपोर्ट सब चला जायेगा तो हो सकता है कि दो रुपया- चार रुपया या दस रुपया का ही टेबलेट-कैप्सूल लिख दे- दे दे| और जब वह खाओगे, वहाँ से चलोगे तो रास्ते में ही रोग आपका ठीक हो जायेगा| इसलिए जांच ज़रूरी है जानने के लिए कि आखिर रोग क्या है? नहीं तो दवा किस चीज़ का दिया जायेगा- बोलो| उसी तरह से हमलोग भी अपने रोग का कारण नहीं खोजते हैं| दौड़ते हैं यहाँ-वहाँ देवी-देवता के मंदिर; ज्योतिषी के यहाँ|

अभी एक ज्योतिषी हमारे यहाँ गुरु पूर्णिमा पर आया था बरईपुर| अकेले में जब मौका मिलता- घेर लेता| पूछा-क्या भाई! कहा कि हमारा यह दुःख नहीं दूर हुआ- वह नहीं हुआ..| हम कहे कि अरे तुम तो ज्योतिषी हो! बहुत बड़े ज्योतिषी हो| है न..| और लोगों को रोज़ यही बताते हो| बड़ा ऑफिस खोला है, कर्मकाण्ड कराते हो|

कहा कि अब गुरुजी, क्या कहें.. सच कहें..| अरे सच क्या हम जानते नहीं हैं! हम तो जानते हैं रे बच्चा, जो ज़िन्दगी में फेल हो जाता है- ज्योतिषी बन जाता है| तो कहा कि अब हम क्या कहें..यह हमारा रोज़गार है- रोज़ी-रोटी| कुछ न कुछ तो उत्तर देना है न अपने खाने-पीने के लिए|

तो देखो, रोग है तो उसका कारण जानना होगा| तीन तरह का दुःख होता है- ‘दैहिक दैविक भौतिक तापा| राम राज नहिं काहुहि ब्यापा||’ एक बात समझो- सब दुखों का कारण एक है, हमारी तपस्या का क्षीण हो जाना| जिस व्यक्ति का जितना तपस्या, पुण्य क्षीण होता है; वो उतना दुखी होता है| इस ओर हम ध्यान नहीं देते हैं| कहीं दर्द है तो पेन किलर खा लेते हैं| और अब सुनते हैं कि पेन किलर खाते-खाते लीवर ही ख़राब हो जाता है| किडनी ख़राब हो जाती है| है न जी! दुःख का कारण यह है कि हमारा पुण्य क्षीण हो गया| तपस्या क्षीण हो गयी, गुरु की कृपा समाप्त हो गयी| बस मूल कारण यही है| पेट हमारा बड़ा होते चला गया| पहले लोग नौकरी करते थे| नौ-करी माने एक कमाता था, परिवार में नौ सदस्य थे- सब खाते थे लोग| फिर चाकरी हो गयी| हम दो- हमारे दो- हो गया| हम कमाते हैं, चार खाते हैं| चा-करी हो गयी न! और अब तो वेतन हो गया| पूछा जाता है कितना वेतन मिल गया? माने इतना हम कमाते हैं लेकिन हमारा तन का भरण-पोषण नहीं हो रहा है| दांत सियारे रहते हैं- घूमते-फिरते हैं| जब सुनो, यही कहेंगे कि गुरुजी, हमको घाटा है.. पेट ही नहीं भर पाता है| माने वे-तन| इस तरह से हमलोग घटते गए|

हम आपलोगों का ध्यान आकृष्ट करना चाहते हैं कि दुःख पहले शरीर में नहीं आता है| उससे पहले मेंटल बॉडी या उससे भी पहले सूक्ष्म शरीर में आता है| सूक्ष्म शरीर में ही निवारण कर लेना चाहिए| यदि वहाँ निवारण नहीं किया तब मानसिक (मानस) शरीर में आता है| मानस में भी निवारण नहीं किया तब शरीर पर आ जाता है| शरीर पर लास्ट में आता है| सूक्ष्म शरीर में ही यह ख़त्म हो जाये, इसलिए साधनायें दी जाती हैं| लेकिन हम सस्ता मिल गए हैं, आ जाते हैं सस्ता में, इसलिए तुमलोग कीमत नहीं कर रहे हो| डिवाइन सीक्रेट साइंस हम दिए हैं, जो इस पृथ्वी की कामधेनु है| हम कहते हैं कि डिवाइन सीक्रेट साइंस सीख लो| अपना भी निवारण करो दुःख का; और पड़ौसी का भी करो| लेकिन नहीं सीखोगे| इसलिए कह रहे हैं कि सस्ते में मिल गया है| इस विश्व में कोई साधु दे रहा है यह विद्या! डिवाइन सीक्रेट साइंस कोई नहीं दिया- कोई मंडलेश्वर, महामंडलेश्वर भी नहीं| नहीं सीखते हो, सीख लो डिवाइन सीक्रेट साइंस| यह तो ऐसी है तकनीक कि तुम्हारे सूक्ष्म शरीर से ही निवारण शुरू कर देगी| रोज़ यदि करो, सूक्ष्म शरीर से निवारण होने लगेगा| आपका लड़का-लड़की बाहर जा रहा है, घर बैठे उसको सील कर दो, सुरक्षित लौट आएगा| एक्सीडेंट का भय नहीं है| अब बताओ, ऐसी विद्या कहाँ मिलेगी? ..इतने सस्ते में| लेकिन सस्ते में मिल गए हैं तो कहते हो कि ध्यान नहीं करना है, बस गुरुजी करें|

दुःख निवृत्ति का दूसरा उपाय है- अभी पितृ पक्ष आ रहा है सितम्बर में| विश्व में भारत एक ऐसा देश है कि वर्ष में पंद्रह दिन का समय अपने पितरों के लिए निश्चित किया गया है| उसमें सब शुभ काम वर्जित कर दिया गया है| एकम से अमावस्या तक अपने पितरों को याद करो| आपके बाल-बच्चे जितने सत्य हैं उससे भी ज्यादा आपके पितर सत्य हैं| बहुत बार बताये हैं, फिर आपलोग भूल जाते हो; इस जीवन में यह तीन ही आपके मददगार हो सकते हैं- पहला, वर्तमान में जो आपका परिवार है, वह आपके सुख-दुःख में सम्मिलित हो सकता है| पति, पत्नी, लड़का, भाई, बाप.. गोतिया जो भी हो| आपकी मदद कर सकते हैं| दूसरा है, आपके पितर| बहुत पितर अकाल मृत्यु को प्राप्त होते हैं| कोरोना में तो बहुत हुआ न! बीस लाख लोग भारत में मरे हैं| चौका आरती- सत्य सनातनी यज्ञ में दो तरह का काम होता है- एक मरने के बाद होता है मुक्ति के लिए और एक मंगला चौका आरती| मैं बहुत कम कराता हूँ लेकिन कराता तो हूँ| अभी कराये थे तो पूछे उनके परिवार जन से- वह इस तरह से तड़पा-तड़पा कर मरा? कहा कि हाँ|

