मर कर जीना है एक कला

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29 Jul 202416 min read

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मर कर जीना है एक कला

 

(गोरखवाणी पर दिनांक 31.01.2022 दिन रविवार को पुण्यभूमि प्रयागराज, माघ मेला में सद्गुरुदेव के दिव्य आशीर्वचन…)

 

 

प्रिय आत्मन्,

 

 

मरौ वे जोगी मरौ, मरण है मीठा|

तिस मरणीं मरौ, जिस मरणीं गोरष मरि दीठा||

 

यह तो अधिकांश लोगों ने सुना होगा| गोरखनाथ जी कहते हैं कि हे जोगी! मरो| हम कहेंगे- हे रामूदासजी! मरो, तो खिसिया जायेंगे न| तब क्या कहें! हे भुवनेश्वर! मरो तुम अब| कौन जायेगा, बोलो तो| कहेगा कि अरे गुरुजी, क्या कह रहे हैं- मर जायें! यह तो कह रहे हैं अपने जोगियों को-

मरौ वे जोगी मरौ, मरण है मीठा|

तिस मरणीं मरौ, जिस मरणीं गोरष मरि दीठा||

हे मेरे जोगी लोग जो बैठे हो, मरो| मरना सीखो| तो कहा कि गुरुजी, कैसे मरें! कहे कि जैसे मैं मरा| और मर कर मैं देख रहा हूँ, बड़ा मीठा है मरना| बहुत मीठा है! मरने की बात कह रहे हैं कि जीते जी मरो| तुमलोग मेरे यहाँ मिलने आओ और मैं कहूँ कि मरो जल्दी, तो दूसरे दिन से यहाँ आना-जाना बंद कर दोगे न! देखो, ठीक-ठीक मरना- एक कला है| आपलोग जो जगह-जगह सुनते हो श्रीमद्भागवत् कथा- यह और कुछ नहीं, आर्ट ऑफ़ डेथ है- मृत्यु की कला| मैंने ही इस पृथ्वी पर यह कहना शुरू किया, लेकिन अब बड़े-बड़े मंडलेश्वर भी कहने लगे धीरे से| लेकिन फिर श्रीमद्भागवत् कहते भी हैं| यह टीवी पर मैंने देख लिया|

मैं नम्रता से कह रहा हूँ कि मृत्यु की कला है- श्रीमद्भागवत्| इसीलिए जो आदमी मरना चाहता है, उसको कहा जाता है| परीक्षित मरना चाहता है, इसलिए उसको न सिखाया गया! वहीं से कथा शुरू हुई| धुंधकारी मर गया है, प्रेत बन गया है और प्रेत को मारकर अब पुनः उसे शुद्ध किया जा सकता है, इसलिए उसको सुनाया गया| हमलोग तो हर्षाते करते हैं- जन्म में भी सुनने-सुनाने लगे|

एक दिन कहीं से हमको निमंत्रण मिला था काशी में- बनारस से| तो भुवनेश्वर जी को कहा कि हम तो नहीं रहेंगे बच्चा, तुम चले जाना| ये चार-पाँच साधुओं के साथ चले गए शादी में| वो लोग आवभगत किये- बैठाये| ये बैठकर कहने लगे- राम नाम सत्य है.. राम नाम सत्य है! जिसकी शादी थी, वह आया कि बाबा, यह क्या कह रहे हैं, अरे शादी न है! कहा कि हाँ बच्चा, शादी है.. लेकिन राम नाम तो सत्य है न! तो कहा कि अरे यह मरने पर न कहा जाता है? अच्छा..ऽऽऽ मरने पर कहा जाता है..! कहा कि हाँ| तो कहा कि हम तो मरे हुए हैं न बच्चा, इसलिये अपने ही बारे में कह रहे हैं हम| कहा कि नहीं चलो, भागो यहाँ से| है न जी! तो देखो, इनको बैठाया भी नहीं; सुनते हैं कि भगा दिया|

तो शादी में ‘राम नाम सत्य..’ नहीं सुनाया जाता है| मरने के बाद सुनाया जाता है| अब सुनाने से कोई फायदा है? उसी तरह श्रीमद्भागवत्- आर्ट ऑफ़ डेथ, मृत्यु की कला है| लेकिन श्रीमद्भागवत् कथा हर्षाठे या हर्षाते कह रहे हैं पण्डित- विद्वान् सब| हालाँकि छत्तीसगढ़ में हमारा प्रवचन बहुत लोग सुनते हैं, तो हमारी बात सुनकर वहाँ पर बंद कर दिए कुछ लोग| अपशकुन भी होता है| चलो, ज्यादा नहीं कहेंगे- मेला वाले सब हल्ला करने लगेंगे| लेकिन होता है अपशकुन| उसके परिवार में ज़रूर कुछ न कुछ हो जायेगा| खैर! दूसरी कृष्ण की गीता है- आर्ट ऑफ़ लाइफ| भगवान् कृष्ण कहते हैं- Struggle against evil forces should be the aim in life. बुराइयों के खिलाफ संघर्ष की कला है श्रीमद्भगवद्गीता- जीवन जीने की कला| दोनों दिए हैं कृष्ण| लेकिन गीता हमलोग कम कहते हैं, और श्रीमद्भागवत् तो खूब हो रहा है| टीवी पर जो चैनल देखिये- जिसको देखो, भागवत ही कह रहा है| खैर! यहाँ तो रामायण वगैरह सुनाई पड़ता है मेला में|

गोरख कहते हैं- ‘मरौ वे जोगी मरौ..’| मोम के घोड़े पर बैठो और आग से निकलो- पार कर जाओगे? मोम का घोड़ा यदि अग्नि में पहुँचा तो अग्नि और प्रज्ज्वलित होगी न, या बुझेगी? उसी तरह से हमलोग काम, क्रोध, मद, मोह, लोभ, अहंकार- अर्थात् पूरी माया को पकड़कर तपस्या में प्रवेश करते हैं| अग्नि माने तपस्या| मोम माने वासना- काम, क्रोध, मद, मोह, लाभ अहंकार| अब समझ लो, क्या हाल होगा? वही हो रहा है| हमलोगों को एक लालच दे दिया गया है कि त्रिवेणी संगम में स्नान करेंगे तो सब पाप नष्ट हो जायेगा| अब पूछो- किसी का धुलता है? कोई मर्डर करके आये, त्रिवेणी में स्नान कर ले, उसका केस ख़त्म हो जायेगा? अपराध माफ़ हो जायेगा? बोलो| नहीं होगा| तब? जब यहाँ की अदालत में नहीं माफ़ हो रहा है तो वहाँ कैसे माफ़ होगा? यह तुमलोगों को एक लॉली पॉप दिया गया है| इसलिए कि तुम यहाँ पर आओगे- विभिन्न प्रकार के साधु-महात्मा उपदेश दे रहे हैं; उनका कोई उपदेश तुमको लग गया तो तुम्हारा जीवन बदल जायेगा| कबीर साहब कहते हैं-

