खुशियों वाली होली

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namrata gupta

28 Jul 20247 min read

Published in stories

#HAPPYHOLI2022

खुशियों वाली होली

‘बहु मधुर  की कोई खबर आई कि वह होली मे  घर आ रहा है की नहीं?’ पिताजी, ने पूछा।

‘हाँ पिताजी , होली के दिन सुबह – सुबह ही पहुचने वाले है ये’ सुनंदा ने उत्साह भरे स्वर मे  कहा ।  

माता जी भी पूजा कर के मंदिर से घर वापस  थी। ‘बहु , अरे ओ बहु , चाय तैयार है क्या?’ माता जी ने आवाज़ लगायी। ‘जी माँ जी अभी लायी’ , सुनंदा ने कहा। 

मधुर अपने माँ – बाप की इकलौती संतान है। दिल्ली के एक मल्टीनेशनल कंपनी में कार्यरत है। पिताजी को अपने गांव के खुले वातावरण मे  ही रहना पसंद है इसलिए वो शहर नहीं जाना चाहते । यही कारण  है की सुनंदा भी अपने बूढ़े सास-ससुर की देखभाल करने के लिए गांव  मे उनके साथ रहती है। बेटा  मधुर बीच – बीच मे आता -जाता रहता है। 

मधुर होली पर  पहुंचने वाला है।  माँ जी  और सुनंदा तरह – तरह के पकवान बनाने मे व्यस्त है, पिताजी अख़बार पढ़ने में व्यस्त है।  अचानक फ़ोन की घंटी बजी- ट्रिंग , ट्रिंग  ।

‘हेलो !’ पिताजी ने फ़ोन उठाते हुए कहा।

‘प्रणाम पिताजी, मै मधुर’, दूसरे तरफ से आवाज़ आयी।

‘अरे बेटा, मधुर कैसा है तू?’ पिताजी ने पूछा।

‘मैं ठीक हूँ पिताजी और ट्रैन मे  बैठ  चूका हूँ , कल सुबह – सुबह घर पहुंच जाऊँगा , फिर सब लोग खूब होली खेलेंगे’, मधुर ने चहकते हुए कहा ।

‘हाँ-हाँ बेटा  बस जल्दी आजा’ पिताजी ने कहा।

‘ठीक हैं पिताजी फ़ोन रखता हूँ’, और फ़ोन कट गया।

घर मे  ख़ुशी का माहौल था, बेटा २ महीने  बाद घर आ रहा था, ऊपर से रंगो का त्यौहार होली भी था, इसलिए ख़ुशी दुगनी हो गयी।  सायं काल का समय था। सुनंदा  और माँ जी रसोई घर में थी, बाबूजी टीवी पर समाचार सुन  थे अचानक एक खबर से बाबूजी के आखों के सामने अँधेरा छाने लगा। समाचार मे बताया जा रहा था की दिल्ली से जिस ट्रैन से मधुर घर आ रहा था वो ट्रैन दुर्घटना ग्रस्त हो गयी है।

‘नहीं….’ बाबूजी जोर से चिल्लाते है, उनकी चीख सुनकर माँ जी और सुनंदा दोनों दौड़ कर रसोई घर से बहार आती है।

‘क्या हुआ जी?’ माँ जी चिंता भरे स्वर में पूछती है, और समाचार देख कर माँ जी भी चीख पड़ी।

‘मधुर, बेटा मधुर कैसा है मेरा मधुर?’ माँ जी चिल्लाती जा रही थी, सुनंदा के आखों से आसूं तो थमने का नाम ही नहीं ले रहे थे, फिर भी वो किसी तरह खुदको संभाल रही थी और साथ मे अपने बूढ़े सास-ससुर को भी संभालने की कोशिश कर रही थी।

‘बाबूजी , माँ जी शांत हो जाइये ,कुछ नहीं हो का  होगा इनको’, सुनंदा ने कहा फिर सुनंदा  दौड़ते  हुए जाती है, और रिसीवर को उठाकर मधुर को फ़ोन लगाती है पर मधुर का फ़ोन तो स्विच ऑफ आ रहा है।  अब सुनंदा के दिल की धड़कन बढ़ती जा रही थी किसी तरह सुनंदा माँ और पिताजी को शांत करा पायी थी। पर उसके मन के भीतर चिंताओं  का सैलाब उमड़ रहा था।  वो चाह  कर भी उसे व्यक्त नहीं कर पा  रही थी, उसे लग रहा था की अगर वो कमजोर पड़ गयी तो माँ जी और पिताजी को कौन  संभालेंगा ।

सभी लोग बार –  बार फ़ोन लगा रहे थे पर फ़ोन स्विच ऑफ ही आ रहा था। अब रात हो चुकी थी। तीनो ड्राइंग रूम मे बैठ कर बस टीवी पर हर चैनल मे आ रहे समाचार को ही सुने जा रहे थे। मधुर की अभी तक कोई खबर नहीं थी। पूरी रात तीनो ने बैठ कर ही बिता दी।  सुबह पांच बज चुके थे। दरवाजे की घंटी बजी , ट्रिंग …..