देखो, उसका कोई लाश फूंकने नहीं गया| और करोड़ों रुपया छोड़कर गया है| अपने तो खूब कृपण था| और करोड़ों रुपया छोड़कर गया वैष्णव| पचास लाख का तो इन्श्योरैंस भी मिला और पचास लाख का प्रोविडेंट फण्ड- बोनस मिलता है| एक करोड़ तो यही हुआ| उसकी पत्नी, बच्चे बोले कि हाँ, कोई गया नहीं| खून फेंक कर मरा| हम कहे कि देखो, सामने मेरे खड़ा है| खून से लथपथ है| मैं मुक्त कर रहा हूँ इसे|

तो देखो तुमलोग- तुम्हारे जो हैं पिता, दादा- बाबा, नाना, काका, चाचा- अकाल मृत्यु को यदि प्राप्त हो गए हैं तो बड़े दुखी हैं सब| मुक्त नहीं हो रहे हैं| अकाल मृत्यु में क्या होता है? मान लो कि अस्सी वर्ष आयु है और चालीस बरस में वह मर गया तो चालीस बरस उसकी आयु बची न! तो 40×10=400, चार सौ बरस वह अब प्रेत योनि में घूम रहा है पागल होकर| वायु में घूम रहा है, मुक्त नहीं हो रहा है| दूसरा जन्म नहीं ले रहा है| वह घूम कर फिर कहाँ जायेगा? बोलो| हम तो मोह में ममता में इतना बेचैन रहते हैं कि अपने-अपने पुत्र और पुत्री के सिवा संसार में किसी दूसरे के लिए सोचते ही नहीं हैं| हमारी पूरी दुनिया ही है- हम दो हमारे दो, बस| ऊपर नहीं देखते हैं| सब तो यही सोचकर गए हैं, तब फिर तो तुम्हरे यहाँ ही दौड़कर आयेंगे न| वो भी जो परिवार में सबसे ज्यादा संपन्न रहता है, सुखी रहता है, पढ़ा-लिखा रहता है, उसी के यहाँ दौड़कर आता है| यही नहीं, उसको फायदा भी करा देता है| लेकिन वह फायदा देखकर यदि सोचते हो कि हम व्यापार बढ़ायेंगे- अपना काम बढ़ायेंगे तो बहुत निराश होता है कि हमारे लिए कुछ नहीं कर रहा है| तो ऐसा उपाय कर देगा कि तुमको सब घाटा लग जायेगा| जा रहे हो, रास्ते में एक्सीडेंट हो जायेगा| तुम जिस पर ध्यान करते हो कि हमारा यह भविष्य होगा, उसको पागल बना देगा| ऐसे खुराफात वो लोग करते रहते हैं कि हमारी तरफ देखो| हमें मुक्त करो| वे संपत्ति भी देते हैं और उसको ठीक-ठीक प्रयोग नहीं करने पर खुराफात भी करते हैं| वे पूर्वज और कहीं नहीं, आपके इर्द-गिर्द घूमते रहते हैं|

कल एक प्रोफेसर साहब आये थे, आज आए नहीं| हम कहे कि देखो, चार आदमी तुम्हारे साथ ही तो घूम रहे हैं! हँऽऽऽ.. नहीं गुरुजी| हमने कहा कि नहीं, चार घूम रहे हैं| चारों की अकाल मृत्यु हुई है| पहले कहा कि दो| फिर कहा कि तीन| अच्छा.. हाँ, एक औरत भी है- चार| हमने कहा कि अच्छा..! तो वो भी नहीं जान रहा था| क्योंकि उधर हमारा ध्यान ही नहीं है| तुम्हारा पूरा ध्यान अपने बच्चे पर है| जो तुमको वह प्रॉपर्टी खरीदकर दे गया- तुम्हारा यह शरीर दे गया, पाला-पोसा; जिसका वंशाणु (gene) तुममें बह रहा है, उसके प्रति तुम नहीं सोच रहे हो| तो वो निरंतर तुम्हें दुःख देते हैं| दैहिक, दैविक भौतिक तापा- तीनों देंगे| इसीलिए कहा गया है कि जिसके घर में एक संन्यासी हो जाता है, उसका पूरा परिवार तीनों दुखों से मुक्त हो जाता है| और जिस घर का कोई संन्यास छोड़कर भाग जाता है, वहाँ दुःख तीनों आ जाता है| हम दूसरे का नहीं कह रहे हैं, हमरे यहाँ का ही उदाहरण लो| वो भी सुनता होगा- अमितोज| तुमलोग सब जानते होगे- चालीस लाख रुपया क़र्ज़ लेकर आया था उसका बाप| और वह अठारह बरस का था| उसका बाप भी ज्योतिषी है| जानते हो न! लिख कर दिया था कि अठारह साल इसकी उम्र है| संन्यास लेते ही दो महीने के अंदर उसके बाप की नौकरी लग गयी डेढ़ लाख की| उसकी माँ की भी लग गयी 50-60 हज़ार की| उम्र की रेखा बढ़ गयी| छः महीने के बाद उसका बाप आकर बोला कि गुरुजी! इसकी उम्र की रेखा तो बढ़ गयी! हमने कहा कि बदल दिया भाग्य| एक घर भी हमने लिया- उसको दे दिया कि लो, तुम यह घर ले लो| तो घर भी हो गया दिल्ली में| अपना घर इस पृथ्वी पर नहीं था उसको| और जब उसका पद-पैसा-प्रतिष्ठा बढ़ने लगा तो बदल गया| अहंकार पकड़ लिया| देखो सब बर्दाश्त नहीं कर पाते हैं| क्या गुरुजी उससे खुश होंगे? यह कूड़ा-करकट क्यों दिखा रहे हो, बुद्धिहीनता का काम|

