सुन्दरकाण्ड

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1 Aug 202419 min read

Published in spiritualism

सुन्दरकाण्ड

 

 

||श्री सद्गुरवे नमः||

श्रीमद् गोस्वामी तुलसीदास जी विरचित श्रीरामचरितमानस

 

दिनांक 09.01.2020, दिन गुरुवार को सद्गुरुधाम आश्रम अमरावती, (अकोट, महाराष्ट्र) में सद्गुरुदेव की दिव्य आशीर्वचन…

 

प्रिय आत्मन्,

सुन्दरकाण्ड पर कल हम बोले| सुन्दरकाण्ड में सब सुन्दर है और सुन्दरकाण्ड की व्याख्या सुनने वाला भी जब उसको अपना लेता है, तो सब सुन्दर हो जाता है| हम लोग जो कथा सुनते हैं, उसको थोड़ा-थोड़ा भी अपने में उतार लें तो हम भी राम के तुल्य, सीता के तुल्य ही जाएगें| अक्सर मैं कहता हूँ कि आप राम के, सीता के खानदान के हो, वंशज हो| कहते हो कि नहीं, गुरुजी हम ऐसे हैं| तब? थोड़ा कम हैं| अरे थोड़ा कम हो तो क्या रावण हो! बताओ तो| औरतों को कहते हैं कि तुम सीता की वंशज हो, सीता हो| न, ऐसा नहीं है| तो क्या सूर्पनखिया हो? अरे गाली दे रहे हैं! समुद्र का जल चाहे किनारे का टेस्ट करो या फिर बीच या कहीं अन्य जगह का टेस्ट करो, एक ही जैसा खारा होगा| नमक मिलेगा| गंगा पानी जहाँ से लोगे, एक ही रहेगा| इसी तरह से भारतवर्ष के जब आप हो तो आप में बुद्ध और महावीर के, राम के और कृष्ण के, दुर्गा और सीता के ही जीन्स हैं और आप सब सीता तुल्य हैं- राम तुल्य हैं| यह बात जब तुलसीदास जी को मालूम हुई तब उन्होंने भी कहा-

‘सियाराम मय सब जग जानी, करहु प्रनाम जोरि जुग पानी||’

ऐसा क्यों कहे हैं? चूँकि सियाराम मय अब सृष्टि देखने लगे| इसलिए आप अपने को भान करो कि हम सीता हैं, राम हैं! करोगे- हो जाओगे| लेकिन हमको गुरु की बात पर प्रतीति नहीं है|

 

गुरु के वचन प्रतीति न जेही| सपनेहु सुख सिधि सुलभ न तेही||

जे गुरु पद पंकज अनुरागी| ते लोकहुँ वेदहुँ बड़भागी ||

 

गुरु के वचन पर जिसको प्रतीति (विश्वास) नहीं होता है, वह स्वप्न में भी सुखी नहीं रहेगा, भले कह लेगा| जैसे कोई विद्यार्थी किसी स्कूल में नाम लिखवा लेता है और कहता है कि हम पाँच साल से इसी क्लास में पढ़ रहे हैं| तब?

एक विद्यार्थी ने अपने गुरुजी से पूछा कि गुरुजी, आप कितने पढ़े हैं? कहा कि बच्चा, हम तो एम.ए. किए हैं| कैसा आपका करियर रहा है? हम तो थ्रू आउट स्कॉलर रहे हैं, कॉलेज में पढ़ाते हैं| लेकिन तुम्हारे कहने के चलते तुमको हम ट्यूशन पढ़ाते हैं| तो कहा कि गुरुजी, हम कितने दिन में आपकी तरह हो जायेंगे? कहा कि बेटा, तुम तो हमारी तरह नहीं होगे, लेकिन हम अब तुम्हारी तरह बनने जा रहे हैं| जब नहीं पढ़ोगे, तब गुरु तो पढ़ेगा नहीं, गुरु जी क्लास देगा-पढ़ाएगा| क्या करेगा बेचारा!

तो हम लोगों के भी मन में कहीं न कहीं यही भावना रहती है| गुरु जो कहते हैं उसपर प्रतीति रखो, विश्वास करो और अपने को आमूलचूल बदल लो| तुलसीदास जी ज्ञान में बहुत समृद्ध हैं- जानकार| सुन्दरकाण्ड का दूसरा श्लोक है, कह रहे हैं –

 

नान्या स्पृहा रघुपते हृदयेऽस्मीदिये

सत्यं वदामि च भवानखिलान्तरात्मा|

भक्तिं प्रयच्छ रघुपुङ्गव निर्भरां मे

कामादिदोषरहितं कुरु मानसः||2||

 

कहते हैं- ‘नान्या स्पृहा’- कोई मेरी इच्छा नहीं रह गई है| हे रघुपते! तुम तो सबके ह्रदय में विराजमान हो, घट-घट में विराजमान हो| मैं सच कहता हूँ, तुम पूरे विश्व में व्याप्त हो, सबके अंतरात्मा ही हो| सब जानते ही हो, मेरे ह्रदय में कोई इच्छा अब शेष नहीं है|

हमलोग कभी भी देवी और देवताओं के यहाँ जब जाते हैं तो इच्छा लेकर| देवी-देवता कुछ तुम्हारी इच्छा भी पूरी भी करते हैं, लेकिन 90% नहीं करते| तुम इच्छारहित होकर जब गुरु के यहाँ, गोविन्द के यहाँ जाओगे तो तुम्हारी इच्छा अभी की ही नहीं, यदि पूर्व में भी रह गई है तो पहले वह पूरा करेगा, इसके बाद आगे चलेगा| इसलिए यहाँ आया है- नान्या स्पृहा| भक्ति, एकदम इच्छारहित होकर करो| तुम आकर केवल कहो कि गुरुजी! आपके यहाँ हम पाँच साल से भक्ति किये हैं, दस साल से किये- हमको दिए क्या हैं आप? यह तो वेश्यावृति हो गई न! इसमें प्रार्थना करते हैं तुलसीदास जी कि मेरी कोई स्पृहा, कोई इच्छा ही नहीं है, प्रभो! भगवान् कह रहे हैं कि अरे वह तुमको मार रहे हैं सब काशी वाले| कहा कि मारने दीजिए, हमारी कोई इच्छा नहीं है, आप टेन्शन मत लिजिए| सत्यं वदामि.. मैं यह सत्य कह रहा हूँ, आप इस भुवन के अंतरात्मा हैं|

 

भक्तिं प्रयच्छ रघुपुङ्गव निर्भरां मे कामादिदोषरहितं कुरु मानसः||’ अर्थात् मेरे ह्रदय में केवल भक्ति दीजिए, कामादि दोष से मैं रहित हो जाऊँ और मनसा- केवल भक्ति में निरंतर लगा रहूँ| पहले कहा है ‘सत्यं वदामि’, फिर आया है ‘कामादिदोषरहितं कुरु मानसः’| आप सत्य कह रहे हैं, कैसे कह रहे हैं? जब तक हम काम-दोष से मुक्त नहीं हो सकते हैं, सत्य नहीं कह सकते हैं| काम का मतलब सेक्स ही नहीं, काम का मतलब मेरी इच्छाएं| पद मिले, प्रतिष्ठा मिले, पैसा मिले- यह सब काम ही कहलाता है| लेकिन इससे मुक्त कैसे होगे? इसकी तकनीक गुरु के पास रहती है| जब तुम अपने ह्रदय में गुरु को ही बसा लोगे तो वह काम तुमसे विदा हो जाएगा- यह टेक्निक समझ लो| इसीलिए कबीर साहब कहते हैं-

 

श्वास श्वास में नाम ले, वृथा श्वास मत खोय|

न जाने केहि श्वास में, आवन होन न होय||

 