‘मधुर, बेटा  मधुर’ माँ जी ने कुर्सी से उठते हुए कहा। बूढ़े कदमो से जल्दी जल्दी चलने की कोशिश करते हुए  माँ जी दरवाजे को खोलती है पर दरवाजे पर दूधवाला था। माँ जी चेहरे पर फिर से शिकन आ जाती है। सुनंदा पतीला लेकर आती है और दूध लेकर रसोई घर मे चली जाती है ।

मधुर की ट्रैन भी पांच बजे ही पहुंचने वाली थी पर अब तो ट्रैन के दुर्घटनाग्रस्त होने के कारन मधुर का कोई अता -पता ही नहीं था। सुबह के ग्यारह बज चुके थे बाहर  होली के गीत बज रहे थे,  सभी लोग एक दूसरे को रंग और गुलाल लगा रहे थे पर माँ जी, पिताजी और सुनंदा के मन मे  केवल चिंताओं के बादल  छाए हुए थे। अचानक फिरसे दरवाजे की घंटी बजती है – ट्रिंग …. !

शायद से भाजी वाला होगा, सुनंदा ने कहा और अधमने मन से दरवाजा खोलती है। पर दरवाजा खोलते ही उसके चेहरे पर मुस्कान की लेहेर दौड़ पड़ती है और ख़ुशी से चिल्लाती है ।

‘आप, कैसे हे आप?’ और सुनंदा मधुर के गले लग जाती है। सुनंदा के आखों से ख़ुशी के आसूं बहते ही जा रहे थे। माँ जी पिताजी भी बाहर आ जाते है बेटे को देख कर उनकी ख़ुशी का ठिकाना नहीं रहता है फिर अचानक सुनंदा को आभास होता है की मधुर के हाथों  मे पट्टी बंधी है सुनंदा देखती है और पूछती है – ‘अरे ,क्या हुआ  आपको? आप ठीक है ना’ सर पे पट्टी बंधी थी और हाथ एवं पाँव मे भी। शर्ट पर भी खून के धब्बे थे।

तीनो मधुर को आराम से सोफे पर बिठाते  है, मधुर बताता है की ट्रैन दुर्घटनाग्रस्त हो गयी और काफी लोग मारे भी गए। काफी लोग घायल हुए , घायलों में एक नाम मधुर का भी था। मधुर को भी चोटे आयी थी, पर माँ -बाप की दुआ और पत्नी के असीम प्रेम का असर था की मधुर को ज्यादा छोटे नहीं आयी थी। वो बताने लगा की ट्रैन दुर्घटनाग्रस्त होने के  बाद वहा  के आस पास के लोग मदद  के लिए आ पहुंचे और घायलों को तुरंत ही अस्पताल पहुंचने लगे। मधुर को भी लोगों ने मिलकर अस्पताल पहुंचाया और वहाँ डॉक्टर ने मरहम पट्टी कर दी। मधुर का फ़ोन भी उस दुर्घटना मे  टूट चूका था। जिसके कारन घर पर कोई खबर भी नहीं दे पा रहा था साथ ही उस दुर्घटना को देखकर मधुर अंदर से काफी घबरा गया था उसे बस लग रहा था की किसी तरह वह अपने पूरा परिवार से जल्दी से जल्दी मिले। अब पिताजी , माँ जी और सुनंदा तीनो के चेहरे पर मुस्कान ही मुस्कान थी।  क्यों न हो, बेटा मौत के मुँह से निकल कर जो आया था।

बाबू जी धीरे से उठते है और गुलाल का डिब्बा लेकर आते है ,मधुर के चेहरे पर गुलाल लगाते  है और बोलते है –  हैप्पी होली बेटा। फिर मधुर   और सुनंदा भी माँ जी और बाबूजी के पैरों में गुलाल डालते है और आशीर्वाद लेते है।

माँ जी बोलती है, ‘यह होली हम लोगो के जीवन की एक यादगार होली रहेगी। चलो चलो, होली खेलने की तैयारी करते है’ ।बाबूजी एक बाल्टी मे  रंग घोलने लगते है और सुनंदा एवं माँ जी रसोई घर से पकवान लाती है और मधुर को खिलाती है। सचमुच यह होली मधुर और उसके पूरे परिवार के लिए एक यादगार होली बन जाएगी।

जहाँ कुछ घंटे पहले तक सारे रंग काले नजर आ रहे  थे, वही मधुर के घर पहुंचते ही गुलाल के वास्तविक रंग दिखलाई देने  लगे थे ।

हैप्पी होली !