हम तो प्रैक्टिकल- बहुत दूर का नहीं, तुम ही लोगों के बीच का कहते हैं| गलती पर डाँट भी देते हैं तो बड़ा दुखी हो जाता है चेला| अभी उसका मामा आया था गुरु पूर्णिमा में| वहाँ का सद्विप्र समाज का सचिव भी है न| कहा कि गुरुजी, एक बात कहें..| हमने कहा कि कहो| कहा कि क्षमा करिएगा…| कैसी क्षमा? कहा कि हमारे बहन-बहनोई भगिना न हैं..| हमने कहा कि हम क्रोध करते ही नहीं हैं, श्राप देते ही नहीं हैं| बात क्या है? कहा कि वो घर जो लिए थे दिल्ली में- बिक गया| गुरविंदर जी की नौकरी छूट गयी|

वो भी सुनता होगा पंजाब में| उनके रिश्तेदार विदेश में हैं, वे भी सुनते हैं| यह साथ-साथ जा रहा है लाइव| इसीलिए मैं ऐसा कुछ नहीं कहता हूँ जो झूठ हो जाए| वह बोला कि नौकरी छूट गयी- फिर क़र्ज़ हो गया| मेरी बहन की भी साल- दो साल में छूट जाएगी| हमने कहा कि इसमें मेरी क्या भूमिका है? यह स्पष्ट जानो, मैं अग्नि-पिण्ड हूँ| और अग्नि में जो थूकेगा, खुद वह भोगेगा| नहीं कहना चाहिए हमको, लेकिन बता देते हैं| कृष्ण को भी यह अपना सत्यस्वरूप बताना पड़ा| राम को भी अपने बारे में बताना पड़ा कि अग्नि-पिण्ड हूँ| जिसने निंदा किया- शिकायत किया, वह गया- जय राम जी की! कोई रोक नहीं सकता है| सूर्य पर तुम थूकोगे- वह कहाँ जायेगा? तुम्हारे ऊपर जायेगा न, मैं क्या कर सकता हूँ!

‘कहन सुनन को है नहीं, समझन की है बात|

दूल्हा दुलहिन मिल गए फीकी पड़ी बारात||’

लोग कहते हैं कि गुरुजी, कहना नहीं चाहिए आपको| देखो महात्मा जी सामने बैठे हैं, वो कहते हैं| लेकिन हमसे पचता नहीं है| तुरंत कहकर मैं खाली हो जाता हूँ| क्यों ढोऊँ कूड़ा-करकट! इसीलिए मैं दस बजे सो जाता हूँ| एकदम निश्चिन्त योग निद्रा में; और ढाई-तीन बजे जग जाता हूँ| देखो विनोद जी बैठे हैं| कैलाश मानसरोवर गए तो कहा कि गुरुजी, मत नहाइएगा| बर्फ ही हो जाइएगा| वहाँ भी ढाई बजे- तीन बजे मैं उठता था| इनको डांटता था कि अरे उठ| चल हमको स्नान करा| याद है! कहा कि अरे यहाँ भी तीन ही बजे गुरुजी..? हम कहे कि हाँ| हमारे लिए बस यही टाइम निश्चित है| चल हट- नहवा| तो तीन बजे हमारा स्टैण्डर्ड टाइम है| आज तो ढाई ही बजे उठ गए थे| इसलिए कि देखो, हम कोई चिंता लेकर नहीं चलते हैं| जो होता है, वहीं मुँह पर कहकर झट चल देते हैं| चाह और चिंता दोनों समाप्त कर देते हैं-

‘चाह गई चिंता मिटी, मनुआ बेपरवाह| जाको कछु नहिं चाहिये, वे साहन के साह||’

हम तुम्हारे लिए चिंतित रहते हैं| देखो, अपने पूर्वजों की सेवा- उनके बारे में विचार तुम नहीं करते हो| रामरसायन यज्ञ चल रहा था| कमल शर्मा छत्तीसगढ़ के ही एक आदमी को लाया| अपना वो दुःख कह रहा था| हम कहे कि दुःख छोड़ो| अभी राम रसायन यज्ञ जो चल रहा है, उसमें एक महीने का खर्च संभालो| कहा कि गुरुजी, एक महीना… कितना खर्चा लगेगा! हमने कहा कि तीन-चार लाख| कहा कि हम छः महीने का संभालेंगे| हमने कहा कि झूठ बोल रहे हो| कहा कि गुरुजी, हमको पंद्रह लाख रुपया महीना मिलता है| एक महीने का महीना ही देंगे| हमने कहा कि झूठ बोल रहे हो| जाओ- जाओ तुम| जो कह दिया, सो कह दिया- टैक्स दे दिया तो तुम्हारा पूरा हो जायेगा काम| हम चले आये| भूल गए| किसको क्या कहते हैं, याद रहता है! कहा कि गुरुजी, आशीर्वाद दे देते| हमने कहा कि आशीर्वाद.. साउंड इज इम्मोरटल| ध्वनि अमर है| तुम्हारी और हमारी बातों को- वह प्रकृति लिख लेती है| एक्शन और रिएक्शन उसके अनुसार शुरू हो जाता है| इट इज द लॉ ऑफ़ नेचर| अभी-अभी जो फोन आया था महाराष्ट्र से डॉक्टर काले का, उनके बाप काका बोत्रे चीफ इंजीनियर थे| बहुत बड़े तांत्रिक थे- वहाँ के तांत्रिक सम्राट| बहुत जिंदा-मुर्दा करते थे| अब इंजीनियर ही कोई तांत्रिक हो जाये तो खतरनाक होगा| लेकिन तंत्र ने उनको घाटा दिया| हमारी किताब पढ़कर हमारे यहाँ आये- शरणागत हुए|

देखो तीन काम तुमलोगों को सीखना चाहिए| हिन्दू संस्कृति की जड़ है- अर्पण, तर्पण, समर्पण| जो कुछ है, गुरु और गोविन्द के सामने अर्पण करो| जो बच जाता है, अपने पूर्वजों के नाम पर तर्पण करो| और शेष जीवन जो है धर्म के नाम पर समर्पण करो| भारत की संस्कृति यही है| हमारी संस्कृति अहंकार की नहीं है| अहंकार की संस्कृति रावण की है| अर्पण, तर्पण, समर्पण भारत की संस्कृति है- यह याद रखो| मैं कोई पौराणिक बात नहीं दोहराता हूँ| जो तुम्हारे सामने वो ही बात कह रहा हूँ| गुरु धोबी भी है| जब तक देखता है कि तुम्हारी एक भी कालिमा है, तब तक पाट पर पटकते रहता है| जैसे धोबी कपड़ा फटने की चिंता नहीं करता| धोबी यदि कपड़े से प्रेम कर ले तो वह कपड़ा साफ नहीं होगा| ठीक-ठीक सद्गुरु जो है, जहाँ भी तुममें अहंकार उठता है, खट से वहीं मार देता है कि ख़त्म करो|