तकनीक बता दिए कबीर साहब| गुरु जो मंत्र देता है, प्रत्येक श्वास में अपनेआप जपो| जपने का प्रयास भी नहीं, जपना- जाप आपका स्वभाव हो जाए| तुम यह कहते हो कि रोज मैं भोजन करता हूँ, फिर बीमार क्यों पड़ गया? अब मैं भोजन नहीं करूँगा| यह कहते हो कभी? कहते हो कि मैं रोज कपड़ा पहनता हूँ, फिर भी मुझे सर्दी क्यों लग गई? अब कपड़ा पहनूँगा ही नहीं! यह नहीं कहते हो| लेकिन यह जरूर कहोगे कि भगवान्! हमारा यह काम नहीं हुआ, अब मैं नहीं करता| केवल गुरु और गोविन्द पर दाँव लगाते हो| इसका मतलब आपका स्वभाव नहीं है भक्ति| आप बिजनेस में उतरे हो- बनियागिरी में| यदि काम आपके मन में रहेगा- कामरूपी दोष रहेगा तो आपका किया गया भजन-पूजन, वह सेंट्रलाइस्ड काम के इर्द-गिर्द ही घूमेगा| एक इन्च भी आगे नहीं बढ़ेगा|

आप लोग सब श्रीमद्भागवत् की कथा सुनते हैं| हजारोंहज़ार- लाख लोग सुनते हैं न| कथा शुरू कहाँ से होती है? आत्मदेव पण्डित को काम-वासना आ जाती है| कहा कि हमको लड़का चाहिए| उनको लड़का नहीं है, पत्नी है धुंधली|  मैं केवल हिंट कर रहा हूँ| काम आ गया तो वे जंगल चले जाते हैं आत्माहत्या करने के लिए| अरे आत्महत्या ही करना है तो क्या जंगल जाना ज़रूरी है! घर में ही कर लो|

एक दिन मुल्ला नसरुद्दीन भी अपने पत्नी से खिसिया गया| कहा कि अब मैं बचूँगा नहीं, आत्महत्या करना चाहता हूँ| एक दिन, दो दिन कहा| तीसरे दिन पत्नी कही कि तुम कहते हो, करते क्यों नहीं मुल्ला? कहा कि अरे ये तो मना नहीं रही है हमको| तो कहा कि कल मैं चल जाऊँगा- सुबह-सुबह आठ बजे| कल मुहूर्त लिखा लिया है! हाँ| तो कहा कि ठीक| अगले दिन आठ बजे उसकी पत्नी कही कि मुल्ला! आठ बज गया, घड़ी देखो| कहा कि टिफिन तैयार कर दिया? कहा कि मुल्ला! तुम आत्महत्या करने जा रहे हो, टिफिन लेकर जाओगे? भूख लगेगी, तब?

पत्नी फटाफट टिफिन बनाकर के पकड़ा दी कि लो| बहाना तो मत खोजो|

बाहर निकला मुल्ला, फिर लौट आया| अब क्या हो गया? कहा कि टिफिन में आचार नहीं दिया था| फिर डाल दी अचार कि लो| चलो अच्छा, डाल देते हैं| मुल्ला फिर गया| फिर पाँच मिनट में लौटा| अब क्यों लौट आए? वर्षा न आ रही है! छाता दो| कहा कि छाता..! फिर छाता खोलकर दे दिया कि लो|

कहा कि गजब हाल है! जरा भी इसके पास ह्रदय नहीं है कि मैं बहाना कर रहा हूँ, मुझे बचावे| आस-पड़ौस के लोग भी नहीं बोल रहे हैं कि अरे तुम पत्नी कैसी हो! सब मुस्कुरा रहे हैं| मुल्ला चल दिया| अब क्या करे, जाना पड़ेगा न! अब देखा कि रेलवे लाइन कहाँ है? तो रेलवे लाइन जाकर देखा खूब बढ़िया से| यहाँ- वहाँ आधा घंटा देखा| एक रेलवे लाइन देखकर के मुल्ला उसी पर गर्दन रखकर के, अपना टिफिन बगल में रखकर सो गया| अब पोर्टर आया कि अरे मुल्ला, यहाँ पर क्या सोए हो! कहा कि ट्रेन आएगी, काट देगी| कटने के लिए, मरने के लिए आये हैं न! कहा कि अरे मुल्ला! देखे नहीं रहे हो, इसपर जंग लगा है, ट्रेन तो आती ही नहीं| यह शंटिंग लाइन है, उस पर काहे नहीं जा रहे हो? कहा कि अरे पागल, इतने मूर्ख बने हैं क्या!

तो देखो, हम सब इतनी चालाकी करते हैं- वासना में| वासना खूब चालाकी करती है| उसी तरह से वह पण्डित विद्वान हैं| तपस्वी हैं| उस ग्रन्थ में आया है, उनकी तपस्या इतनी है कि सूर्य की तरह तेज फैला हुआ है तपस्या से| लेकिन काम दोष से मुक्त नहीं हैं| निकल गए हैं आत्महत्या करने के लिए- जय सच्चिदानंद! अब वहाँ पर आत्महत्या करने जा रहे हैं, जहाँ एक संत हैं| देखो, उस संत-संन्यासी का कहीं नाम, जाति नहीं आ रहा है| संत ‘संत’ है, तपस्वी ‘तपस्वी’ है| तो उसको जहाँ देख रहे हैं, वहीं मंडराने लगते हैं कि हम आत्महत्या करेंगे|

तो उधर ही जहाँ कोई नहीं है, वहाँ कर लेना चाहिए| जाकर कर लो| मुल्ला की तरह क्यों बात बना रहे हो! हम वही प्रसंग सुनाएंगे जो तुमने नहीं सुना होगा| अब संत ने देखा तो पूछा कि क्या बात है पण्डित जी, कहाँ घूम रहे हैं? कहा कि हम आत्महत्या करने आये हैं| अब बताओ, यह क्या कहा जाता है! कहा कि क्यों आत्महत्या करन चाहते हो, बैठो-बैठो| अब जरा संत का स्वभाव देखो, यह कारुणिक है| संत का स्वभाव कारुणिक होता है| दयालुता आर्टिफीसियल होती है, करुणा ह्रदय से उप्तन्न होती है| इसलिए संत कारुणिक है- संन्यासी कारुणिक|

हम लोग संत-साधु की शिकायत कर लेते हैं कि ऐ.. बड़ा फालतू है, ठीक नहीं है| कहते हो कि ठीक नहीं है, यह ठीक है; लेकिन तुम संत बन जाओ और ठीक होकर दिखा दो न! कौनहुँ नहीं हो रहा है| वो स्वयं हो नहीं रहा है, और जो हो गया है, उसी पर टॉन्ट मारेगा! चलो एक बार होकर दिखा दो- हिम्मत नहीं है|

खैर! वह संत समझाने लगे, सुनो इधर आओ, बैठो| जीवन का उद्देश्य ‘पुत्र’ नहीं है| यह माया है| क्यों ग्रसित हो! अब उतना नहीं कहेंगे, बहुत उपदेश दिए, समझाने लगे| लेकिन जब तुम्हारे ह्रदय में वासना है तो उपदेश अच्छा नहीं लगेगा न| प्लासटिक का कवर ओढ़ लो या घड़ा बाहर मुँह उलटकर रख दो| कितनी भी मूसलधार वर्षा हो, पानी आएगा?