तीर्थ गए फल एक है, संत मिले फल चार|

सद्गुरु मिले फल अनंत है, कहत कबीर विचार||

तीर्थ जाने का फल एक यही है| क्या है फल? चारों ओर तो संत दे रहे हैं प्रवचन| कोई संत मिल गया- टकरा गया और उसका उपदेश तुममें लग गया- प्राप्त कर लिया तो चारों फल मिल गए- काम, अर्थ, धर्म और मोक्ष| चार फल यही न हैं! अब क्या चाहिए! और सद्गुरु यदि मिल गया, तब तो फल अनंत हो गया| इसलिए यह चॉकलेट दिया गया| हमारे यहाँ प्री-नर्सरी स्कूल खुला है| केजी- क्लास, यू-केजी भी है| ऊपर वाली कक्षाओं में लड़कों के लिए एसी नहीं लगा है| केजी- यू केजी के क्लास रूम्स में एसी है, पूरा कारपेट है| देखा है न, दिल्ली में! खेलने के बहुत सारे साधन दिए गए हैं| उसमें पढ़ाई छोड़कर सब काम होता है- लड़कों को खिलाओ- पिलाओ- बहलाओ| टॉफ़ी-चॉकलेट दो| बस, पढ़ाई मत करो| समझे! हम देखते हैं कि अच्छा है यार, बस पढ़ाई छोड़कर सब!

उसी तरह से हमारी भी बुद्धि बच्चे की है- बालवत्| इसीलिए ऋषि-मुनियों ने एक चॉकलेट पकड़ा दिया कि तीर्थ करो- गंगा स्नान करो| तुम्हारा सब पाप नाश हो जायेगा| तो कहा कि अच्छा! चलो, हम पाप करेंगे और फिर मौनी अमावस्या को नहा लेंगे.. अगले साल फिर पाप लेकर आ जायेंगे| इसीलिए पहले कोर्ट भी गंगा के तट पर बनाया जाता था| हर जगह कोर्ट देखोगे पुराना- नदी के, गंगा के तट पर| इसलिए कि तुमको डर लगेगा पाप करने में- सच बोलोगे| लेकिन हमसे तो और वज्र-लेख पाप हो जाते हैं| कहते हैं कि अब तो त्रिवेणी संगम से नहाकर पाप कट गया, चलो अब दूसरा पाप करें! फिर अगले साल नहा लेंगे| तीर्थ का फल- बस, एक यही है कि यहाँ आये हो तो सत्संग सुन लो| और हम बता रहे हैं कि इस बार नवरात्र में दिल्ली में हो रहा है- साधना के लिए पहुँच जाओ| कल करा रहे हैं चौका आरती- अनंत फलकारी यह| उसमें सम्मिलित हो जाओ| इसका यही फल है|

गोरख जैसे कह रहे हैं, मरकर देख रहे हैं- मरा हुआ आदमी कह सकता है क्या? कैसे कहेगा! तुम्हारा काम, क्रोध, मद, मोह, लोभ, अहंकार- वासना का मर जाना ही जोगी की मृत्यु है| तुम कुछ भी कह रहे हो- उस पर कोई अंतर नहीं पड़ रहा है| लाओत्से का नाम सुना होगा, लाओत्से कहते थे कि कोई आदमी दुनिया में हमको हरा ही नहीं सकता है| एक आदमी गया उसके यहाँ| कहा कि अरे! तुमको कोई हरा नहीं सकता है? मैं हराऊँगा| वह दौड़कर जाता था कि अभी तुमको हम पटकते हैं मारकर| और ज्यों ही वह दौड़कर नजदीक जाता, लाओत्से पहले ही लेट जाता था कि आओ, छाती पर बैठ जाओ| तुम जीत गए- मैं हार गया| कहा कि मतलब?

कहा कि हमको ज़मीन पर कौन हरा सकता है! तुम आये हो पटकने के लिए न..! मैं पहले ही सो गया- लो, बैठ जाओ| लाओत्से ने कहा कि हमको हराने वाले ने जन्म ही नहीं लिया है| न दुःख पहुँचाने वाला! मैं लडूँगा ही नहीं- तू हराएगा क्या हमको! तू पटकने आ रहा है, मैं पहले ही पटका जाता हूँ! कोई हमको टेंशन नहीं|

तो गोरखनाथ वही कहते हैं कि मरो| तिस मरणीं मरौ, जिस मरणीं गोरष मरि दीठा|| जैसे हम मरे हुए हैं, कोई इच्छाएं नहीं हैं| एक दिन लोगों ने पूछा कि गुरुजी, आप क्या चाहते हैं? हमने कहा कि इस पृथ्वी का सबसे खुशहाल आदमी मैं हूँ| लोग माने नहीं, पूछा- कैसे? हम कहे कि अरे मालूम नहीं हो रहा है, मेरी कोई इच्छा ही नहीं रह गई! तुमलोगों के साथ काम कर रहा हूँ, बोल रहा हूँ लेकिन मेरी कोई इच्छा नहीं| I do not have any will. I don’t have any desire. जनक को तुमलोग खोज रहे हो| देख लो, जनक बैठे हैं| सामने हम हैं न! बहुत पहले जो डिजायर थी, ख़त्म हो गयी| एक व्यक्ति थे- आईएस| एक दिन वो कहे, टोके हमको कि गुरुजी, आप कुछ नया संकल्प लेते हैं! तब हम घबराए कि क्या मामला है? कहा कि जितना संकल्प लेंगे न.. उतना बार जन्म लेना पड़ेगा! तुमने संकल्प इस जन्म में लिया, वो काम नहीं हो पाया, फिर अगले जन्म में करोगे| फिर नहीं हुआ, तो फिर अगला जन्म..| जितना संकल्प लोगे, उतना जन्म लेना पड़ेगा| यह जन्म कुछ नहीं, तुम्हारे संकल्पों का फल है| यह 15-20 साल पहले की बात है- मैंने पकड़ लिया कि आज से नो डिजायर| कोई संकल्प नहीं| कामवा तो सब करते ही हैं- महात्मा लोगों को डाँटते ही हैं| हैं न! नहीं मिलता है तो फोन पर डाँट देते हैं|