 

नम्रता गुप्ता

 

Photo by A frame in motion from Pexels

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खुशियों वाली होली

‘बहु मधुर  की कोई खबर आई कि वह होली मे  घर आ रहा है की नहीं?’ पिताजी, ने पूछा।

‘हाँ पिताजी , होली के दिन सुबह – सुबह ही पहुचने वाले है ये’ सुनंदा ने उत्साह भरे स्वर मे  कहा ।  

माता जी भी पूजा कर के मंदिर से घर वापस  थी। ‘बहु , अरे ओ बहु , चाय तैयार है क्या?’ माता जी ने आवाज़ लगायी। ‘जी माँ जी अभी लायी’ , सुनंदा ने कहा। 

मधुर अपने माँ – बाप की इकलौती संतान है। दिल्ली के एक मल्टीनेशनल कंपनी में कार्यरत है। पिताजी को अपने गांव के खुले वातावरण मे  ही रहना पसंद है इसलिए वो शहर नहीं जाना चाहते । यही कारण  है की सुनंदा भी अपने बूढ़े सास-ससुर की देखभाल करने के लिए गांव  मे उनके साथ रहती है। बेटा  मधुर बीच – बीच मे आता -जाता रहता है। 

मधुर होली पर  पहुंचने वाला है।  माँ जी  और सुनंदा तरह – तरह के पकवान बनाने मे व्यस्त है, पिताजी अख़बार पढ़ने में व्यस्त है।  अचानक फ़ोन की घंटी बजी- ट्रिंग , ट्रिंग  ।

‘हेलो !’ पिताजी ने फ़ोन उठाते हुए कहा।

‘प्रणाम पिताजी, मै मधुर’, दूसरे तरफ से आवाज़ आयी।

‘अरे बेटा, मधुर कैसा है तू?’ पिताजी ने पूछा।

‘मैं ठीक हूँ पिताजी और ट्रैन मे  बैठ  चूका हूँ , कल सुबह – सुबह घर पहुंच जाऊँगा , फिर सब लोग खूब होली खेलेंगे’, मधुर ने चहकते हुए कहा ।

‘हाँ-हाँ बेटा  बस जल्दी आजा’ पिताजी ने कहा।

‘ठीक हैं पिताजी फ़ोन रखता हूँ’, और फ़ोन कट गया।

घर मे  ख़ुशी का माहौल था, बेटा २ महीने  बाद घर आ रहा था, ऊपर से रंगो का त्यौहार होली भी था, इसलिए ख़ुशी दुगनी हो गयी।  सायं काल का समय था। सुनंदा  और माँ जी रसोई घर में थी, बाबूजी टीवी पर समाचार सुन  थे अचानक एक खबर से बाबूजी के आखों के सामने अँधेरा छाने लगा। समाचार मे बताया जा रहा था की दिल्ली से जिस ट्रैन से मधुर घर आ रहा था वो ट्रैन दुर्घटना ग्रस्त हो गयी है।

‘नहीं….’ बाबूजी जोर से चिल्लाते है, उनकी चीख सुनकर माँ जी और सुनंदा दोनों दौड़ कर रसोई घर से बहार आती है।

‘क्या हुआ जी?’ माँ जी चिंता भरे स्वर में पूछती है, और समाचार देख कर माँ जी भी चीख पड़ी।

‘मधुर, बेटा मधुर कैसा है मेरा मधुर?’ माँ जी चिल्लाती जा रही थी, सुनंदा के आखों से आसूं तो थमने का नाम ही नहीं ले रहे थे, फिर भी वो किसी तरह खुदको संभाल रही थी और साथ मे अपने बूढ़े सास-ससुर को भी संभालने की कोशिश कर रही थी।

‘बाबूजी , माँ जी शांत हो जाइये ,कुछ नहीं हो का  होगा इनको’, सुनंदा ने कहा फिर सुनंदा  दौड़ते  हुए जाती है, और रिसीवर को उठाकर मधुर को फ़ोन लगाती है पर मधुर का फ़ोन तो स्विच ऑफ आ रहा है।  अब सुनंदा के दिल की धड़कन बढ़ती जा रही थी किसी तरह सुनंदा माँ और पिताजी को शांत करा पायी थी। पर उसके मन के भीतर चिंताओं  का सैलाब उमड़ रहा था।  वो चाह  कर भी उसे व्यक्त नहीं कर पा  रही थी, उसे लग रहा था की अगर वो कमजोर पड़ गयी तो माँ जी और पिताजी को कौन  संभालेंगा ।

सभी लोग बार –  बार फ़ोन लगा रहे थे पर फ़ोन स्विच ऑफ ही आ रहा था। अब रात हो चुकी थी। तीनो ड्राइंग रूम मे बैठ कर बस टीवी पर हर चैनल मे आ रहे समाचार को ही सुने जा रहे थे। मधुर की अभी तक कोई खबर नहीं थी। पूरी रात तीनो ने बैठ कर ही बिता दी।  सुबह पांच बज चुके थे। दरवाजे की घंटी बजी , ट्रिंग …..