उन पर वो उपदेश काम नहीं किया| घंटों उपदेश देने के बाद संन्यासी ने पूछा- समझ गए! कहा कि न| हमको एक पुत्र का आर्शीवाद दीजिए, तभी हमको समझ में आएगा| वह उससे मुक्ति भी माँग सकते थे| अपने जीवन में बदलाव, भक्ति भी माँग सकते थे| लेकिन माँगा क्या- वासना, पुत्र| किस लिए? अपना खानदान चलाने के लिए|

दशरथ जी भी पुत्र माँगे हैं गुरु से| क्यों? उनके माँगने के पीछे क्या कारण है? कहा कि ऋषिवर! हम तो वृद्ध हो गए| हमारे जाने के बाद गुरु की, संत की, संन्यासी की सेवा कौन करेगा? इसका मतलब, सेवक माँग रहे हैं न! किसका सेवक? साधुओं का, संन्यासियों का सेवक होना चाहिए| कौन करेगा हमारे मरने के बाद! दोनों के माँगने में अंतर है! दोनों तो एक ही माँग रहे हैं- पुत्र न| तो उनके गुरुजी प्रसन्न होकर कहे कि एक नहीं, चार मिलेगा| अरे, तुम धर्मार्थ काम कर रहे हो न! और देखो आत्मदेव पण्डित कह रहे हैं कि हमारा खानदान कैसे चलेगा? हमारे पास बहुत संपत्ति है, पद है, प्रतिष्ठा है, चेलाई बहुत लम्बा चौड़ा है…संभालेगा कौन? बहुत हमारे यजमान हैं, यजमानी कौन संभालेगा? इसलिए माँग रहे हैं न| तब कहा कि मानोगे नहीं, तो क्या करें? वह एक फल दे दिए कि ले जाओ| फल को खिला दो अपनी पत्नी को| लेकिन वह ‘पत्नी’ हो तब तो! भारत में धर्मपत्नी न कहलाती है! अब तो तुम लोग कहने लगे हो कि हमारी पार्टनर है| अरे पार्टनर! तो कहते हो कि लाइफ पार्टनर|

हम पूछते हैं कि अरे यह कौन चीज का बिजनेस करने लगे यार! अरे गुरुजी, आप समझते नहीं न हैं..| हम कहे कि न| यह लाइफ का भी बिज़नेस होने लगा क्या? तुम्हारा और उसका लाइफ का कॉन्ट्रैक्ट है? अरे भारत में धर्मपत्नी है, इसलिए जब तुम कोई धार्मिक काम करते हो- संकल्प लेते हो या दान करते हो, तो पत्नी तुम्हारे हाथ के नीचे अपना हाथ लगाती है| जानते हो, क्यों? मान लो कि तुमने आज दो हजार, दस हजार, ग्यारह हज़ार या एक लाख का संकल्प ले लिया| पत्नी जानती है, ये कभी भी बदल जायेंगे, मुल्ला हैं| इसलिए वह अपना हाथ लगाती है, ठेल देती है| पीछे नहीं करने देती| नहीं तो तुम फट से हाथ हटा लोगे| पत्नी पूछेगी, क्या है? अरे पैसवा कम था न! वो जानती है, इसलिए उसको धर्म की पत्नी कहा गया है| औरत जो है पति से छिपाकर देती है कि ये मुल्ला से कम नहीं हैं| समझे!

तो देखो, उनकी भी पत्नी थी- धुंधली| धुंधली मतलब? अंधकार| जैसे धुंध छा जाता है न अंधकार में! वह भी पढ़ी-लिखी थी कॉन्वेंट स्कूल की| हाइली क्वालिफाइड थी| यह कथा जो है, इसे कहा गया है पुराण| पुराण माने पुराना| पूरा पुराना है, लेकिन नवीन| आज के लिए भी उतना ही सार्थक| वह भी जो है, आधुनिक लड़की है| देखो, आज के आधुनिक युग में भी लड़कियाँ बच्चा पैदा नहीं करना चाहती हैं| विश्व में हल्ला हो गया है, अभी खास करके इंगलैंड में जनसंख्या घट रही है| वहाँ की लड़कियाँ नकार दी हैं कि नहीं, मैं माता नहीं बनना चाहती| तो  वहाँ पर अब कोख खरीदा रहा है| सरोगेट पुत्र| एक शब्द भी आ गया है- सरोगेट मदर| यह पहले नहीं था| दूसरा आ गया है, टेस्ट-टयूब बेबी| कोई दूसरी माँ को हायर कर रहा है, कोई टेस्ट टयूब बेबी ला रहा है| वे माँ बनना ही नहीं चाहती हैं| अब समझ गये! इसका मतलब, धुंधली वैसी ही थी, माँ नहीं बनना चाहती थी| सोचने लगी कि मैं यह खाऊँगी तो गर्भ होगा| पेट बड़ा हो जाएगा| कुरूप दिखाई पडूँगी, चलने में दिक्कत होगी, घर में डाकुओं का आक्रमण हो गया तो मैं कैसे भागूँगी? प्रसव में बहुत दर्द होगा, सुन्दरता मेरी खराब हो जाएगी- बहुत प्रकार की, नाना प्रकार की बातें सोचने लगी| जबकि स्त्री जब तक माँ नहीं बनती है, तब तक पूर्ण नहीं होती है| इसलिए मातृत्व आते ही उसके स्तन से दूध अपनेआप आ जाता है| किसी भी माँ के दूध के लिए अलग से उपाय करना पड़ता है क्या? यही पूर्णत्व है- मातृत्व का पूर्णत्व|

अब वह कहती है कि नहीं करेंगे| लेकिन क्या करे, पण्डित जी फल तो दे दिए| तब? उसकी एक बहन आ जाती है| यह सुना होगा, वह कहती है कि मैं भी गर्भवती हूँ, हमको लड़का होगा तो तुमको दे देंगे, हमको कुछ धन दे दो| हो गया न सरोगेट पुत्र! लेकिन वह फल तो खाया नहीं| फल मतलब ऋषि का, साधु का आर्शीवाद तो ग्रहण नहीं किया| बिना पैसा का मिला था- बिना दक्षिणा का| इसीलिए दक्षिणा देते हैं तो वह सार्थक होता है| वह कीमत नहीं जानी, धीरे से वह फल गाय को खिला दी| और उसकी बहन वहीं रह गई| समय आने पर वह लड़का पैदा हुआ, आत्मदेव पण्डित लड़के का नाम खोजने लगे| कहा कि लड़के का नाम माँ के ऊपर रखा जाता है और लड़की का नाम पिता के ऊपर रखा जाता है|

यह नहीं जानते तो जान लो, सीता का नाम जानकी है| क्यों? क्योंकि वह जनक की पुत्री है| राजा द्रुपद की लड़की द्रौपदी है, राजा कुन्तिभोज की लड़की कुन्ती हैं| लड़के का नाम माँ पर रखा जाता है, राम को कौशल्यानंदन  भी कहा जाता है| कृष्ण को देवकीनन्दन, यशोदानन्दन कहा जाता है| कहा जाता है न! हरदम लड़के का नाम माँ पर, लड़की का नाम पिता पर होता है| जब लड़की क्रोधित होगी, तो क्या कहेगी? मैं असली बाप की बेटी होऊँगी तो दिखा दूँगी आपको| बाप की बेटी कहेगी, माँ की नहीं| जब लकड़ा क्रोधित होता है तो कहता है, मैंने असली माँ का दूध पीया होगा तो तुमको बता दूँगा| तो माँ उसको याद आती है| लड़के का कभी एक्सिडेन्ट हो जाए, कहीं गिर जाए- बीमार हो जाए तो उसके मुँह से निकलेगा कि हे माँ! माँ-माँ, निकलेगा| लड़की जब फेरे में पड़ती है, अपने पिता को याद करती है| समझे! यह एक सिस्टम है|

अब जो है, उस लड़के का नाम माँ पर पड़ा- धुंधकारी| धुंधली से धुंधकारी| धुंधकारी का अर्थ समझते हो! धुंधकारी का मतलब चारों ओर इतना धुंध (अंधकार) हो गया कि कुछ दिखाई ही नहीं पड़ रहा| उसमें गाड़ी चला सकते हो? एक्सिडेन्ट हो जायेगा| धुंधला में तो बच भी जाओगे, लेकिन धुंधकार जब होता है तो देखते नहीं हो, गाड़ी एक्सिडेन्ट कर जाती है| अब धुन्धकारी के आते ही इनका जीवन एक्सिडेन्ट करने लगा| आत्मदेव को भी भागना पड़ा, उसने अपनी माँ धुंधली को कुएँ में डाल दिया| यह सब कथा जानते हो न! अब पाँच वैश्याओं के साथ वह रहने लगा| बस यही हमको पकड़ना था, उसका पाँच वैश्याओं के साथ रहना|

हम सब उसी काम वासना में, पाँच वैश्याओं के साथ पड़े हुए हैं| पाँच वैश्या कौन हैं? आँख, कान, नाक, जिह्वा, त्वचा- पाँचों ज्ञानेन्द्रियाँ ही पाँच वैश्याएं हैं| इन पाँचों ज्ञानेन्द्रियों, वासना के चक्कर में संसार में जब फँसते हो तो तुम निश्चित रूप से धुंधकारी बन जाते हो| और पाँचों ज्ञानेन्द्रियों को जब हम उपासना में लगाते हैं, वासना से खींचकर उपासना में लगा लेते हैं तो निश्चित रूप से भगवान् कृष्ण का वह पांचजन्य शंख बन जाता है| और वह जब हुँकार करता है तो सृष्टि हिलने लगती है| यही पांचजन्य शंख बनता है! जब तुम उपासना में जाते हो तो पांचजन्य शंख बनता है| जब वासना में जाते हो, तो यह धुंधकारी बन जाता है| गुरु तो फल देता है! फल दिया, लेकिन फल का परिणाम धुंधकारी बना| क्यों? आपमें पात्रता नहीं थी| फिर गुरु को दोष दोगे न!