देखो कोरोना काल भयंकर चल रहा था| डॉक्टर काले अपने डॉक्टर हैं| पति, लड़का, लड़की, दामाद, पतोहू सब डॉक्टर हैं, सब एमडी हैं| लेकिन मैं तो हरदम कहता हूँ कि डॉक्टर, इंजीनियर, मास्टर, वकील और पुलिस- ये लोग बड़े कृपण होते हैं| देना नहीं जानते हैं| देने से कष्ट टलता है| दुःख कटता है| देखो, वसंत पंचमी पर हमको यहाँ आना था, नहीं आये| प्रयागराज से खुदागंज, शाहजहांपुर चले गए| बाबा लोगों को क्या चाहिए- जहाँ अच्छा भोजन मिलेगा, दान-दक्षिणा मिलेगी-वहाँ चला जाएगा| कोई छिपाता है, हम कह देते हैं| यह जो लड़का देख रहे हो नया-नया; खुदागंज में इसके पिताजी आनंद उपाध्याय जो अभी प्रिंसिपल हैं, पहले वहाँ टीचर थे| संभवतः बीस साल से ज्यादा से चेला होंगे सब| ये कहे कि गुरुजी, हमारे यहाँ आप दो साल से नहीं आये..| दक्षिणा पूरा देगा न! कहा कि हाँ| तो चलो, अब तुम्हारे यहाँ आयेंगे| हम बसंत पंचमी पर चले गए वहाँ| उनका यह बड़ा लड़का- अभी उन्नीस साल में एमएससी किया है- फर्स्ट डिवीज़न| डेढ़ लाख रुपया भी दिया और इस लड़के को दान दे दिया| यह तो हम नहीं उम्मीद किये थे कि लड़का भी दान देगा| यह भी नहीं जानता होगा पहले से| देखो, नहीं जानता था| हम आ गए पहले- यह पीछे-पीछे आ गया| हमने कहा कि अरे तू क्यों आ गया रे पण्डित! कहा कि पिताजी भेजे हैं| कौन- आनंद? कहा कि हाँ| फोन मिलाये कि आनंद! क्यों भेजा? कहा कि यह एमएससी कर गया गुरुजी| मेरा पिता का काम पूरा हो गया| पिता का काम पढ़ाना होता है न|

देखो, बद्रीनाथ सदृश तीर्थ न भूतो न भविष्यति| पुराण में कहा गया है कि बद्रीनाथ जैसा तीर्थ न हुआ है न होगा| वहाँ पर 24-25.09.2022 को पितृ पक्ष साधना है| यह हम बहुत बार कहे हैं कि हमारे दुःख का बहुत बड़ा कारण पितृ पक्ष का उदासीकरण है| अपना पूर्व जन्म का कर्म तो है, साथ ही पितृ का भी बहुत बड़ा योग है| पितृ यदि दुखी रहता है तो उसको यहाँ संसार में दुःख होता है| व्यापार नहीं चलता है, नौकरी नहीं लगती है, आगे संतान नहीं होती है, वंश नहीं बढ़ता है| बहुत सारे शारीरिक और सांसारिक कष्ट पितरों से आते हैं| इसलिए पितृ साधना दो दिन के लिए रखे हैं- चतुर्दशी और अमावस्या| बद्रीनाथ सर्वोच्च तीर्थ है- सुप्रीम कोर्ट| सुप्रीम कोर्ट में जब जजमेंट हो जायेगा तब लोअर कोर्ट में हियरिंग होगी? गया लोअर कोर्ट है और जगह जो होता है- काशी, केदारखण्ड में- यह हाई कोर्ट है| बद्रीनाथ सुप्रीम कोर्ट है| लोअर कोर्ट का जजमेंट बहुत लोग नहीं मानते हैं, हाई कोर्ट और वहाँ से फिर सुप्रीम कोर्ट जाते हैं| लेकिन सुप्रीम कोर्ट का तो मानना पड़ेगा न! इसलिए सुप्रीम कोर्ट में एक बार रखे थे, फिर दूसरी बार रख रहे हैं| सब केस नहीं न जाते हैं सुप्रीम कोर्ट! एक बार वहाँ नवरात्र हुआ था, दूसरी बार हो रहा है| इसलिए वर्तमान में जो पुण्य अवसर परमात्मा ने उपलब्ध कराया है आपको, आप सब इसका लाभ उठाओ और अपने पितरों का आशीर्वाद प्राप्त करो| जिससे आपका जीवन सुखी और संपन्न हो| शांति और संतुष्टि से परिपूर्ण हो| आप समृद्धिशाली हों और गुरु और गोविन्द के सान्निध्य में साधना करते हुए आप इस लोक में सफलता प्राप्त करो और उस लोक में भी सफल हो जाओ| आज बस इतना ही… धन्यवाद!

 

 

बोलो सद्गुरुदेव की जय!

 

सद्गुरु टाइम्स पत्रिका, सितम्बर 2022 से साभार…..

*********************

 

 

‘समय के सदगुरु’ स्वामी  कृष्णानंद  जी महाराज

आप सद्विप्र समाज की रचना कर विश्व जनमानस को कल्याण मूलक सन्देश दे रहे हैं| सद्विप्र समाज सेवा एक आध्यात्मिक संस्था है, जो आपके निर्देशन में जीवन के सच्चे मर्म को उजागर कर शाश्वत शांति की ओर समाज को अग्रगति प्रदान करती है| आपने दिव्य गुप्त विज्ञान का अन्वेषण किया है, जिससे साधक शीघ्र ही साधना की ऊँचाई पर पहुँच सकता है| संसार की कठिनाई का सहजता से समाधान कर सकता है|

स्वामी जी के प्रवचन यूट्यूब चैनल पर उपलब्ध हैं –

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पितृपक्ष पर विशेष…

 

भारत की संस्कृति है अर्पण, तर्पण और समर्पण

 

दिनांक 16.07.2022 दिन शनिवार को सीधी, मध्यप्रदेश में सद्गुरुदेव के दिव्य आशीर्वचन…

 