तो करो- काम करो, संकल्प न लो| यदि काम का कोई संकल्प ले लिया तो उसका विकल्प मत चुनो| उसको पूरा कर दो| नहीं तो वो संकल्प पीछा करेगा| जितना संकल्प ले लिया, उसको पूरा करो| और नहीं, तो समाधि में जाकर के सारे संकल्पों को डिस्ट्रॉय करो- ख़त्म करो| जब तक से बीज भुनता नहीं है (चना का या अन्य किसी का)- तब तक से जमेगा न! संकल्प ही बीज है जन्म और मरण का| इसलिए गोरख संकल्प रहित हो गए| बीज भून दिया- निर्बीज हो गए हैं| इसलिए कह रहे हैं कि जैसे गोरख मरा है, वैसे ही तुम भी मरो| तिस मरणीं मरौ, जिस मरणीं गोरष मरि दीठा|| ऐसे मरो और देखो, जैसे गोरख मरकर देख रहा है|

 

मरना भी एक कला है- सीखो, फिर देखो

आप भी कभी देखो| जब मृत्यु होने लगे, वही सबसे कीमती समय है| कहोगे कि अरे गुरुजी, आप मरने को कह रहे हैं! देखो, मृत्यु- सबसे कीमती समय है| सजग हो जाओ| और चुप- सजग होकर देखो| कैसे तुम्हारा प्राण निकल रहा है! यदि उस समय सजग हो गए, निकलते हुए प्राण को देख लिया, बस उसी समय तुम्हारी मुक्ति हो गयी| तुम मुक्त हो गए| बस यह तकनीक है, देखो| लेकिन कैसे होगी प्रैक्टिस? तो अभी से देखो| तुममें जो डिजायर उत्पन्न होती है, सुख उत्पन्न होता है, दुःख उत्पन्न होता है- उसको देखो| चुप- साक्षी बनकर देखना शुरू करो| क्यों व्याकुल हो कि यह हो जाये- वह हो जाये| होनहारी तो होगा ही, होगा| हम सीक्रेट साइंस दे दिए हैं, यदि बहुत कठोर डिजायर है तो डिवाइन सीक्रेट साइंस से अपने संकल्प को पूरा कर लो| नहीं मानोगे, करना ही है तो यही करो| डिवाइन सीक्रेट साइंस- इस पृथ्वी के लिए कामधेनु है| इस मेले में घूम आओ- अभी किसी के पास नहीं है यह विद्या| क्या जी, रामूदास जी, आप तो बचपन से यहाँ रहते आये हैं, कहीं है? लेकिन हम इतना सस्ते में दे दिए हैं कि तुमलोग उसका ख्याल नहीं करते| जो हमसे काम कर रहे हो, तुम यदि मत बोलो और अपने ही चुपचाप सीक्रेट साइंस से काम करो तो तुम्हारी डिजायर पूरी हो जाएगी| लेकिन फिर दूसरी डिजायर, इच्छा मत करो| दूसरा संकल्प मत लो| यह सुरसा की तरह बढ़ते जायेगा- बढ़ते जायेगा| फिर तुम दुखी होगे न!

तुमलोग रोज़ कथा में सुनते हो, भगवान् शिव की पत्नी सती योगसिद्ध है| लेकिन उसकी भी इच्छाएं हो गयीं, संदेह किया| कहा कि ये राम नहीं हैं! हालाँकि यह कथाओं का जोड़ है| भ्रमित है वह कहने वाला भी| अब हम कह देंगे तो फिर तुमलोग झगड़ा करोगे| लेकिन अब जाएगी हमारी बात पूरी दुनिया में| सती का कथा-प्रसंग है सतयुग का| यह बताओ कि कब शंकर जी की शादी हुई? और सती मरी है रामजी के समय में! आदमी जरा ध्यान ही नहीं देता है| यह सतयुग की घटना है| राम जी त्रेता के अंत में आये हैं, जंगल जा रहे हैं| तो क्या सती उस समय घूम रही है, देख रही है? त्रेता में भगवान् शंकर से शादी हुई है क्या? बोलो| लेकिन यहाँ ध्यान ही नहीं जाता है|

मैंने बचपन में जब रामायण पलटा था, उसी समय यह मार्क करके छोड़ दिया| हमारा पुराना रामायण, महाभारत सब देखना- रखा है अभी भी| मैं हायर सेकेंडरी में जब था, उस समय मैंने पढ़ लिया था| यह गठजोड़ है, कर दिया गया- कथा सुन्दर लगने के लिए| सती का वियोग- सतयुग का है प्रसंग| लेकिन सती के मन में वासना थी, अहंकार आ गया; इसलिए योगाग्नि में जली या यज्ञ में जली| पुनः उसका जन्म हुआ| इसलिए कि मरते समय कहा कि मैं इस संकल्प से मर रही हूँ कि मेरे अन्दर संशय न रहे| तब पार्वती के रूप में आई| वो ही पार्वती दुर्गा है|

पार्वती पत्थर की लड़की नहीं, हिमालयराज की पुत्री है| क्षत्राणी के रूप में अस्त्र-शस्त्र लेकर आई है| वही दुर्गा भी कहलाती है| अब उसकी कोई इच्छा नहीं, नो डिजायर| इसलिए पार्वती पुनः नहीं मरी| अमर हो गयी- मरौ वे जोगी मरौ, मरण है मीठा| तिस मरणीं मरौ, जिस मरणीं गोरष मरि दीठा|| एक बार मर कर देख ली न! लेकिन यह सब घटना सतयुग की है| देखो, एक बाबा हमारे यहाँ रामयणिया हैं, वो कह रहे हैं कथा| त्रेता के अंत में है भगवान् राम की सब कथा| तो यह हम नहीं कहते हैं कथावाचक की गलती है, कथा में इंटरेस्ट क्रिएट करने और उसको गरिमामय बनाने के लिए इधर-उधर से कुछ जोड़ा जाता है- घटाया जाता है| उस पर कमेंट नहीं करते हैं, लेकिन समझो कि यह दो समय की कथा है| यह भी कभी सोचा है कि क्यों इसको कहा जाता है? इसलिए कि तुम भी जब मरते हुए देखोगे कि मैं तो आया था यह-यह काम करने के लिए, संसार में परमात्मा को प्राप्त करने के लिए- यह किस हम चक्कर में पड़ गए! क्या कर दिए! ‘आये थे हरि भजन को, ओटन लगे कपास|’ यह सोचते हुए, अपनी मृत्यु को जब देखोगे तो सती की तरह तुम्हारा दूसरा जो जन्म होगा, वह पार्वती की तरह होगा| और जब पार्वती की तरह होगा, तब तुम स्वयंभू हो जाओगे- मुक्तत्व को प्राप्त कर लोगे| आवागमन से मुक्त हो जाओगे| इस मरने की कला की तरफ गोरखनाथ जी इशारा कर रहे हैं|