कबीर साहब कहते हैं- ‘गुरु बेचारा क्या करै, शिष्य माहि में चूक|’ शिष्य में चूक है न| आगे कह रहे हैं-

गुरु बेचारा क्या करै, सब्द न लागा अंग|

कहैं कबीर मैली गजी, कैसे लागै रंग||

 तब तुम्हारा मन वासना के इर्द-गिर्द रहेगा, तब वह धुंधकारी ही पैदा होगा और तुम्हारा नाश ही होगा| जो उपासना में रहेगा, दशरथ उपासना में हैं| पुत्र जो माँग रहे हैं उपासना के लिए| तब उनका पुत्र कराया गया यज्ञ से| यज्ञ कौन कर रहा है? गुरु|

 

सृंगी रिषिहि बसिष्ठ बोलावा| पुत्र काम सुभ जग्य करावा||

भगति सहित मुनि आहुति दीन्हें| प्रगटे अगिनि चरु कर लीन्हें||

 प्रेम-भक्ति सहित आहुति कौन दे रहा है? गुरु, मुनि| गुरु आहुति दिए हैं न! और अग्निदेव प्रकट हो गए| दशरथ जी पूछे कि हम पर खुश हो कर आए गए! अग्निदेव बोले कि न| तब, कैसे? कहा कि तुम्हारे गुरु के तप से| और तुम्हारा गुरु भी अपने लिए नहीं माँग रहा है| वह गुरु जो है भक्ति सहित आहुति दे रहा है कि तुमको लड़का पैदा हो| कैसा? जो ऋषि-मुनि की, संन्यासी की सेवा करेगा| साधुओं की सेवा करेगा| और अग्निदेव हाथ में चरु लिए प्रकट हो गए हैं- भगति सहित मुनि आहुति दीन्हें| प्रगटे अगिनि चरु कर लीन्हें||

 इसलिए आपलोग सुन्दरकाण्ड करने जाते हो तो जाओ| और जहाँ जा रहे हो, सुन्दरकाण्ड करने से पहले जो हमने नाम शिव कीर्तन (श्रीराम संकीर्तन) बताया है, उसको ज़रूर बीस मिनट करो| उसके बाद हवन भी करो| हवन कौन कराए? तुम्हारे यहाँ साधु हैं तो ठीक है, नहीं तो यहाँ से जो ट्रेंड आप में है, वह हवन कराए| यह नहीं कि तय करके जाओ, इतना पैसा देगा, तब करेंगे- इतना करेंगे| प्रेम-सहित- तय में नहीं होता है| कथावाचक लोग आजकल कॉन्ट्रैक्ट में आते हैं, वह नहीं| प्रेम सहित जब आहुति दोगे, तब वहाँ भी अग्निदेव प्रगट हो जाएँगे और आर्शीवाद देंगे| वह घर धन-धान्य से पूर्ण हो जायेगा|

इसीलिए हमने कहा कि हम जो मंत्र दिये हैं, विधियाँ दिये हैं उसके अनुसार करो| तो देखो, श्रीमद्भागवत कथा तुम जो सुनते हो इस कान से, उस कान से निकल जाता है| लेकिन असल बात है वासना, काम| इसमें तुलसीदास जी कहते हैं- ‘भक्तिं प्रयच्छ रघुपुङ्गव निर्भरां मे कामादिदोषरहितं कुरु मानसः’| हे रघुकुल श्रेष्ठ! मेरे मन को काम से मुक्त करो| मुक्त कैसे करेगा परमात्मा? उसके पास कोई उपाय है नहीं| परमात्मा जो है किसी गुरु के यहाँ भेज देगा|

कबीर साहब भी कहते हैं- ‘जब गोविन्द किरपा करे, तब गुरु मिलिया आय|’

बस इतना ही है| जब गोविन्द कृपा करेगा तो गुरु से मिला देगा| और गुरु तकनीक बता देगा, क्या? वह जो है तुमलोग जो बहुत जापते हो मन्त्र बड़े-बड़े, वह श्वास से नहीं जा सकता है|

कोटि नाम, कोटि मन्त्र, तासे मुक्ति ना होय|’ यह जो करोड़ों मंत्र जापते हो, इससे मुक्ति नहीं होती है| वह मंत्र बड़ा गोपनीय है| भगवान् कृष्ण गीता में कहते हैं- ‘यज्ञानां जपयज्ञोऽस्मि’| मैं जापों में क्या हूँ? अजपा| तो मैं वही देता हूँ| अजपा की विधि से जब श्वास पर तुम उसका जाप करता रहोगे, तब तुम्हारे मन में, ह्रदय में गुरु का वास हो जाएगा| जैसे ही उसका वास हो जाएगा, वैसे ही काम-दोष स्वतः भाग जाएगा|

तुम्हारे घर में अँधेरा है और तुम जाकर पाठ करो, ॐ सूर्याय नमः! ॐ सूर्याय नमः! क्या सूर्यदेव आकर तुम्हारे घर में प्रकाश कर देंगे? बोलो, हो जाएगा? तुलसीदास भी कहते हैं कि दीपक और बाती की बात करने से घर में प्रकाश नहीं होगा| कुछ मत करो, दीपक की बाती को जला दो| घर में प्रकाश हो जाएगा| दीपक और बाती की बात करने से अँधेरा तो नहीं दूर होगा! उसी तरह से हम भी यह बताने आये हैं कि यह जो ह्रदय तुम्हारा है, वहाँ पर उसको कैसे बसा लोगे? कैसे वह अजपा होते रहेगा और कैसे वासना दूर हो जाएगी? और तब चिर-परिचित इच्छाएं जो तुम्हारी हैं इस जन्म में, पिछले जन्म में- वह तुरन्त पूरी हो जायेंगी और तुम्हारा यह जन्म में प्रशस्त हो जाएगा| बस आज इतना ही….| आपलोगों ने झेला है, प्रेम से जो झेला उसे बहुत-बहुत धन्यवाद! जो अपने में उतारने के लिए सुन रहा होगा, उसको कम धन्यवाद! आपके ह्रदय में परमपिता परमात्मा बैठा है, इसलिए आप सब को मेरा प्रणाम! मेरा प्रणाम स्वीकार करें, धन्यवाद!

 

सद्गुरुदेव की जय!