अखण्ड मंडलाकारं व्याप्तं येन चराचरं…

प्रिय आत्मन्,

कल से एक ही बात पूछ रहे हैं लोग कि क्या करें गुरुजी, बड़े हम दुखी हैं| हम कहे कि आपलोग जुटो, वहीं इसका उत्तर देंगे सत्संग में| यह संसार जो है दुःख का कारण है| भगवान् बुद्ध ने भी कहा है, संसार में यदि कुछ सत्य है तो वह दुःख है| यदि दुःख से निवृत्त होना चाहते हो तो उसका कारण खोजो| तब न निवारण होगा! हमलोग झोला छाप डॉक्टर के यहाँ जाते हैं| झोला छाप डॉक्टर समझते हो न! यहाँ भी होगा| उस झोले में दवाई- इंजेक्शन सब कुछ रहता है| दर्द है तुमको तो फटाफट इंजेक्शन दे देगा| लोग वहाँ जाने के आदी हैं| लेकिन बुद्ध कहते हैं कि झोला छाप डॉक्टर के यहाँ मत जाओ| दुःख का कारण खोजो| एम्स में यदि जाओगे, लाइन लगाओगे तो निश्चित रूप से आपको एक-दो महीने तक दवा नहीं मिलेगी| यह जांच करो- वह जाँच करो- आपको दौड़ाया जायेगा| जब सब जाँच के बाद डॉक्टर के यहाँ टेस्ट-रिपोर्ट सब चला जायेगा तो हो सकता है कि दो रुपया- चार रुपया या दस रुपया का ही टेबलेट-कैप्सूल लिख दे- दे दे| और जब वह खाओगे, वहाँ से चलोगे तो रास्ते में ही रोग आपका ठीक हो जायेगा| इसलिए जांच ज़रूरी है जानने के लिए कि आखिर रोग क्या है? नहीं तो दवा किस चीज़ का दिया जायेगा- बोलो| उसी तरह से हमलोग भी अपने रोग का कारण नहीं खोजते हैं| दौड़ते हैं यहाँ-वहाँ देवी-देवता के मंदिर; ज्योतिषी के यहाँ|

अभी एक ज्योतिषी हमारे यहाँ गुरु पूर्णिमा पर आया था बरईपुर| अकेले में जब मौका मिलता- घेर लेता| पूछा-क्या भाई! कहा कि हमारा यह दुःख नहीं दूर हुआ- वह नहीं हुआ..| हम कहे कि अरे तुम तो ज्योतिषी हो! बहुत बड़े ज्योतिषी हो| है न..| और लोगों को रोज़ यही बताते हो| बड़ा ऑफिस खोला है, कर्मकाण्ड कराते हो|

कहा कि अब गुरुजी, क्या कहें.. सच कहें..| अरे सच क्या हम जानते नहीं हैं! हम तो जानते हैं रे बच्चा, जो ज़िन्दगी में फेल हो जाता है- ज्योतिषी बन जाता है| तो कहा कि अब हम क्या कहें..यह हमारा रोज़गार है- रोज़ी-रोटी| कुछ न कुछ तो उत्तर देना है न अपने खाने-पीने के लिए|

तो देखो, रोग है तो उसका कारण जानना होगा| तीन तरह का दुःख होता है- ‘दैहिक दैविक भौतिक तापा| राम राज नहिं काहुहि ब्यापा||’ एक बात समझो- सब दुखों का कारण एक है, हमारी तपस्या का क्षीण हो जाना| जिस व्यक्ति का जितना तपस्या, पुण्य क्षीण होता है; वो उतना दुखी होता है| इस ओर हम ध्यान नहीं देते हैं| कहीं दर्द है तो पेन किलर खा लेते हैं| और अब सुनते हैं कि पेन किलर खाते-खाते लीवर ही ख़राब हो जाता है| किडनी ख़राब हो जाती है| है न जी! दुःख का कारण यह है कि हमारा पुण्य क्षीण हो गया| तपस्या क्षीण हो गयी, गुरु की कृपा समाप्त हो गयी| बस मूल कारण यही है| पेट हमारा बड़ा होते चला गया| पहले लोग नौकरी करते थे| नौ-करी माने एक कमाता था, परिवार में नौ सदस्य थे- सब खाते थे लोग| फिर चाकरी हो गयी| हम दो- हमारे दो- हो गया| हम कमाते हैं, चार खाते हैं| चा-करी हो गयी न! और अब तो वेतन हो गया| पूछा जाता है कितना वेतन मिल गया? माने इतना हम कमाते हैं लेकिन हमारा तन का भरण-पोषण नहीं हो रहा है| दांत सियारे रहते हैं- घूमते-फिरते हैं| जब सुनो, यही कहेंगे कि गुरुजी, हमको घाटा है.. पेट ही नहीं भर पाता है| माने वे-तन| इस तरह से हमलोग घटते गए|

हम आपलोगों का ध्यान आकृष्ट करना चाहते हैं कि दुःख पहले शरीर में नहीं आता है| उससे पहले मेंटल बॉडी या उससे भी पहले सूक्ष्म शरीर में आता है| सूक्ष्म शरीर में ही निवारण कर लेना चाहिए| यदि वहाँ निवारण नहीं किया तब मानसिक (मानस) शरीर में आता है| मानस में भी निवारण नहीं किया तब शरीर पर आ जाता है| शरीर पर लास्ट में आता है| सूक्ष्म शरीर में ही यह ख़त्म हो जाये, इसलिए साधनायें दी जाती हैं| लेकिन हम सस्ता मिल गए हैं, आ जाते हैं सस्ता में, इसलिए तुमलोग कीमत नहीं कर रहे हो| डिवाइन सीक्रेट साइंस हम दिए हैं, जो इस पृथ्वी की कामधेनु है| हम कहते हैं कि डिवाइन सीक्रेट साइंस सीख लो| अपना भी निवारण करो दुःख का; और पड़ौसी का भी करो| लेकिन नहीं सीखोगे| इसलिए कह रहे हैं कि सस्ते में मिल गया है| इस विश्व में कोई साधु दे रहा है यह विद्या! डिवाइन सीक्रेट साइंस कोई नहीं दिया- कोई मंडलेश्वर, महामंडलेश्वर भी नहीं| नहीं सीखते हो, सीख लो डिवाइन सीक्रेट साइंस| यह तो ऐसी है तकनीक कि तुम्हारे सूक्ष्म शरीर से ही निवारण शुरू कर देगी| रोज़ यदि करो, सूक्ष्म शरीर से निवारण होने लगेगा| आपका लड़का-लड़की बाहर जा रहा है, घर बैठे उसको सील कर दो, सुरक्षित लौट आएगा| एक्सीडेंट का भय नहीं है| अब बताओ, ऐसी विद्या कहाँ मिलेगी? ..इतने सस्ते में| लेकिन सस्ते में मिल गए हैं तो कहते हो कि ध्यान नहीं करना है, बस गुरुजी करें|