गीता में यह भगवान् कृष्ण भी कहे हैं कि तुमको समुद्र नहीं डुबा सकता है, अग्नि नहीं जला सकती| कबीर साहब भी कहते हैं-

‘माया मरी न मन मरा, मर मर गया शरीर|

आशा तृष्णा ना मरी, कह गए दास कबीर||’

जग में कोई मरता नहीं है, केवल शरीर बदलता है| जब आप यह भावना कर लो कि मैं मृत्यु को साकार कर रहा हूँ- देख रहा हूँ, तो जैसे आप कपड़ा बदलते हो, उसी तरह से देखोगे कि मैं यह दूसरा शरीर रूपी वस्त्र धारण कर रहा हूँ| मैं शरीर से निकलने की विधि बताता था, अब थोड़ा कम कर दिया है| मैं बद्रीनाथ में साधना करा रहा था-शरीर से निकाल दिया| एक चेला था प्रह्लाद, वह निकला तो वापस आ नहीं रहा था| सब लोग तो आ गए आधा घंटे में; प्रह्लाद आया ही नहीं| दो-तीन घंटा नहीं लौटा| हम कहे कि यह तो गया- जय राम जी की! तीन-चार घंटा लगा था, उसको वापस लाने में| कुछ तकनीक अपनाये- ‘डिवाइन सीक्रेट साइंस’ तुमलोगों को जो दिया गया है; गिरफ़्तारी-वारंट भेजे| जब आया होश में, पूछा- ‘क्या हुआ रे? कहा कि गुरुजी, बड़ा दुःख है.. रोज़ पत्नी झगड़ा करती है| जब हम गए तो पूर्वज लोग मिल गए- शिव जी मिल गए| हम कहे कि अब यहीं रहेंगे, जायेंगे नहीं| आने का मन नहीं था- बड़ा दुःख है घर में|’ ‘तब? कैसे आ गया रे!’

‘आप कुछ दिव्यास्त्र छोड़े न, आकर चारों ओर से घेर लिए हमको| हमारे पितर लोग, देवता लोग सब कहे कि तुम्हारा गुरु बहुत शक्तिशाली है| हम कुछ कर नहीं सकते हैं, देखो तुमको घेर लिए हैं दिव्यास्त्र सब| हमलोग तुम्हारा हाथ पकड़ते हैं तो करंट मार रहा है इतना दूर|’

अब बताओ, लाखों किलोमीटर ऊपर कैसे वह बिजली का करंट गया!

‘तो वो लोग सब कहे कि करंट मार रहा है, तुम जाओ| तब आपका वह दिव्यास्त्र जो है, चारों ओर से घेरकर के.. लाकर इसमें ढुका दिया शरीरवा में| लेकिन गुरुजी, फिर हमको छोड़ दीजिये- हम जायें|’

हमने कहा कि तुमको जाना है तो अपने घर जाकर जो करना हो- करो| यहाँ हमारे यहाँ मर गए तो पुलिस मानेगी नहीं| भेज देगी हमको जेल- होगी नहीं बेल|

तो देखो, तब से हम शरीर से बाहर निकालने वाली साधना कराना कम कर दिए| यदि परिपक्व नहीं है आदमी, तो नहीं करना चाहिए| यह शरीर से निकलने की घटना हम इसलिए बता रहे थे कि शरीर की कीमत देख लो बाहर निकलकर| क्या कीमत है! श्मशान घाट पर पड़ा रहेगा- कोई कीमत नहीं| बिना शरीर के बड़ा खुश हो! और तुम्हारे नजदीक जो हैं, वह भी देख लोगे कि कौन मित्र है, कौन शत्रु? कोई मित्र नहीं है| सब शत्रु ही हैं- हर कोई अपना कर्जा वसूल रहा है| कोई लड़के के रूप में, कोई लड़की के रूप में, कोई पत्नी के रूप में तो कोई पति के रूप में वसूल ही रहा है| सब एक दूसरे का क़र्ज़ ही ले रहे हैं| लेकिन हमलोग मोह ग्रसित इतना हैं कि उसको भूल नहीं रहे हैं| बस, आज से याद रहे- मरौ वे जोगी मरौ, मरण है मीठा| तिस मरणीं मरौ, जिस मरणीं गोरष मरि दीठा|| अब जब तुमलोग मेरे यहाँ आओ, कहेंगे यही कि मरो| पत्नी तुम्हारी बिगड़ जाएगी न कि क्या कह रहे हैं! लेकिन इसे तुमलोग याद रखो| ऐसे मरो, जैसे गोरख देख रहे हैं कि बड़ा मीठा लग रहा है| मीठा मतलब? बड़ा आनंददायक लग रहा है| जैसे कोई तुम्हारा वस्त्र- फटा-पुराना निकालने लगे और तुम्हारे सामने कीमती वस्त्र जो रखा है- हजारों करोड़ों रुपये का; तुमको पहनाने लगे तो तुम खुश होगे या दुखी? कहोगे न कि अरे गुरुजी पहले क्यों नहीं निकाल दिए- नया वस्त्र पहन लेते! वही ही मृत्यु| तो ऐसा कर्म करो कि तुमको अच्छा वस्त्र मिल जाये| बस आज इतना ही… धन्यवाद!

 

सदगुरुदेव की जय!

 

सद्गुरु टाइम्स पत्रिका, सितम्बर 2022 से साभार…..