 ‘समय के सद्गुरु’ स्वामी कृष्णानंद जी महाराज की अमृत वाणी से उद्धृत……

 


 

 

‘समय के सदगुरु’ स्वामी  कृष्णानंद  जी महाराज

आप सद्विप्र समाज की रचना कर विश्व जनमानस को कल्याण मूलक सन्देश दे रहे हैं| सद्विप्र समाज सेवा एक आध्यात्मिक संस्था है, जो आपके निर्देशन में जीवन के सच्चे मर्म को उजागर कर शाश्वत शांति की ओर समाज को अग्रगति प्रदान करती है| आपने दिव्य गुप्त विज्ञान का अन्वेषण किया है, जिससे साधक शीघ्र ही साधना की ऊँचाई पर पहुँच सकता है| संसार की कठिनाई का सहजता से समाधान कर सकता है|

स्वामी जी के प्रवचन यूट्यूब चैनल पर उपलब्ध हैं –

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सुन्दरकाण्ड

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सुन्दरकाण्ड

 

 

||श्री सद्गुरवे नमः||

श्रीमद् गोस्वामी तुलसीदास जी विरचित श्रीरामचरितमानस

 

दिनांक 09.01.2020, दिन गुरुवार को सद्गुरुधाम आश्रम अमरावती, (अकोट, महाराष्ट्र) में सद्गुरुदेव की दिव्य आशीर्वचन…

 

प्रिय आत्मन्,

सुन्दरकाण्ड पर कल हम बोले| सुन्दरकाण्ड में सब सुन्दर है और सुन्दरकाण्ड की व्याख्या सुनने वाला भी जब उसको अपना लेता है, तो सब सुन्दर हो जाता है| हम लोग जो कथा सुनते हैं, उसको थोड़ा-थोड़ा भी अपने में उतार लें तो हम भी राम के तुल्य, सीता के तुल्य ही जाएगें| अक्सर मैं कहता हूँ कि आप राम के, सीता के खानदान के हो, वंशज हो| कहते हो कि नहीं, गुरुजी हम ऐसे हैं| तब? थोड़ा कम हैं| अरे थोड़ा कम हो तो क्या रावण हो! बताओ तो| औरतों को कहते हैं कि तुम सीता की वंशज हो, सीता हो| न, ऐसा नहीं है| तो क्या सूर्पनखिया हो? अरे गाली दे रहे हैं! समुद्र का जल चाहे किनारे का टेस्ट करो या फिर बीच या कहीं अन्य जगह का टेस्ट करो, एक ही जैसा खारा होगा| नमक मिलेगा| गंगा पानी जहाँ से लोगे, एक ही रहेगा| इसी तरह से भारतवर्ष के जब आप हो तो आप में बुद्ध और महावीर के, राम के और कृष्ण के, दुर्गा और सीता के ही जीन्स हैं और आप सब सीता तुल्य हैं- राम तुल्य हैं| यह बात जब तुलसीदास जी को मालूम हुई तब उन्होंने भी कहा-

‘सियाराम मय सब जग जानी, करहु प्रनाम जोरि जुग पानी||’

ऐसा क्यों कहे हैं? चूँकि सियाराम मय अब सृष्टि देखने लगे| इसलिए आप अपने को भान करो कि हम सीता हैं, राम हैं! करोगे- हो जाओगे| लेकिन हमको गुरु की बात पर प्रतीति नहीं है|

 

गुरु के वचन प्रतीति न जेही| सपनेहु सुख सिधि सुलभ न तेही||

जे गुरु पद पंकज अनुरागी| ते लोकहुँ वेदहुँ बड़भागी ||

 

गुरु के वचन पर जिसको प्रतीति (विश्वास) नहीं होता है, वह स्वप्न में भी सुखी नहीं रहेगा, भले कह लेगा| जैसे कोई विद्यार्थी किसी स्कूल में नाम लिखवा लेता है और कहता है कि हम पाँच साल से इसी क्लास में पढ़ रहे हैं| तब?

एक विद्यार्थी ने अपने गुरुजी से पूछा कि गुरुजी, आप कितने पढ़े हैं? कहा कि बच्चा, हम तो एम.ए. किए हैं| कैसा आपका करियर रहा है? हम तो थ्रू आउट स्कॉलर रहे हैं, कॉलेज में पढ़ाते हैं| लेकिन तुम्हारे कहने के चलते तुमको हम ट्यूशन पढ़ाते हैं| तो कहा कि गुरुजी, हम कितने दिन में आपकी तरह हो जायेंगे? कहा कि बेटा, तुम तो हमारी तरह नहीं होगे, लेकिन हम अब तुम्हारी तरह बनने जा रहे हैं| जब नहीं पढ़ोगे, तब गुरु तो पढ़ेगा नहीं, गुरु जी क्लास देगा-पढ़ाएगा| क्या करेगा बेचारा!

तो हम लोगों के भी मन में कहीं न कहीं यही भावना रहती है| गुरु जो कहते हैं उसपर प्रतीति रखो, विश्वास करो और अपने को आमूलचूल बदल लो| तुलसीदास जी ज्ञान में बहुत समृद्ध हैं- जानकार| सुन्दरकाण्ड का दूसरा श्लोक है, कह रहे हैं –

 

नान्या स्पृहा रघुपते हृदयेऽस्मीदिये

सत्यं वदामि च भवानखिलान्तरात्मा|

भक्तिं प्रयच्छ रघुपुङ्गव निर्भरां मे

कामादिदोषरहितं कुरु मानसः||2||

 

कहते हैं- ‘नान्या स्पृहा’- कोई मेरी इच्छा नहीं रह गई है| हे रघुपते! तुम तो सबके ह्रदय में विराजमान हो, घट-घट में विराजमान हो| मैं सच कहता हूँ, तुम पूरे विश्व में व्याप्त हो, सबके अंतरात्मा ही हो| सब जानते ही हो, मेरे ह्रदय में कोई इच्छा अब शेष नहीं है|

हमलोग कभी भी देवी और देवताओं के यहाँ जब जाते हैं तो इच्छा लेकर| देवी-देवता कुछ तुम्हारी इच्छा भी पूरी भी करते हैं, लेकिन 90% नहीं करते| तुम इच्छारहित होकर जब गुरु के यहाँ, गोविन्द के यहाँ जाओगे तो तुम्हारी इच्छा अभी की ही नहीं, यदि पूर्व में भी रह गई है तो पहले वह पूरा करेगा, इसके बाद आगे चलेगा| इसलिए यहाँ आया है- नान्या स्पृहा| भक्ति, एकदम इच्छारहित होकर करो| तुम आकर केवल कहो कि गुरुजी! आपके यहाँ हम पाँच साल से भक्ति किये हैं, दस साल से किये- हमको दिए क्या हैं आप? यह तो वेश्यावृति हो गई न! इसमें प्रार्थना करते हैं तुलसीदास जी कि मेरी कोई स्पृहा, कोई इच्छा ही नहीं है, प्रभो! भगवान् कह रहे हैं कि अरे वह तुमको मार रहे हैं सब काशी वाले| कहा कि मारने दीजिए, हमारी कोई इच्छा नहीं है, आप टेन्शन मत लिजिए| सत्यं वदामि.. मैं यह सत्य कह रहा हूँ, आप इस भुवन के अंतरात्मा हैं|

 

भक्तिं प्रयच्छ रघुपुङ्गव निर्भरां मे कामादिदोषरहितं कुरु मानसः||’ अर्थात् मेरे ह्रदय में केवल भक्ति दीजिए, कामादि दोष से मैं रहित हो जाऊँ और मनसा- केवल भक्ति में निरंतर लगा रहूँ| पहले कहा है ‘सत्यं वदामि’, फिर आया है ‘कामादिदोषरहितं कुरु मानसः’| आप सत्य कह रहे हैं, कैसे कह रहे हैं? जब तक हम काम-दोष से मुक्त नहीं हो सकते हैं, सत्य नहीं कह सकते हैं| काम का मतलब सेक्स ही नहीं, काम का मतलब मेरी इच्छाएं| पद मिले, प्रतिष्ठा मिले, पैसा मिले- यह सब काम ही कहलाता है| लेकिन इससे मुक्त कैसे होगे? इसकी तकनीक गुरु के पास रहती है| जब तुम अपने ह्रदय में गुरु को ही बसा लोगे तो वह काम तुमसे विदा हो जाएगा- यह टेक्निक समझ लो| इसीलिए कबीर साहब कहते हैं-

 

श्वास श्वास में नाम ले, वृथा श्वास मत खोय|

न जाने केहि श्वास में, आवन होन न होय||

 