दुःख निवृत्ति का दूसरा उपाय है- अभी पितृ पक्ष आ रहा है सितम्बर में| विश्व में भारत एक ऐसा देश है कि वर्ष में पंद्रह दिन का समय अपने पितरों के लिए निश्चित किया गया है| उसमें सब शुभ काम वर्जित कर दिया गया है| एकम से अमावस्या तक अपने पितरों को याद करो| आपके बाल-बच्चे जितने सत्य हैं उससे भी ज्यादा आपके पितर सत्य हैं| बहुत बार बताये हैं, फिर आपलोग भूल जाते हो; इस जीवन में यह तीन ही आपके मददगार हो सकते हैं- पहला, वर्तमान में जो आपका परिवार है, वह आपके सुख-दुःख में सम्मिलित हो सकता है| पति, पत्नी, लड़का, भाई, बाप.. गोतिया जो भी हो| आपकी मदद कर सकते हैं| दूसरा है, आपके पितर| बहुत पितर अकाल मृत्यु को प्राप्त होते हैं| कोरोना में तो बहुत हुआ न! बीस लाख लोग भारत में मरे हैं| चौका आरती- सत्य सनातनी यज्ञ में दो तरह का काम होता है- एक मरने के बाद होता है मुक्ति के लिए और एक मंगला चौका आरती| मैं बहुत कम कराता हूँ लेकिन कराता तो हूँ| अभी कराये थे तो पूछे उनके परिवार जन से- वह इस तरह से तड़पा-तड़पा कर मरा? कहा कि हाँ|

देखो, उसका कोई लाश फूंकने नहीं गया| और करोड़ों रुपया छोड़कर गया है| अपने तो खूब कृपण था| और करोड़ों रुपया छोड़कर गया वैष्णव| पचास लाख का तो इन्श्योरैंस भी मिला और पचास लाख का प्रोविडेंट फण्ड- बोनस मिलता है| एक करोड़ तो यही हुआ| उसकी पत्नी, बच्चे बोले कि हाँ, कोई गया नहीं| खून फेंक कर मरा| हम कहे कि देखो, सामने मेरे खड़ा है| खून से लथपथ है| मैं मुक्त कर रहा हूँ इसे|

तो देखो तुमलोग- तुम्हारे जो हैं पिता, दादा- बाबा, नाना, काका, चाचा- अकाल मृत्यु को यदि प्राप्त हो गए हैं तो बड़े दुखी हैं सब| मुक्त नहीं हो रहे हैं| अकाल मृत्यु में क्या होता है? मान लो कि अस्सी वर्ष आयु है और चालीस बरस में वह मर गया तो चालीस बरस उसकी आयु बची न! तो 40×10=400, चार सौ बरस वह अब प्रेत योनि में घूम रहा है पागल होकर| वायु में घूम रहा है, मुक्त नहीं हो रहा है| दूसरा जन्म नहीं ले रहा है| वह घूम कर फिर कहाँ जायेगा? बोलो| हम तो मोह में ममता में इतना बेचैन रहते हैं कि अपने-अपने पुत्र और पुत्री के सिवा संसार में किसी दूसरे के लिए सोचते ही नहीं हैं| हमारी पूरी दुनिया ही है- हम दो हमारे दो, बस| ऊपर नहीं देखते हैं| सब तो यही सोचकर गए हैं, तब फिर तो तुम्हरे यहाँ ही दौड़कर आयेंगे न| वो भी जो परिवार में सबसे ज्यादा संपन्न रहता है, सुखी रहता है, पढ़ा-लिखा रहता है, उसी के यहाँ दौड़कर आता है| यही नहीं, उसको फायदा भी करा देता है| लेकिन वह फायदा देखकर यदि सोचते हो कि हम व्यापार बढ़ायेंगे- अपना काम बढ़ायेंगे तो बहुत निराश होता है कि हमारे लिए कुछ नहीं कर रहा है| तो ऐसा उपाय कर देगा कि तुमको सब घाटा लग जायेगा| जा रहे हो, रास्ते में एक्सीडेंट हो जायेगा| तुम जिस पर ध्यान करते हो कि हमारा यह भविष्य होगा, उसको पागल बना देगा| ऐसे खुराफात वो लोग करते रहते हैं कि हमारी तरफ देखो| हमें मुक्त करो| वे संपत्ति भी देते हैं और उसको ठीक-ठीक प्रयोग नहीं करने पर खुराफात भी करते हैं| वे पूर्वज और कहीं नहीं, आपके इर्द-गिर्द घूमते रहते हैं|

कल एक प्रोफेसर साहब आये थे, आज आए नहीं| हम कहे कि देखो, चार आदमी तुम्हारे साथ ही तो घूम रहे हैं! हँऽऽऽ.. नहीं गुरुजी| हमने कहा कि नहीं, चार घूम रहे हैं| चारों की अकाल मृत्यु हुई है| पहले कहा कि दो| फिर कहा कि तीन| अच्छा.. हाँ, एक औरत भी है- चार| हमने कहा कि अच्छा..! तो वो भी नहीं जान रहा था| क्योंकि उधर हमारा ध्यान ही नहीं है| तुम्हारा पूरा ध्यान अपने बच्चे पर है| जो तुमको वह प्रॉपर्टी खरीदकर दे गया- तुम्हारा यह शरीर दे गया, पाला-पोसा; जिसका वंशाणु (gene) तुममें बह रहा है, उसके प्रति तुम नहीं सोच रहे हो| तो वो निरंतर तुम्हें दुःख देते हैं| दैहिक, दैविक भौतिक तापा- तीनों देंगे| इसीलिए कहा गया है कि जिसके घर में एक संन्यासी हो जाता है, उसका पूरा परिवार तीनों दुखों से मुक्त हो जाता है| और जिस घर का कोई संन्यास छोड़कर भाग जाता है, वहाँ दुःख तीनों आ जाता है| हम दूसरे का नहीं कह रहे हैं, हमरे यहाँ का ही उदाहरण लो| वो भी सुनता होगा- अमितोज| तुमलोग सब जानते होगे- चालीस लाख रुपया क़र्ज़ लेकर आया था उसका बाप| और वह अठारह बरस का था| उसका बाप भी ज्योतिषी है| जानते हो न! लिख कर दिया था कि अठारह साल इसकी उम्र है| संन्यास लेते ही दो महीने के अंदर उसके बाप की नौकरी लग गयी डेढ़ लाख की| उसकी माँ की भी लग गयी 50-60 हज़ार की| उम्र की रेखा बढ़ गयी| छः महीने के बाद उसका बाप आकर बोला कि गुरुजी! इसकी उम्र की रेखा तो बढ़ गयी! हमने कहा कि बदल दिया भाग्य| एक घर भी हमने लिया- उसको दे दिया कि लो, तुम यह घर ले लो| तो घर भी हो गया दिल्ली में| अपना घर इस पृथ्वी पर नहीं था उसको| और जब उसका पद-पैसा-प्रतिष्ठा बढ़ने लगा तो बदल गया| अहंकार पकड़ लिया| देखो सब बर्दाश्त नहीं कर पाते हैं| क्या गुरुजी उससे खुश होंगे? यह कूड़ा-करकट क्यों दिखा रहे हो, बुद्धिहीनता का काम|