***************

 

 

 

‘समय के सदगुरु’ स्वामी  कृष्णानंद  जी महाराज

आप सद्विप्र समाज की रचना कर विश्व जनमानस को कल्याण मूलक सन्देश दे रहे हैं| सद्विप्र समाज सेवा एक आध्यात्मिक संस्था है, जो आपके निर्देशन में जीवन के सच्चे मर्म को उजागर कर शाश्वत शांति की ओर समाज को अग्रगति प्रदान करती है| आपने दिव्य गुप्त विज्ञान का अन्वेषण किया है, जिससे साधक शीघ्र ही साधना की ऊँचाई पर पहुँच सकता है| संसार की कठिनाई का सहजता से समाधान कर सकता है|

स्वामी जी के प्रवचन यूट्यूब चैनल पर उपलब्ध हैं –

SadGuru Dham 

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मर कर जीना है एक कला

 

(गोरखवाणी पर दिनांक 31.01.2022 दिन रविवार को पुण्यभूमि प्रयागराज, माघ मेला में सद्गुरुदेव के दिव्य आशीर्वचन…)

 

 

प्रिय आत्मन्,

 

 

मरौ वे जोगी मरौ, मरण है मीठा|

तिस मरणीं मरौ, जिस मरणीं गोरष मरि दीठा||

 

यह तो अधिकांश लोगों ने सुना होगा| गोरखनाथ जी कहते हैं कि हे जोगी! मरो| हम कहेंगे- हे रामूदासजी! मरो, तो खिसिया जायेंगे न| तब क्या कहें! हे भुवनेश्वर! मरो तुम अब| कौन जायेगा, बोलो तो| कहेगा कि अरे गुरुजी, क्या कह रहे हैं- मर जायें! यह तो कह रहे हैं अपने जोगियों को-

मरौ वे जोगी मरौ, मरण है मीठा|

तिस मरणीं मरौ, जिस मरणीं गोरष मरि दीठा||

हे मेरे जोगी लोग जो बैठे हो, मरो| मरना सीखो| तो कहा कि गुरुजी, कैसे मरें! कहे कि जैसे मैं मरा| और मर कर मैं देख रहा हूँ, बड़ा मीठा है मरना| बहुत मीठा है! मरने की बात कह रहे हैं कि जीते जी मरो| तुमलोग मेरे यहाँ मिलने आओ और मैं कहूँ कि मरो जल्दी, तो दूसरे दिन से यहाँ आना-जाना बंद कर दोगे न! देखो, ठीक-ठीक मरना- एक कला है| आपलोग जो जगह-जगह सुनते हो श्रीमद्भागवत् कथा- यह और कुछ नहीं, आर्ट ऑफ़ डेथ है- मृत्यु की कला| मैंने ही इस पृथ्वी पर यह कहना शुरू किया, लेकिन अब बड़े-बड़े मंडलेश्वर भी कहने लगे धीरे से| लेकिन फिर श्रीमद्भागवत् कहते भी हैं| यह टीवी पर मैंने देख लिया|

मैं नम्रता से कह रहा हूँ कि मृत्यु की कला है- श्रीमद्भागवत्| इसीलिए जो आदमी मरना चाहता है, उसको कहा जाता है| परीक्षित मरना चाहता है, इसलिए उसको न सिखाया गया! वहीं से कथा शुरू हुई| धुंधकारी मर गया है, प्रेत बन गया है और प्रेत को मारकर अब पुनः उसे शुद्ध किया जा सकता है, इसलिए उसको सुनाया गया| हमलोग तो हर्षाते करते हैं- जन्म में भी सुनने-सुनाने लगे|

एक दिन कहीं से हमको निमंत्रण मिला था काशी में- बनारस से| तो भुवनेश्वर जी को कहा कि हम तो नहीं रहेंगे बच्चा, तुम चले जाना| ये चार-पाँच साधुओं के साथ चले गए शादी में| वो लोग आवभगत किये- बैठाये| ये बैठकर कहने लगे- राम नाम सत्य है.. राम नाम सत्य है! जिसकी शादी थी, वह आया कि बाबा, यह क्या कह रहे हैं, अरे शादी न है! कहा कि हाँ बच्चा, शादी है.. लेकिन राम नाम तो सत्य है न! तो कहा कि अरे यह मरने पर न कहा जाता है? अच्छा..ऽऽऽ मरने पर कहा जाता है..! कहा कि हाँ| तो कहा कि हम तो मरे हुए हैं न बच्चा, इसलिये अपने ही बारे में कह रहे हैं हम| कहा कि नहीं चलो, भागो यहाँ से| है न जी! तो देखो, इनको बैठाया भी नहीं; सुनते हैं कि भगा दिया|

तो शादी में ‘राम नाम सत्य..’ नहीं सुनाया जाता है| मरने के बाद सुनाया जाता है| अब सुनाने से कोई फायदा है? उसी तरह श्रीमद्भागवत्- आर्ट ऑफ़ डेथ, मृत्यु की कला है| लेकिन श्रीमद्भागवत् कथा हर्षाठे या हर्षाते कह रहे हैं पण्डित- विद्वान् सब| हालाँकि छत्तीसगढ़ में हमारा प्रवचन बहुत लोग सुनते हैं, तो हमारी बात सुनकर वहाँ पर बंद कर दिए कुछ लोग| अपशकुन भी होता है| चलो, ज्यादा नहीं कहेंगे- मेला वाले सब हल्ला करने लगेंगे| लेकिन होता है अपशकुन| उसके परिवार में ज़रूर कुछ न कुछ हो जायेगा| खैर! दूसरी कृष्ण की गीता है- आर्ट ऑफ़ लाइफ| भगवान् कृष्ण कहते हैं- Struggle against evil forces should be the aim in life. बुराइयों के खिलाफ संघर्ष की कला है श्रीमद्भगवद्गीता- जीवन जीने की कला| दोनों दिए हैं कृष्ण| लेकिन गीता हमलोग कम कहते हैं, और श्रीमद्भागवत् तो खूब हो रहा है| टीवी पर जो चैनल देखिये- जिसको देखो, भागवत ही कह रहा है| खैर! यहाँ तो रामायण वगैरह सुनाई पड़ता है मेला में|

गोरख कहते हैं- ‘मरौ वे जोगी मरौ..’| मोम के घोड़े पर बैठो और आग से निकलो- पार कर जाओगे? मोम का घोड़ा यदि अग्नि में पहुँचा तो अग्नि और प्रज्ज्वलित होगी न, या बुझेगी? उसी तरह से हमलोग काम, क्रोध, मद, मोह, लोभ, अहंकार- अर्थात् पूरी माया को पकड़कर तपस्या में प्रवेश करते हैं| अग्नि माने तपस्या| मोम माने वासना- काम, क्रोध, मद, मोह, लाभ अहंकार| अब समझ लो, क्या हाल होगा? वही हो रहा है| हमलोगों को एक लालच दे दिया गया है कि त्रिवेणी संगम में स्नान करेंगे तो सब पाप नष्ट हो जायेगा| अब पूछो- किसी का धुलता है? कोई मर्डर करके आये, त्रिवेणी में स्नान कर ले, उसका केस ख़त्म हो जायेगा? अपराध माफ़ हो जायेगा? बोलो| नहीं होगा| तब? जब यहाँ की अदालत में नहीं माफ़ हो रहा है तो वहाँ कैसे माफ़ होगा? यह तुमलोगों को एक लॉली पॉप दिया गया है| इसलिए कि तुम यहाँ पर आओगे- विभिन्न प्रकार के साधु-महात्मा उपदेश दे रहे हैं; उनका कोई उपदेश तुमको लग गया तो तुम्हारा जीवन बदल जायेगा| कबीर साहब कहते हैं-