तकनीक बता दिए कबीर साहब| गुरु जो मंत्र देता है, प्रत्येक श्वास में अपनेआप जपो| जपने का प्रयास भी नहीं, जपना- जाप आपका स्वभाव हो जाए| तुम यह कहते हो कि रोज मैं भोजन करता हूँ, फिर बीमार क्यों पड़ गया? अब मैं भोजन नहीं करूँगा| यह कहते हो कभी? कहते हो कि मैं रोज कपड़ा पहनता हूँ, फिर भी मुझे सर्दी क्यों लग गई? अब कपड़ा पहनूँगा ही नहीं! यह नहीं कहते हो| लेकिन यह जरूर कहोगे कि भगवान्! हमारा यह काम नहीं हुआ, अब मैं नहीं करता| केवल गुरु और गोविन्द पर दाँव लगाते हो| इसका मतलब आपका स्वभाव नहीं है भक्ति| आप बिजनेस में उतरे हो- बनियागिरी में| यदि काम आपके मन में रहेगा- कामरूपी दोष रहेगा तो आपका किया गया भजन-पूजन, वह सेंट्रलाइस्ड काम के इर्द-गिर्द ही घूमेगा| एक इन्च भी आगे नहीं बढ़ेगा|

आप लोग सब श्रीमद्भागवत् की कथा सुनते हैं| हजारोंहज़ार- लाख लोग सुनते हैं न| कथा शुरू कहाँ से होती है? आत्मदेव पण्डित को काम-वासना आ जाती है| कहा कि हमको लड़का चाहिए| उनको लड़का नहीं है, पत्नी है धुंधली|  मैं केवल हिंट कर रहा हूँ| काम आ गया तो वे जंगल चले जाते हैं आत्माहत्या करने के लिए| अरे आत्महत्या ही करना है तो क्या जंगल जाना ज़रूरी है! घर में ही कर लो|

एक दिन मुल्ला नसरुद्दीन भी अपने पत्नी से खिसिया गया| कहा कि अब मैं बचूँगा नहीं, आत्महत्या करना चाहता हूँ| एक दिन, दो दिन कहा| तीसरे दिन पत्नी कही कि तुम कहते हो, करते क्यों नहीं मुल्ला? कहा कि अरे ये तो मना नहीं रही है हमको| तो कहा कि कल मैं चल जाऊँगा- सुबह-सुबह आठ बजे| कल मुहूर्त लिखा लिया है! हाँ| तो कहा कि ठीक| अगले दिन आठ बजे उसकी पत्नी कही कि मुल्ला! आठ बज गया, घड़ी देखो| कहा कि टिफिन तैयार कर दिया? कहा कि मुल्ला! तुम आत्महत्या करने जा रहे हो, टिफिन लेकर जाओगे? भूख लगेगी, तब?

पत्नी फटाफट टिफिन बनाकर के पकड़ा दी कि लो| बहाना तो मत खोजो|

बाहर निकला मुल्ला, फिर लौट आया| अब क्या हो गया? कहा कि टिफिन में आचार नहीं दिया था| फिर डाल दी अचार कि लो| चलो अच्छा, डाल देते हैं| मुल्ला फिर गया| फिर पाँच मिनट में लौटा| अब क्यों लौट आए? वर्षा न आ रही है! छाता दो| कहा कि छाता..! फिर छाता खोलकर दे दिया कि लो|

कहा कि गजब हाल है! जरा भी इसके पास ह्रदय नहीं है कि मैं बहाना कर रहा हूँ, मुझे बचावे| आस-पड़ौस के लोग भी नहीं बोल रहे हैं कि अरे तुम पत्नी कैसी हो! सब मुस्कुरा रहे हैं| मुल्ला चल दिया| अब क्या करे, जाना पड़ेगा न! अब देखा कि रेलवे लाइन कहाँ है? तो रेलवे लाइन जाकर देखा खूब बढ़िया से| यहाँ- वहाँ आधा घंटा देखा| एक रेलवे लाइन देखकर के मुल्ला उसी पर गर्दन रखकर के, अपना टिफिन बगल में रखकर सो गया| अब पोर्टर आया कि अरे मुल्ला, यहाँ पर क्या सोए हो! कहा कि ट्रेन आएगी, काट देगी| कटने के लिए, मरने के लिए आये हैं न! कहा कि अरे मुल्ला! देखे नहीं रहे हो, इसपर जंग लगा है, ट्रेन तो आती ही नहीं| यह शंटिंग लाइन है, उस पर काहे नहीं जा रहे हो? कहा कि अरे पागल, इतने मूर्ख बने हैं क्या!

तो देखो, हम सब इतनी चालाकी करते हैं- वासना में| वासना खूब चालाकी करती है| उसी तरह से वह पण्डित विद्वान हैं| तपस्वी हैं| उस ग्रन्थ में आया है, उनकी तपस्या इतनी है कि सूर्य की तरह तेज फैला हुआ है तपस्या से| लेकिन काम दोष से मुक्त नहीं हैं| निकल गए हैं आत्महत्या करने के लिए- जय सच्चिदानंद! अब वहाँ पर आत्महत्या करने जा रहे हैं, जहाँ एक संत हैं| देखो, उस संत-संन्यासी का कहीं नाम, जाति नहीं आ रहा है| संत ‘संत’ है, तपस्वी ‘तपस्वी’ है| तो उसको जहाँ देख रहे हैं, वहीं मंडराने लगते हैं कि हम आत्महत्या करेंगे|

तो उधर ही जहाँ कोई नहीं है, वहाँ कर लेना चाहिए| जाकर कर लो| मुल्ला की तरह क्यों बात बना रहे हो! हम वही प्रसंग सुनाएंगे जो तुमने नहीं सुना होगा| अब संत ने देखा तो पूछा कि क्या बात है पण्डित जी, कहाँ घूम रहे हैं? कहा कि हम आत्महत्या करने आये हैं| अब बताओ, यह क्या कहा जाता है! कहा कि क्यों आत्महत्या करन चाहते हो, बैठो-बैठो| अब जरा संत का स्वभाव देखो, यह कारुणिक है| संत का स्वभाव कारुणिक होता है| दयालुता आर्टिफीसियल होती है, करुणा ह्रदय से उप्तन्न होती है| इसलिए संत कारुणिक है- संन्यासी कारुणिक|

हम लोग संत-साधु की शिकायत कर लेते हैं कि ऐ.. बड़ा फालतू है, ठीक नहीं है| कहते हो कि ठीक नहीं है, यह ठीक है; लेकिन तुम संत बन जाओ और ठीक होकर दिखा दो न! कौनहुँ नहीं हो रहा है| वो स्वयं हो नहीं रहा है, और जो हो गया है, उसी पर टॉन्ट मारेगा! चलो एक बार होकर दिखा दो- हिम्मत नहीं है|

खैर! वह संत समझाने लगे, सुनो इधर आओ, बैठो| जीवन का उद्देश्य ‘पुत्र’ नहीं है| यह माया है| क्यों ग्रसित हो! अब उतना नहीं कहेंगे, बहुत उपदेश दिए, समझाने लगे| लेकिन जब तुम्हारे ह्रदय में वासना है तो उपदेश अच्छा नहीं लगेगा न| प्लासटिक का कवर ओढ़ लो या घड़ा बाहर मुँह उलटकर रख दो| कितनी भी मूसलधार वर्षा हो, पानी आएगा?