हम तो प्रैक्टिकल- बहुत दूर का नहीं, तुम ही लोगों के बीच का कहते हैं| गलती पर डाँट भी देते हैं तो बड़ा दुखी हो जाता है चेला| अभी उसका मामा आया था गुरु पूर्णिमा में| वहाँ का सद्विप्र समाज का सचिव भी है न| कहा कि गुरुजी, एक बात कहें..| हमने कहा कि कहो| कहा कि क्षमा करिएगा…| कैसी क्षमा? कहा कि हमारे बहन-बहनोई भगिना न हैं..| हमने कहा कि हम क्रोध करते ही नहीं हैं, श्राप देते ही नहीं हैं| बात क्या है? कहा कि वो घर जो लिए थे दिल्ली में- बिक गया| गुरविंदर जी की नौकरी छूट गयी|

वो भी सुनता होगा पंजाब में| उनके रिश्तेदार विदेश में हैं, वे भी सुनते हैं| यह साथ-साथ जा रहा है लाइव| इसीलिए मैं ऐसा कुछ नहीं कहता हूँ जो झूठ हो जाए| वह बोला कि नौकरी छूट गयी- फिर क़र्ज़ हो गया| मेरी बहन की भी साल- दो साल में छूट जाएगी| हमने कहा कि इसमें मेरी क्या भूमिका है? यह स्पष्ट जानो, मैं अग्नि-पिण्ड हूँ| और अग्नि में जो थूकेगा, खुद वह भोगेगा| नहीं कहना चाहिए हमको, लेकिन बता देते हैं| कृष्ण को भी यह अपना सत्यस्वरूप बताना पड़ा| राम को भी अपने बारे में बताना पड़ा कि अग्नि-पिण्ड हूँ| जिसने निंदा किया- शिकायत किया, वह गया- जय राम जी की! कोई रोक नहीं सकता है| सूर्य पर तुम थूकोगे- वह कहाँ जायेगा? तुम्हारे ऊपर जायेगा न, मैं क्या कर सकता हूँ!

‘कहन सुनन को है नहीं, समझन की है बात|

दूल्हा दुलहिन मिल गए फीकी पड़ी बारात||’

लोग कहते हैं कि गुरुजी, कहना नहीं चाहिए आपको| देखो महात्मा जी सामने बैठे हैं, वो कहते हैं| लेकिन हमसे पचता नहीं है| तुरंत कहकर मैं खाली हो जाता हूँ| क्यों ढोऊँ कूड़ा-करकट! इसीलिए मैं दस बजे सो जाता हूँ| एकदम निश्चिन्त योग निद्रा में; और ढाई-तीन बजे जग जाता हूँ| देखो विनोद जी बैठे हैं| कैलाश मानसरोवर गए तो कहा कि गुरुजी, मत नहाइएगा| बर्फ ही हो जाइएगा| वहाँ भी ढाई बजे- तीन बजे मैं उठता था| इनको डांटता था कि अरे उठ| चल हमको स्नान करा| याद है! कहा कि अरे यहाँ भी तीन ही बजे गुरुजी..? हम कहे कि हाँ| हमारे लिए बस यही टाइम निश्चित है| चल हट- नहवा| तो तीन बजे हमारा स्टैण्डर्ड टाइम है| आज तो ढाई ही बजे उठ गए थे| इसलिए कि देखो, हम कोई चिंता लेकर नहीं चलते हैं| जो होता है, वहीं मुँह पर कहकर झट चल देते हैं| चाह और चिंता दोनों समाप्त कर देते हैं-

‘चाह गई चिंता मिटी, मनुआ बेपरवाह| जाको कछु नहिं चाहिये, वे साहन के साह||’

हम तुम्हारे लिए चिंतित रहते हैं| देखो, अपने पूर्वजों की सेवा- उनके बारे में विचार तुम नहीं करते हो| रामरसायन यज्ञ चल रहा था| कमल शर्मा छत्तीसगढ़ के ही एक आदमी को लाया| अपना वो दुःख कह रहा था| हम कहे कि दुःख छोड़ो| अभी राम रसायन यज्ञ जो चल रहा है, उसमें एक महीने का खर्च संभालो| कहा कि गुरुजी, एक महीना… कितना खर्चा लगेगा! हमने कहा कि तीन-चार लाख| कहा कि हम छः महीने का संभालेंगे| हमने कहा कि झूठ बोल रहे हो| कहा कि गुरुजी, हमको पंद्रह लाख रुपया महीना मिलता है| एक महीने का महीना ही देंगे| हमने कहा कि झूठ बोल रहे हो| जाओ- जाओ तुम| जो कह दिया, सो कह दिया- टैक्स दे दिया तो तुम्हारा पूरा हो जायेगा काम| हम चले आये| भूल गए| किसको क्या कहते हैं, याद रहता है! कहा कि गुरुजी, आशीर्वाद दे देते| हमने कहा कि आशीर्वाद.. साउंड इज इम्मोरटल| ध्वनि अमर है| तुम्हारी और हमारी बातों को- वह प्रकृति लिख लेती है| एक्शन और रिएक्शन उसके अनुसार शुरू हो जाता है| इट इज द लॉ ऑफ़ नेचर| अभी-अभी जो फोन आया था महाराष्ट्र से डॉक्टर काले का, उनके बाप काका बोत्रे चीफ इंजीनियर थे| बहुत बड़े तांत्रिक थे- वहाँ के तांत्रिक सम्राट| बहुत जिंदा-मुर्दा करते थे| अब इंजीनियर ही कोई तांत्रिक हो जाये तो खतरनाक होगा| लेकिन तंत्र ने उनको घाटा दिया| हमारी किताब पढ़कर हमारे यहाँ आये- शरणागत हुए|