‘मधुर, बेटा  मधुर’ माँ जी ने कुर्सी से उठते हुए कहा। बूढ़े कदमो से जल्दी जल्दी चलने की कोशिश करते हुए  माँ जी दरवाजे को खोलती है पर दरवाजे पर दूधवाला था। माँ जी चेहरे पर फिर से शिकन आ जाती है। सुनंदा पतीला लेकर आती है और दूध लेकर रसोई घर मे चली जाती है ।

मधुर की ट्रैन भी पांच बजे ही पहुंचने वाली थी पर अब तो ट्रैन के दुर्घटनाग्रस्त होने के कारन मधुर का कोई अता -पता ही नहीं था। सुबह के ग्यारह बज चुके थे बाहर  होली के गीत बज रहे थे,  सभी लोग एक दूसरे को रंग और गुलाल लगा रहे थे पर माँ जी, पिताजी और सुनंदा के मन मे  केवल चिंताओं के बादल  छाए हुए थे। अचानक फिरसे दरवाजे की घंटी बजती है – ट्रिंग …. !

शायद से भाजी वाला होगा, सुनंदा ने कहा और अधमने मन से दरवाजा खोलती है। पर दरवाजा खोलते ही उसके चेहरे पर मुस्कान की लेहेर दौड़ पड़ती है और ख़ुशी से चिल्लाती है ।

‘आप, कैसे हे आप?’ और सुनंदा मधुर के गले लग जाती है। सुनंदा के आखों से ख़ुशी के आसूं बहते ही जा रहे थे। माँ जी पिताजी भी बाहर आ जाते है बेटे को देख कर उनकी ख़ुशी का ठिकाना नहीं रहता है फिर अचानक सुनंदा को आभास होता है की मधुर के हाथों  मे पट्टी बंधी है सुनंदा देखती है और पूछती है – ‘अरे ,क्या हुआ  आपको? आप ठीक है ना’ सर पे पट्टी बंधी थी और हाथ एवं पाँव मे भी। शर्ट पर भी खून के धब्बे थे।

तीनो मधुर को आराम से सोफे पर बिठाते  है, मधुर बताता है की ट्रैन दुर्घटनाग्रस्त हो गयी और काफी लोग मारे भी गए। काफी लोग घायल हुए , घायलों में एक नाम मधुर का भी था। मधुर को भी चोटे आयी थी, पर माँ -बाप की दुआ और पत्नी के असीम प्रेम का असर था की मधुर को ज्यादा छोटे नहीं आयी थी। वो बताने लगा की ट्रैन दुर्घटनाग्रस्त होने के  बाद वहा  के आस पास के लोग मदद  के लिए आ पहुंचे और घायलों को तुरंत ही अस्पताल पहुंचने लगे। मधुर को भी लोगों ने मिलकर अस्पताल पहुंचाया और वहाँ डॉक्टर ने मरहम पट्टी कर दी। मधुर का फ़ोन भी उस दुर्घटना मे  टूट चूका था। जिसके कारन घर पर कोई खबर भी नहीं दे पा रहा था साथ ही उस दुर्घटना को देखकर मधुर अंदर से काफी घबरा गया था उसे बस लग रहा था की किसी तरह वह अपने पूरा परिवार से जल्दी से जल्दी मिले। अब पिताजी , माँ जी और सुनंदा तीनो के चेहरे पर मुस्कान ही मुस्कान थी।  क्यों न हो, बेटा मौत के मुँह से निकल कर जो आया था।

बाबू जी धीरे से उठते है और गुलाल का डिब्बा लेकर आते है ,मधुर के चेहरे पर गुलाल लगाते  है और बोलते है –  हैप्पी होली बेटा। फिर मधुर   और सुनंदा भी माँ जी और बाबूजी के पैरों में गुलाल डालते है और आशीर्वाद लेते है।

माँ जी बोलती है, ‘यह होली हम लोगो के जीवन की एक यादगार होली रहेगी। चलो चलो, होली खेलने की तैयारी करते है’ ।बाबूजी एक बाल्टी मे  रंग घोलने लगते है और सुनंदा एवं माँ जी रसोई घर से पकवान लाती है और मधुर को खिलाती है। सचमुच यह होली मधुर और उसके पूरे परिवार के लिए एक यादगार होली बन जाएगी।

जहाँ कुछ घंटे पहले तक सारे रंग काले नजर आ रहे  थे, वही मधुर के घर पहुंचते ही गुलाल के वास्तविक रंग दिखलाई देने  लगे थे ।

हैप्पी होली !

 

नम्रता गुप्ता

 

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