उन पर वो उपदेश काम नहीं किया| घंटों उपदेश देने के बाद संन्यासी ने पूछा- समझ गए! कहा कि न| हमको एक पुत्र का आर्शीवाद दीजिए, तभी हमको समझ में आएगा| वह उससे मुक्ति भी माँग सकते थे| अपने जीवन में बदलाव, भक्ति भी माँग सकते थे| लेकिन माँगा क्या- वासना, पुत्र| किस लिए? अपना खानदान चलाने के लिए|

दशरथ जी भी पुत्र माँगे हैं गुरु से| क्यों? उनके माँगने के पीछे क्या कारण है? कहा कि ऋषिवर! हम तो वृद्ध हो गए| हमारे जाने के बाद गुरु की, संत की, संन्यासी की सेवा कौन करेगा? इसका मतलब, सेवक माँग रहे हैं न! किसका सेवक? साधुओं का, संन्यासियों का सेवक होना चाहिए| कौन करेगा हमारे मरने के बाद! दोनों के माँगने में अंतर है! दोनों तो एक ही माँग रहे हैं- पुत्र न| तो उनके गुरुजी प्रसन्न होकर कहे कि एक नहीं, चार मिलेगा| अरे, तुम धर्मार्थ काम कर रहे हो न! और देखो आत्मदेव पण्डित कह रहे हैं कि हमारा खानदान कैसे चलेगा? हमारे पास बहुत संपत्ति है, पद है, प्रतिष्ठा है, चेलाई बहुत लम्बा चौड़ा है…संभालेगा कौन? बहुत हमारे यजमान हैं, यजमानी कौन संभालेगा? इसलिए माँग रहे हैं न| तब कहा कि मानोगे नहीं, तो क्या करें? वह एक फल दे दिए कि ले जाओ| फल को खिला दो अपनी पत्नी को| लेकिन वह ‘पत्नी’ हो तब तो! भारत में धर्मपत्नी न कहलाती है! अब तो तुम लोग कहने लगे हो कि हमारी पार्टनर है| अरे पार्टनर! तो कहते हो कि लाइफ पार्टनर|

हम पूछते हैं कि अरे यह कौन चीज का बिजनेस करने लगे यार! अरे गुरुजी, आप समझते नहीं न हैं..| हम कहे कि न| यह लाइफ का भी बिज़नेस होने लगा क्या? तुम्हारा और उसका लाइफ का कॉन्ट्रैक्ट है? अरे भारत में धर्मपत्नी है, इसलिए जब तुम कोई धार्मिक काम करते हो- संकल्प लेते हो या दान करते हो, तो पत्नी तुम्हारे हाथ के नीचे अपना हाथ लगाती है| जानते हो, क्यों? मान लो कि तुमने आज दो हजार, दस हजार, ग्यारह हज़ार या एक लाख का संकल्प ले लिया| पत्नी जानती है, ये कभी भी बदल जायेंगे, मुल्ला हैं| इसलिए वह अपना हाथ लगाती है, ठेल देती है| पीछे नहीं करने देती| नहीं तो तुम फट से हाथ हटा लोगे| पत्नी पूछेगी, क्या है? अरे पैसवा कम था न! वो जानती है, इसलिए उसको धर्म की पत्नी कहा गया है| औरत जो है पति से छिपाकर देती है कि ये मुल्ला से कम नहीं हैं| समझे!

तो देखो, उनकी भी पत्नी थी- धुंधली| धुंधली मतलब? अंधकार| जैसे धुंध छा जाता है न अंधकार में! वह भी पढ़ी-लिखी थी कॉन्वेंट स्कूल की| हाइली क्वालिफाइड थी| यह कथा जो है, इसे कहा गया है पुराण| पुराण माने पुराना| पूरा पुराना है, लेकिन नवीन| आज के लिए भी उतना ही सार्थक| वह भी जो है, आधुनिक लड़की है| देखो, आज के आधुनिक युग में भी लड़कियाँ बच्चा पैदा नहीं करना चाहती हैं| विश्व में हल्ला हो गया है, अभी खास करके इंगलैंड में जनसंख्या घट रही है| वहाँ की लड़कियाँ नकार दी हैं कि नहीं, मैं माता नहीं बनना चाहती| तो  वहाँ पर अब कोख खरीदा रहा है| सरोगेट पुत्र| एक शब्द भी आ गया है- सरोगेट मदर| यह पहले नहीं था| दूसरा आ गया है, टेस्ट-टयूब बेबी| कोई दूसरी माँ को हायर कर रहा है, कोई टेस्ट टयूब बेबी ला रहा है| वे माँ बनना ही नहीं चाहती हैं| अब समझ गये! इसका मतलब, धुंधली वैसी ही थी, माँ नहीं बनना चाहती थी| सोचने लगी कि मैं यह खाऊँगी तो गर्भ होगा| पेट बड़ा हो जाएगा| कुरूप दिखाई पडूँगी, चलने में दिक्कत होगी, घर में डाकुओं का आक्रमण हो गया तो मैं कैसे भागूँगी? प्रसव में बहुत दर्द होगा, सुन्दरता मेरी खराब हो जाएगी- बहुत प्रकार की, नाना प्रकार की बातें सोचने लगी| जबकि स्त्री जब तक माँ नहीं बनती है, तब तक पूर्ण नहीं होती है| इसलिए मातृत्व आते ही उसके स्तन से दूध अपनेआप आ जाता है| किसी भी माँ के दूध के लिए अलग से उपाय करना पड़ता है क्या? यही पूर्णत्व है- मातृत्व का पूर्णत्व|

अब वह कहती है कि नहीं करेंगे| लेकिन क्या करे, पण्डित जी फल तो दे दिए| तब? उसकी एक बहन आ जाती है| यह सुना होगा, वह कहती है कि मैं भी गर्भवती हूँ, हमको लड़का होगा तो तुमको दे देंगे, हमको कुछ धन दे दो| हो गया न सरोगेट पुत्र! लेकिन वह फल तो खाया नहीं| फल मतलब ऋषि का, साधु का आर्शीवाद तो ग्रहण नहीं किया| बिना पैसा का मिला था- बिना दक्षिणा का| इसीलिए दक्षिणा देते हैं तो वह सार्थक होता है| वह कीमत नहीं जानी, धीरे से वह फल गाय को खिला दी| और उसकी बहन वहीं रह गई| समय आने पर वह लड़का पैदा हुआ, आत्मदेव पण्डित लड़के का नाम खोजने लगे| कहा कि लड़के का नाम माँ के ऊपर रखा जाता है और लड़की का नाम पिता के ऊपर रखा जाता है|

यह नहीं जानते तो जान लो, सीता का नाम जानकी है| क्यों? क्योंकि वह जनक की पुत्री है| राजा द्रुपद की लड़की द्रौपदी है, राजा कुन्तिभोज की लड़की कुन्ती हैं| लड़के का नाम माँ पर रखा जाता है, राम को कौशल्यानंदन  भी कहा जाता है| कृष्ण को देवकीनन्दन, यशोदानन्दन कहा जाता है| कहा जाता है न! हरदम लड़के का नाम माँ पर, लड़की का नाम पिता पर होता है| जब लड़की क्रोधित होगी, तो क्या कहेगी? मैं असली बाप की बेटी होऊँगी तो दिखा दूँगी आपको| बाप की बेटी कहेगी, माँ की नहीं| जब लकड़ा क्रोधित होता है तो कहता है, मैंने असली माँ का दूध पीया होगा तो तुमको बता दूँगा| तो माँ उसको याद आती है| लड़के का कभी एक्सिडेन्ट हो जाए, कहीं गिर जाए- बीमार हो जाए तो उसके मुँह से निकलेगा कि हे माँ! माँ-माँ, निकलेगा| लड़की जब फेरे में पड़ती है, अपने पिता को याद करती है| समझे! यह एक सिस्टम है|

अब जो है, उस लड़के का नाम माँ पर पड़ा- धुंधकारी| धुंधली से धुंधकारी| धुंधकारी का अर्थ समझते हो! धुंधकारी का मतलब चारों ओर इतना धुंध (अंधकार) हो गया कि कुछ दिखाई ही नहीं पड़ रहा| उसमें गाड़ी चला सकते हो? एक्सिडेन्ट हो जायेगा| धुंधला में तो बच भी जाओगे, लेकिन धुंधकार जब होता है तो देखते नहीं हो, गाड़ी एक्सिडेन्ट कर जाती है| अब धुन्धकारी के आते ही इनका जीवन एक्सिडेन्ट करने लगा| आत्मदेव को भी भागना पड़ा, उसने अपनी माँ धुंधली को कुएँ में डाल दिया| यह सब कथा जानते हो न! अब पाँच वैश्याओं के साथ वह रहने लगा| बस यही हमको पकड़ना था, उसका पाँच वैश्याओं के साथ रहना|

हम सब उसी काम वासना में, पाँच वैश्याओं के साथ पड़े हुए हैं| पाँच वैश्या कौन हैं? आँख, कान, नाक, जिह्वा, त्वचा- पाँचों ज्ञानेन्द्रियाँ ही पाँच वैश्याएं हैं| इन पाँचों ज्ञानेन्द्रियों, वासना के चक्कर में संसार में जब फँसते हो तो तुम निश्चित रूप से धुंधकारी बन जाते हो| और पाँचों ज्ञानेन्द्रियों को जब हम उपासना में लगाते हैं, वासना से खींचकर उपासना में लगा लेते हैं तो निश्चित रूप से भगवान् कृष्ण का वह पांचजन्य शंख बन जाता है| और वह जब हुँकार करता है तो सृष्टि हिलने लगती है| यही पांचजन्य शंख बनता है! जब तुम उपासना में जाते हो तो पांचजन्य शंख बनता है| जब वासना में जाते हो, तो यह धुंधकारी बन जाता है| गुरु तो फल देता है! फल दिया, लेकिन फल का परिणाम धुंधकारी बना| क्यों? आपमें पात्रता नहीं थी| फिर गुरु को दोष दोगे न!