देखो तीन काम तुमलोगों को सीखना चाहिए| हिन्दू संस्कृति की जड़ है- अर्पण, तर्पण, समर्पण| जो कुछ है, गुरु और गोविन्द के सामने अर्पण करो| जो बच जाता है, अपने पूर्वजों के नाम पर तर्पण करो| और शेष जीवन जो है धर्म के नाम पर समर्पण करो| भारत की संस्कृति यही है| हमारी संस्कृति अहंकार की नहीं है| अहंकार की संस्कृति रावण की है| अर्पण, तर्पण, समर्पण भारत की संस्कृति है- यह याद रखो| मैं कोई पौराणिक बात नहीं दोहराता हूँ| जो तुम्हारे सामने वो ही बात कह रहा हूँ| गुरु धोबी भी है| जब तक देखता है कि तुम्हारी एक भी कालिमा है, तब तक पाट पर पटकते रहता है| जैसे धोबी कपड़ा फटने की चिंता नहीं करता| धोबी यदि कपड़े से प्रेम कर ले तो वह कपड़ा साफ नहीं होगा| ठीक-ठीक सद्गुरु जो है, जहाँ भी तुममें अहंकार उठता है, खट से वहीं मार देता है कि ख़त्म करो|

देखो कोरोना काल भयंकर चल रहा था| डॉक्टर काले अपने डॉक्टर हैं| पति, लड़का, लड़की, दामाद, पतोहू सब डॉक्टर हैं, सब एमडी हैं| लेकिन मैं तो हरदम कहता हूँ कि डॉक्टर, इंजीनियर, मास्टर, वकील और पुलिस- ये लोग बड़े कृपण होते हैं| देना नहीं जानते हैं| देने से कष्ट टलता है| दुःख कटता है| देखो, वसंत पंचमी पर हमको यहाँ आना था, नहीं आये| प्रयागराज से खुदागंज, शाहजहांपुर चले गए| बाबा लोगों को क्या चाहिए- जहाँ अच्छा भोजन मिलेगा, दान-दक्षिणा मिलेगी-वहाँ चला जाएगा| कोई छिपाता है, हम कह देते हैं| यह जो लड़का देख रहे हो नया-नया; खुदागंज में इसके पिताजी आनंद उपाध्याय जो अभी प्रिंसिपल हैं, पहले वहाँ टीचर थे| संभवतः बीस साल से ज्यादा से चेला होंगे सब| ये कहे कि गुरुजी, हमारे यहाँ आप दो साल से नहीं आये..| दक्षिणा पूरा देगा न! कहा कि हाँ| तो चलो, अब तुम्हारे यहाँ आयेंगे| हम बसंत पंचमी पर चले गए वहाँ| उनका यह बड़ा लड़का- अभी उन्नीस साल में एमएससी किया है- फर्स्ट डिवीज़न| डेढ़ लाख रुपया भी दिया और इस लड़के को दान दे दिया| यह तो हम नहीं उम्मीद किये थे कि लड़का भी दान देगा| यह भी नहीं जानता होगा पहले से| देखो, नहीं जानता था| हम आ गए पहले- यह पीछे-पीछे आ गया| हमने कहा कि अरे तू क्यों आ गया रे पण्डित! कहा कि पिताजी भेजे हैं| कौन- आनंद? कहा कि हाँ| फोन मिलाये कि आनंद! क्यों भेजा? कहा कि यह एमएससी कर गया गुरुजी| मेरा पिता का काम पूरा हो गया| पिता का काम पढ़ाना होता है न|

देखो, बद्रीनाथ सदृश तीर्थ न भूतो न भविष्यति| पुराण में कहा गया है कि बद्रीनाथ जैसा तीर्थ न हुआ है न होगा| वहाँ पर 24-25.09.2022 को पितृ पक्ष साधना है| यह हम बहुत बार कहे हैं कि हमारे दुःख का बहुत बड़ा कारण पितृ पक्ष का उदासीकरण है| अपना पूर्व जन्म का कर्म तो है, साथ ही पितृ का भी बहुत बड़ा योग है| पितृ यदि दुखी रहता है तो उसको यहाँ संसार में दुःख होता है| व्यापार नहीं चलता है, नौकरी नहीं लगती है, आगे संतान नहीं होती है, वंश नहीं बढ़ता है| बहुत सारे शारीरिक और सांसारिक कष्ट पितरों से आते हैं| इसलिए पितृ साधना दो दिन के लिए रखे हैं- चतुर्दशी और अमावस्या| बद्रीनाथ सर्वोच्च तीर्थ है- सुप्रीम कोर्ट| सुप्रीम कोर्ट में जब जजमेंट हो जायेगा तब लोअर कोर्ट में हियरिंग होगी? गया लोअर कोर्ट है और जगह जो होता है- काशी, केदारखण्ड में- यह हाई कोर्ट है| बद्रीनाथ सुप्रीम कोर्ट है| लोअर कोर्ट का जजमेंट बहुत लोग नहीं मानते हैं, हाई कोर्ट और वहाँ से फिर सुप्रीम कोर्ट जाते हैं| लेकिन सुप्रीम कोर्ट का तो मानना पड़ेगा न! इसलिए सुप्रीम कोर्ट में एक बार रखे थे, फिर दूसरी बार रख रहे हैं| सब केस नहीं न जाते हैं सुप्रीम कोर्ट! एक बार वहाँ नवरात्र हुआ था, दूसरी बार हो रहा है| इसलिए वर्तमान में जो पुण्य अवसर परमात्मा ने उपलब्ध कराया है आपको, आप सब इसका लाभ उठाओ और अपने पितरों का आशीर्वाद प्राप्त करो| जिससे आपका जीवन सुखी और संपन्न हो| शांति और संतुष्टि से परिपूर्ण हो| आप समृद्धिशाली हों और गुरु और गोविन्द के सान्निध्य में साधना करते हुए आप इस लोक में सफलता प्राप्त करो और उस लोक में भी सफल हो जाओ| आज बस इतना ही… धन्यवाद!

 

 

बोलो सद्गुरुदेव की जय!

 

सद्गुरु टाइम्स पत्रिका, सितम्बर 2022 से साभार…..

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‘समय के सदगुरु’ स्वामी  कृष्णानंद  जी महाराज

आप सद्विप्र समाज की रचना कर विश्व जनमानस को कल्याण मूलक सन्देश दे रहे हैं| सद्विप्र समाज सेवा एक आध्यात्मिक संस्था है, जो आपके निर्देशन में जीवन के सच्चे मर्म को उजागर कर शाश्वत शांति की ओर समाज को अग्रगति प्रदान करती है| आपने दिव्य गुप्त विज्ञान का अन्वेषण किया है, जिससे साधक शीघ्र ही साधना की ऊँचाई पर पहुँच सकता है| संसार की कठिनाई का सहजता से समाधान कर सकता है|

स्वामी जी के प्रवचन यूट्यूब चैनल पर उपलब्ध हैं –

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