तीर्थ गए फल एक है, संत मिले फल चार|

सद्गुरु मिले फल अनंत है, कहत कबीर विचार||

तीर्थ जाने का फल एक यही है| क्या है फल? चारों ओर तो संत दे रहे हैं प्रवचन| कोई संत मिल गया- टकरा गया और उसका उपदेश तुममें लग गया- प्राप्त कर लिया तो चारों फल मिल गए- काम, अर्थ, धर्म और मोक्ष| चार फल यही न हैं! अब क्या चाहिए! और सद्गुरु यदि मिल गया, तब तो फल अनंत हो गया| इसलिए यह चॉकलेट दिया गया| हमारे यहाँ प्री-नर्सरी स्कूल खुला है| केजी- क्लास, यू-केजी भी है| ऊपर वाली कक्षाओं में लड़कों के लिए एसी नहीं लगा है| केजी- यू केजी के क्लास रूम्स में एसी है, पूरा कारपेट है| देखा है न, दिल्ली में! खेलने के बहुत सारे साधन दिए गए हैं| उसमें पढ़ाई छोड़कर सब काम होता है- लड़कों को खिलाओ- पिलाओ- बहलाओ| टॉफ़ी-चॉकलेट दो| बस, पढ़ाई मत करो| समझे! हम देखते हैं कि अच्छा है यार, बस पढ़ाई छोड़कर सब!

उसी तरह से हमारी भी बुद्धि बच्चे की है- बालवत्| इसीलिए ऋषि-मुनियों ने एक चॉकलेट पकड़ा दिया कि तीर्थ करो- गंगा स्नान करो| तुम्हारा सब पाप नाश हो जायेगा| तो कहा कि अच्छा! चलो, हम पाप करेंगे और फिर मौनी अमावस्या को नहा लेंगे.. अगले साल फिर पाप लेकर आ जायेंगे| इसीलिए पहले कोर्ट भी गंगा के तट पर बनाया जाता था| हर जगह कोर्ट देखोगे पुराना- नदी के, गंगा के तट पर| इसलिए कि तुमको डर लगेगा पाप करने में- सच बोलोगे| लेकिन हमसे तो और वज्र-लेख पाप हो जाते हैं| कहते हैं कि अब तो त्रिवेणी संगम से नहाकर पाप कट गया, चलो अब दूसरा पाप करें! फिर अगले साल नहा लेंगे| तीर्थ का फल- बस, एक यही है कि यहाँ आये हो तो सत्संग सुन लो| और हम बता रहे हैं कि इस बार नवरात्र में दिल्ली में हो रहा है- साधना के लिए पहुँच जाओ| कल करा रहे हैं चौका आरती- अनंत फलकारी यह| उसमें सम्मिलित हो जाओ| इसका यही फल है|

गोरख जैसे कह रहे हैं, मरकर देख रहे हैं- मरा हुआ आदमी कह सकता है क्या? कैसे कहेगा! तुम्हारा काम, क्रोध, मद, मोह, लोभ, अहंकार- वासना का मर जाना ही जोगी की मृत्यु है| तुम कुछ भी कह रहे हो- उस पर कोई अंतर नहीं पड़ रहा है| लाओत्से का नाम सुना होगा, लाओत्से कहते थे कि कोई आदमी दुनिया में हमको हरा ही नहीं सकता है| एक आदमी गया उसके यहाँ| कहा कि अरे! तुमको कोई हरा नहीं सकता है? मैं हराऊँगा| वह दौड़कर जाता था कि अभी तुमको हम पटकते हैं मारकर| और ज्यों ही वह दौड़कर नजदीक जाता, लाओत्से पहले ही लेट जाता था कि आओ, छाती पर बैठ जाओ| तुम जीत गए- मैं हार गया| कहा कि मतलब?

कहा कि हमको ज़मीन पर कौन हरा सकता है! तुम आये हो पटकने के लिए न..! मैं पहले ही सो गया- लो, बैठ जाओ| लाओत्से ने कहा कि हमको हराने वाले ने जन्म ही नहीं लिया है| न दुःख पहुँचाने वाला! मैं लडूँगा ही नहीं- तू हराएगा क्या हमको! तू पटकने आ रहा है, मैं पहले ही पटका जाता हूँ! कोई हमको टेंशन नहीं|

तो गोरखनाथ वही कहते हैं कि मरो| तिस मरणीं मरौ, जिस मरणीं गोरष मरि दीठा|| जैसे हम मरे हुए हैं, कोई इच्छाएं नहीं हैं| एक दिन लोगों ने पूछा कि गुरुजी, आप क्या चाहते हैं? हमने कहा कि इस पृथ्वी का सबसे खुशहाल आदमी मैं हूँ| लोग माने नहीं, पूछा- कैसे? हम कहे कि अरे मालूम नहीं हो रहा है, मेरी कोई इच्छा ही नहीं रह गई! तुमलोगों के साथ काम कर रहा हूँ, बोल रहा हूँ लेकिन मेरी कोई इच्छा नहीं| I do not have any will. I don’t have any desire. जनक को तुमलोग खोज रहे हो| देख लो, जनक बैठे हैं| सामने हम हैं न! बहुत पहले जो डिजायर थी, ख़त्म हो गयी| एक व्यक्ति थे- आईएस| एक दिन वो कहे, टोके हमको कि गुरुजी, आप कुछ नया संकल्प लेते हैं! तब हम घबराए कि क्या मामला है? कहा कि जितना संकल्प लेंगे न.. उतना बार जन्म लेना पड़ेगा! तुमने संकल्प इस जन्म में लिया, वो काम नहीं हो पाया, फिर अगले जन्म में करोगे| फिर नहीं हुआ, तो फिर अगला जन्म..| जितना संकल्प लोगे, उतना जन्म लेना पड़ेगा| यह जन्म कुछ नहीं, तुम्हारे संकल्पों का फल है| यह 15-20 साल पहले की बात है- मैंने पकड़ लिया कि आज से नो डिजायर| कोई संकल्प नहीं| कामवा तो सब करते ही हैं- महात्मा लोगों को डाँटते ही हैं| हैं न! नहीं मिलता है तो फोन पर डाँट देते हैं|