कबीर साहब कहते हैं- ‘गुरु बेचारा क्या करै, शिष्य माहि में चूक|’ शिष्य में चूक है न| आगे कह रहे हैं-

गुरु बेचारा क्या करै, सब्द न लागा अंग|

कहैं कबीर मैली गजी, कैसे लागै रंग||

 तब तुम्हारा मन वासना के इर्द-गिर्द रहेगा, तब वह धुंधकारी ही पैदा होगा और तुम्हारा नाश ही होगा| जो उपासना में रहेगा, दशरथ उपासना में हैं| पुत्र जो माँग रहे हैं उपासना के लिए| तब उनका पुत्र कराया गया यज्ञ से| यज्ञ कौन कर रहा है? गुरु|

 

सृंगी रिषिहि बसिष्ठ बोलावा| पुत्र काम सुभ जग्य करावा||

भगति सहित मुनि आहुति दीन्हें| प्रगटे अगिनि चरु कर लीन्हें||

 प्रेम-भक्ति सहित आहुति कौन दे रहा है? गुरु, मुनि| गुरु आहुति दिए हैं न! और अग्निदेव प्रकट हो गए| दशरथ जी पूछे कि हम पर खुश हो कर आए गए! अग्निदेव बोले कि न| तब, कैसे? कहा कि तुम्हारे गुरु के तप से| और तुम्हारा गुरु भी अपने लिए नहीं माँग रहा है| वह गुरु जो है भक्ति सहित आहुति दे रहा है कि तुमको लड़का पैदा हो| कैसा? जो ऋषि-मुनि की, संन्यासी की सेवा करेगा| साधुओं की सेवा करेगा| और अग्निदेव हाथ में चरु लिए प्रकट हो गए हैं- भगति सहित मुनि आहुति दीन्हें| प्रगटे अगिनि चरु कर लीन्हें||

 इसलिए आपलोग सुन्दरकाण्ड करने जाते हो तो जाओ| और जहाँ जा रहे हो, सुन्दरकाण्ड करने से पहले जो हमने नाम शिव कीर्तन (श्रीराम संकीर्तन) बताया है, उसको ज़रूर बीस मिनट करो| उसके बाद हवन भी करो| हवन कौन कराए? तुम्हारे यहाँ साधु हैं तो ठीक है, नहीं तो यहाँ से जो ट्रेंड आप में है, वह हवन कराए| यह नहीं कि तय करके जाओ, इतना पैसा देगा, तब करेंगे- इतना करेंगे| प्रेम-सहित- तय में नहीं होता है| कथावाचक लोग आजकल कॉन्ट्रैक्ट में आते हैं, वह नहीं| प्रेम सहित जब आहुति दोगे, तब वहाँ भी अग्निदेव प्रगट हो जाएँगे और आर्शीवाद देंगे| वह घर धन-धान्य से पूर्ण हो जायेगा|

इसीलिए हमने कहा कि हम जो मंत्र दिये हैं, विधियाँ दिये हैं उसके अनुसार करो| तो देखो, श्रीमद्भागवत कथा तुम जो सुनते हो इस कान से, उस कान से निकल जाता है| लेकिन असल बात है वासना, काम| इसमें तुलसीदास जी कहते हैं- ‘भक्तिं प्रयच्छ रघुपुङ्गव निर्भरां मे कामादिदोषरहितं कुरु मानसः’| हे रघुकुल श्रेष्ठ! मेरे मन को काम से मुक्त करो| मुक्त कैसे करेगा परमात्मा? उसके पास कोई उपाय है नहीं| परमात्मा जो है किसी गुरु के यहाँ भेज देगा|

कबीर साहब भी कहते हैं- ‘जब गोविन्द किरपा करे, तब गुरु मिलिया आय|’

बस इतना ही है| जब गोविन्द कृपा करेगा तो गुरु से मिला देगा| और गुरु तकनीक बता देगा, क्या? वह जो है तुमलोग जो बहुत जापते हो मन्त्र बड़े-बड़े, वह श्वास से नहीं जा सकता है|

कोटि नाम, कोटि मन्त्र, तासे मुक्ति ना होय|’ यह जो करोड़ों मंत्र जापते हो, इससे मुक्ति नहीं होती है| वह मंत्र बड़ा गोपनीय है| भगवान् कृष्ण गीता में कहते हैं- ‘यज्ञानां जपयज्ञोऽस्मि’| मैं जापों में क्या हूँ? अजपा| तो मैं वही देता हूँ| अजपा की विधि से जब श्वास पर तुम उसका जाप करता रहोगे, तब तुम्हारे मन में, ह्रदय में गुरु का वास हो जाएगा| जैसे ही उसका वास हो जाएगा, वैसे ही काम-दोष स्वतः भाग जाएगा|

तुम्हारे घर में अँधेरा है और तुम जाकर पाठ करो, ॐ सूर्याय नमः! ॐ सूर्याय नमः! क्या सूर्यदेव आकर तुम्हारे घर में प्रकाश कर देंगे? बोलो, हो जाएगा? तुलसीदास भी कहते हैं कि दीपक और बाती की बात करने से घर में प्रकाश नहीं होगा| कुछ मत करो, दीपक की बाती को जला दो| घर में प्रकाश हो जाएगा| दीपक और बाती की बात करने से अँधेरा तो नहीं दूर होगा! उसी तरह से हम भी यह बताने आये हैं कि यह जो ह्रदय तुम्हारा है, वहाँ पर उसको कैसे बसा लोगे? कैसे वह अजपा होते रहेगा और कैसे वासना दूर हो जाएगी? और तब चिर-परिचित इच्छाएं जो तुम्हारी हैं इस जन्म में, पिछले जन्म में- वह तुरन्त पूरी हो जायेंगी और तुम्हारा यह जन्म में प्रशस्त हो जाएगा| बस आज इतना ही….| आपलोगों ने झेला है, प्रेम से जो झेला उसे बहुत-बहुत धन्यवाद! जो अपने में उतारने के लिए सुन रहा होगा, उसको कम धन्यवाद! आपके ह्रदय में परमपिता परमात्मा बैठा है, इसलिए आप सब को मेरा प्रणाम! मेरा प्रणाम स्वीकार करें, धन्यवाद!

 

सद्गुरुदेव की जय!

 ‘समय के सद्गुरु’ स्वामी कृष्णानंद जी महाराज की अमृत वाणी से उद्धृत……

 


 

 

‘समय के सदगुरु’ स्वामी  कृष्णानंद  जी महाराज

आप सद्विप्र समाज की रचना कर विश्व जनमानस को कल्याण मूलक सन्देश दे रहे हैं| सद्विप्र समाज सेवा एक आध्यात्मिक संस्था है, जो आपके निर्देशन में जीवन के सच्चे मर्म को उजागर कर शाश्वत शांति की ओर समाज को अग्रगति प्रदान करती है| आपने दिव्य गुप्त विज्ञान का अन्वेषण किया है, जिससे साधक शीघ्र ही साधना की ऊँचाई पर पहुँच सकता है| संसार की कठिनाई का सहजता से समाधान कर सकता है|

स्वामी जी के प्रवचन यूट्यूब चैनल पर उपलब्ध हैं –

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