तो करो- काम करो, संकल्प न लो| यदि काम का कोई संकल्प ले लिया तो उसका विकल्प मत चुनो| उसको पूरा कर दो| नहीं तो वो संकल्प पीछा करेगा| जितना संकल्प ले लिया, उसको पूरा करो| और नहीं, तो समाधि में जाकर के सारे संकल्पों को डिस्ट्रॉय करो- ख़त्म करो| जब तक से बीज भुनता नहीं है (चना का या अन्य किसी का)- तब तक से जमेगा न! संकल्प ही बीज है जन्म और मरण का| इसलिए गोरख संकल्प रहित हो गए| बीज भून दिया- निर्बीज हो गए हैं| इसलिए कह रहे हैं कि जैसे गोरख मरा है, वैसे ही तुम भी मरो| तिस मरणीं मरौ, जिस मरणीं गोरष मरि दीठा|| ऐसे मरो और देखो, जैसे गोरख मरकर देख रहा है|

 

मरना भी एक कला है- सीखो, फिर देखो

आप भी कभी देखो| जब मृत्यु होने लगे, वही सबसे कीमती समय है| कहोगे कि अरे गुरुजी, आप मरने को कह रहे हैं! देखो, मृत्यु- सबसे कीमती समय है| सजग हो जाओ| और चुप- सजग होकर देखो| कैसे तुम्हारा प्राण निकल रहा है! यदि उस समय सजग हो गए, निकलते हुए प्राण को देख लिया, बस उसी समय तुम्हारी मुक्ति हो गयी| तुम मुक्त हो गए| बस यह तकनीक है, देखो| लेकिन कैसे होगी प्रैक्टिस? तो अभी से देखो| तुममें जो डिजायर उत्पन्न होती है, सुख उत्पन्न होता है, दुःख उत्पन्न होता है- उसको देखो| चुप- साक्षी बनकर देखना शुरू करो| क्यों व्याकुल हो कि यह हो जाये- वह हो जाये| होनहारी तो होगा ही, होगा| हम सीक्रेट साइंस दे दिए हैं, यदि बहुत कठोर डिजायर है तो डिवाइन सीक्रेट साइंस से अपने संकल्प को पूरा कर लो| नहीं मानोगे, करना ही है तो यही करो| डिवाइन सीक्रेट साइंस- इस पृथ्वी के लिए कामधेनु है| इस मेले में घूम आओ- अभी किसी के पास नहीं है यह विद्या| क्या जी, रामूदास जी, आप तो बचपन से यहाँ रहते आये हैं, कहीं है? लेकिन हम इतना सस्ते में दे दिए हैं कि तुमलोग उसका ख्याल नहीं करते| जो हमसे काम कर रहे हो, तुम यदि मत बोलो और अपने ही चुपचाप सीक्रेट साइंस से काम करो तो तुम्हारी डिजायर पूरी हो जाएगी| लेकिन फिर दूसरी डिजायर, इच्छा मत करो| दूसरा संकल्प मत लो| यह सुरसा की तरह बढ़ते जायेगा- बढ़ते जायेगा| फिर तुम दुखी होगे न!

तुमलोग रोज़ कथा में सुनते हो, भगवान् शिव की पत्नी सती योगसिद्ध है| लेकिन उसकी भी इच्छाएं हो गयीं, संदेह किया| कहा कि ये राम नहीं हैं! हालाँकि यह कथाओं का जोड़ है| भ्रमित है वह कहने वाला भी| अब हम कह देंगे तो फिर तुमलोग झगड़ा करोगे| लेकिन अब जाएगी हमारी बात पूरी दुनिया में| सती का कथा-प्रसंग है सतयुग का| यह बताओ कि कब शंकर जी की शादी हुई? और सती मरी है रामजी के समय में! आदमी जरा ध्यान ही नहीं देता है| यह सतयुग की घटना है| राम जी त्रेता के अंत में आये हैं, जंगल जा रहे हैं| तो क्या सती उस समय घूम रही है, देख रही है? त्रेता में भगवान् शंकर से शादी हुई है क्या? बोलो| लेकिन यहाँ ध्यान ही नहीं जाता है|

मैंने बचपन में जब रामायण पलटा था, उसी समय यह मार्क करके छोड़ दिया| हमारा पुराना रामायण, महाभारत सब देखना- रखा है अभी भी| मैं हायर सेकेंडरी में जब था, उस समय मैंने पढ़ लिया था| यह गठजोड़ है, कर दिया गया- कथा सुन्दर लगने के लिए| सती का वियोग- सतयुग का है प्रसंग| लेकिन सती के मन में वासना थी, अहंकार आ गया; इसलिए योगाग्नि में जली या यज्ञ में जली| पुनः उसका जन्म हुआ| इसलिए कि मरते समय कहा कि मैं इस संकल्प से मर रही हूँ कि मेरे अन्दर संशय न रहे| तब पार्वती के रूप में आई| वो ही पार्वती दुर्गा है|

पार्वती पत्थर की लड़की नहीं, हिमालयराज की पुत्री है| क्षत्राणी के रूप में अस्त्र-शस्त्र लेकर आई है| वही दुर्गा भी कहलाती है| अब उसकी कोई इच्छा नहीं, नो डिजायर| इसलिए पार्वती पुनः नहीं मरी| अमर हो गयी- मरौ वे जोगी मरौ, मरण है मीठा| तिस मरणीं मरौ, जिस मरणीं गोरष मरि दीठा|| एक बार मर कर देख ली न! लेकिन यह सब घटना सतयुग की है| देखो, एक बाबा हमारे यहाँ रामयणिया हैं, वो कह रहे हैं कथा| त्रेता के अंत में है भगवान् राम की सब कथा| तो यह हम नहीं कहते हैं कथावाचक की गलती है, कथा में इंटरेस्ट क्रिएट करने और उसको गरिमामय बनाने के लिए इधर-उधर से कुछ जोड़ा जाता है- घटाया जाता है| उस पर कमेंट नहीं करते हैं, लेकिन समझो कि यह दो समय की कथा है| यह भी कभी सोचा है कि क्यों इसको कहा जाता है? इसलिए कि तुम भी जब मरते हुए देखोगे कि मैं तो आया था यह-यह काम करने के लिए, संसार में परमात्मा को प्राप्त करने के लिए- यह किस हम चक्कर में पड़ गए! क्या कर दिए! ‘आये थे हरि भजन को, ओटन लगे कपास|’ यह सोचते हुए, अपनी मृत्यु को जब देखोगे तो सती की तरह तुम्हारा दूसरा जो जन्म होगा, वह पार्वती की तरह होगा| और जब पार्वती की तरह होगा, तब तुम स्वयंभू हो जाओगे- मुक्तत्व को प्राप्त कर लोगे| आवागमन से मुक्त हो जाओगे| इस मरने की कला की तरफ गोरखनाथ जी इशारा कर रहे हैं|

गीता में यह भगवान् कृष्ण भी कहे हैं कि तुमको समुद्र नहीं डुबा सकता है, अग्नि नहीं जला सकती| कबीर साहब भी कहते हैं-

‘माया मरी न मन मरा, मर मर गया शरीर|

आशा तृष्णा ना मरी, कह गए दास कबीर||’

जग में कोई मरता नहीं है, केवल शरीर बदलता है| जब आप यह भावना कर लो कि मैं मृत्यु को साकार कर रहा हूँ- देख रहा हूँ, तो जैसे आप कपड़ा बदलते हो, उसी तरह से देखोगे कि मैं यह दूसरा शरीर रूपी वस्त्र धारण कर रहा हूँ| मैं शरीर से निकलने की विधि बताता था, अब थोड़ा कम कर दिया है| मैं बद्रीनाथ में साधना करा रहा था-शरीर से निकाल दिया| एक चेला था प्रह्लाद, वह निकला तो वापस आ नहीं रहा था| सब लोग तो आ गए आधा घंटे में; प्रह्लाद आया ही नहीं| दो-तीन घंटा नहीं लौटा| हम कहे कि यह तो गया- जय राम जी की! तीन-चार घंटा लगा था, उसको वापस लाने में| कुछ तकनीक अपनाये- ‘डिवाइन सीक्रेट साइंस’ तुमलोगों को जो दिया गया है; गिरफ़्तारी-वारंट भेजे| जब आया होश में, पूछा- ‘क्या हुआ रे? कहा कि गुरुजी, बड़ा दुःख है.. रोज़ पत्नी झगड़ा करती है| जब हम गए तो पूर्वज लोग मिल गए- शिव जी मिल गए| हम कहे कि अब यहीं रहेंगे, जायेंगे नहीं| आने का मन नहीं था- बड़ा दुःख है घर में|’ ‘तब? कैसे आ गया रे!’

‘आप कुछ दिव्यास्त्र छोड़े न, आकर चारों ओर से घेर लिए हमको| हमारे पितर लोग, देवता लोग सब कहे कि तुम्हारा गुरु बहुत शक्तिशाली है| हम कुछ कर नहीं सकते हैं, देखो तुमको घेर लिए हैं दिव्यास्त्र सब| हमलोग तुम्हारा हाथ पकड़ते हैं तो करंट मार रहा है इतना दूर|’

अब बताओ, लाखों किलोमीटर ऊपर कैसे वह बिजली का करंट गया!

‘तो वो लोग सब कहे कि करंट मार रहा है, तुम जाओ| तब आपका वह दिव्यास्त्र जो है, चारों ओर से घेरकर के.. लाकर इसमें ढुका दिया शरीरवा में| लेकिन गुरुजी, फिर हमको छोड़ दीजिये- हम जायें|’

हमने कहा कि तुमको जाना है तो अपने घर जाकर जो करना हो- करो| यहाँ हमारे यहाँ मर गए तो पुलिस मानेगी नहीं| भेज देगी हमको जेल- होगी नहीं बेल|

तो देखो, तब से हम शरीर से बाहर निकालने वाली साधना कराना कम कर दिए| यदि परिपक्व नहीं है आदमी, तो नहीं करना चाहिए| यह शरीर से निकलने की घटना हम इसलिए बता रहे थे कि शरीर की कीमत देख लो बाहर निकलकर| क्या कीमत है! श्मशान घाट पर पड़ा रहेगा- कोई कीमत नहीं| बिना शरीर के बड़ा खुश हो! और तुम्हारे नजदीक जो हैं, वह भी देख लोगे कि कौन मित्र है, कौन शत्रु? कोई मित्र नहीं है| सब शत्रु ही हैं- हर कोई अपना कर्जा वसूल रहा है| कोई लड़के के रूप में, कोई लड़की के रूप में, कोई पत्नी के रूप में तो कोई पति के रूप में वसूल ही रहा है| सब एक दूसरे का क़र्ज़ ही ले रहे हैं| लेकिन हमलोग मोह ग्रसित इतना हैं कि उसको भूल नहीं रहे हैं| बस, आज से याद रहे- मरौ वे जोगी मरौ, मरण है मीठा| तिस मरणीं मरौ, जिस मरणीं गोरष मरि दीठा|| अब जब तुमलोग मेरे यहाँ आओ, कहेंगे यही कि मरो| पत्नी तुम्हारी बिगड़ जाएगी न कि क्या कह रहे हैं! लेकिन इसे तुमलोग याद रखो| ऐसे मरो, जैसे गोरख देख रहे हैं कि बड़ा मीठा लग रहा है| मीठा मतलब? बड़ा आनंददायक लग रहा है| जैसे कोई तुम्हारा वस्त्र- फटा-पुराना निकालने लगे और तुम्हारे सामने कीमती वस्त्र जो रखा है- हजारों करोड़ों रुपये का; तुमको पहनाने लगे तो तुम खुश होगे या दुखी? कहोगे न कि अरे गुरुजी पहले क्यों नहीं निकाल दिए- नया वस्त्र पहन लेते! वही ही मृत्यु| तो ऐसा कर्म करो कि तुमको अच्छा वस्त्र मिल जाये| बस आज इतना ही… धन्यवाद!

 

सदगुरुदेव की जय!

 

सद्गुरु टाइम्स पत्रिका, सितम्बर 2022 से साभार…..

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‘समय के सदगुरु’ स्वामी  कृष्णानंद  जी महाराज

आप सद्विप्र समाज की रचना कर विश्व जनमानस को कल्याण मूलक सन्देश दे रहे हैं| सद्विप्र समाज सेवा एक आध्यात्मिक संस्था है, जो आपके निर्देशन में जीवन के सच्चे मर्म को उजागर कर शाश्वत शांति की ओर समाज को अग्रगति प्रदान करती है| आपने दिव्य गुप्त विज्ञान का अन्वेषण किया है, जिससे साधक शीघ्र ही साधना की ऊँचाई पर पहुँच सकता है| संसार की कठिनाई का सहजता से समाधान कर सकता है|

स्वामी जी के प्रवचन यूट्यूब चैनल पर उपलब्ध हैं –

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