दीवाली बोनस

Avatar
धनेश परमार

11 Aug 20246 min read

Published in stories

दीवाली बोनस

 

मैं केवल मोबाइल में बिजी होने का नाटक करता रहा था। दरअसल, मेरा ध्यान और कान रसोई में पत्नी और शांता के बीच चल रही गरमागरम बातचीत पर था।

“बहन दीवाली बोनस दीजिए न, हमें भी दिवाली की शॉपिंग करनी है”, शांता बोली।

पत्नी ने जवाब दिया, “पूरे साल तुम मुफ्त में थोड़ी काम करती हो, माँगी गई तनख्वाह तो हम दे रहे हैं। 501 से अधिक बोनस नहीं मिलेगा,  अगर आप काम करना चाहते हो तो करो।”

शांता बोली “बहन 501 में क्या होता है ? बच्चों के नए कपड़े, मेरे नए कपड़े और मिठाइयाँ और पटाखे घर लाऊँ या नहीं ?”

“लेकिन तुम्हें तो हर घर से बोनस मिलेगा न !” पत्नी ने पलटवार किया।

“बहन चार घर में काम कर रही हूं। अगर हर कोई 500 रुपये दे दे तो क्या होगा? जाने भी दो बहन… मैं स्वयं व्यवस्था कर लूंगी।” यह कहकर शांता स्वयं घर की सफाई करने लगी।

मैं और मेरी बेटी इस बात के सख्त विरोधी थे।

हम कभी भी वॉचमैन, फेरीवाले या फुटपाथ पर सब्जी बेचने वाले से मोलभाव नहीं करते। हर साल, परमात्मा की कृपा से, मुझे वेतन वृद्धि मिलती थी और साथ ही अच्छा खासा बोनस (प्रिस) भी मिलता था। परमात्मा मुझे इतना देते थे कि मेरी झोली कभी खाली नहीं होती थी, मैं संतुष्ट और खुश रहता था। इससे अधिक महत्वपूर्ण क्या चाहिए मुझे ?

जब आपका काम बिना किसी के सामने हाथ फैलाए पूरा हो जाए तो समझ जाएं कि कोई अदृश्य शक्ति आपकी रक्षा कर रही है या आप पर अपनी कृपा बरसा रही है।

शांता काम खत्म करके घर से चली गई लेकिन आज वह उदास मन से चली गई जो मुझे बिल्कुल पसंद नहीं आया। मेरी आंखें गीली हो गईं। पत्नी से इस बारे में चर्चा करने का कोई मतलब नहीं था क्योंकि वो कई बार मुझसे सख्त शब्दों में कहती थी कि हमारी बातों में दखल मत दो।  

घर में आमदनी की कोई दिक्कत नहीं थी, फिर भी पत्नी ऐसा क्यों कर रही होगी?

उस शाम जब हम खाना खाने बैठे थे तो मैंने पत्नी को बताया कि इस दिवाली पर हमें बोनस नहीं मिलेगा।

पत्नी ने गंभीरता से कहा… ऐसे कैसे चलेगा ? अगर आपने पूरे साल काम किया है तो आपको बोनस तो देना ही चाहिए ना ?

मैंने कहा, यूनियन वालों ने प्रबंधन से बात की थी लेकिन प्रबंधन ने कहा कि हम हर महीने वेतन दे रहे हैं न ? जिसे काम करना है करे या फिर नई नौकरी ढूंढ़ ले।

पत्नी कहती है “इसे बदमाशी कहते हैं… इस बार आपको कितना बोनस मिलने वाला था ? ”

मैंने कहा, “अस्सी हजार”।

पत्नी निराश होकर खाने लगी।

मैं मुस्कुरा कर खड़ा हो गया, “पत्नी ने पूछा, अचानक क्यों ? ”

मैंने कहा, “मैं झूठ बोल रहा था। मुझे अस्सी हजार बोनस मिलेगा।”

पत्नी और बेटी खुश हो गए।

मैंने पत्नी से कहा “तुम बुरा मत लगाना लेकिन अगर आपके पति को बोनस मिलेगा तो वह खुश हो जाएंगी लेकिन हमारे घर पर काम करने वाली शांता को बोनस मिलेगा तो क्या वह और उसका परिवार खुश नहीं होंगे ?

क्या आपको नहीं लगता कि भगवान हमें आँख मूँद कर कुछ दे रहा है।

शांता को नाराज़ मत करो, नहीं तो मेरे परमात्मा मुझसे नाराज़ हो जाएंगे।”

पत्नी और बेटी की आंखें नम हो गईं। पत्नी ने कहा “आप 100% सही कह रहे हो। हमारे सुख और शांति के पीछे परमात्मा की कृपा तो है ही, लेकिन किसी की दुआ भी छिपी होती है। जो दिखती नहीं है वो महसूस होती है। मुझे अपनी गलती का एहसास हो गया है।”

बेटी ने कहा “पापा मुझे तुम पर गर्व है। अगर हम 365 दिन अपना काम करने वाले लोगों को अपनी आंखों के सामने रखेंगे तो परमात्मा भी उससे खुश होंगे।”

परमात्मा किसी पर कृपा बरसाने के लिए एक माध्यम चुनते हैं और यदि उन्होंने हमें वह माध्यम चुन लिया तो समझ लें कि हमारा मनुष्य जन्म सफल हो गया।

पत्नी ने कहा “एक परमात्मा ही तो है जो गिने बिना सब कुछ देता है, और एक हम हैं जो उसका नाम भी गिन-गिन के लेते हैं।”

हमें जो मिला है वह न केवल बुद्धि या परिश्रम का परिणाम है बल्कि पिछले जन्मों के कर्मों और कई लोगों की दुआओं का संयुक्त परिणाम भी है।

बेटी बोली, “वाह पापा वाह! मम्मी ही नहीं मैंने भी आपसे बहुत कुछ सीखा है।”

अगले दिन, शांता काम करने के लिए घर आई, लेकिन हमेशा की तरह, उसने मेरी पत्नी से जय श्री कृष्ण नहीं कहा।

पत्नी ने खड़े होकर शांता के सिर पर हाथ रखा और कहा, “शांता बहन, आज मुझे जय श्री कृष्ण नहीं कहोगी ? ”

शांता की आंखें गीली थीं। पत्नी ने कहा, “शांता बहन, अगर तुम्हें बुरा लगा हो तो मुझे माफ करना। मुझे अपनी गलती का एहसास हो गया है। यह लिफाफा ले लो, इसमें दस हजार रुपए हैं।

मेरी ओर से 5000 और मेरे पति की ओर से 5000।”

“अरे, इतने ज्यादा न दें।” शांता ने कहा।

पत्नी ने कहा “5000 से दीवाली मनाना और शेष 5000 बेटी की पढ़ाई पर खर्च करना। पढ़ाई पर खर्च करने के लिए दिए गए रूपए पढ़ाई के लिए ही खर्च करोगी और उसका हिसाब भी देना पड़ेगा। आज रविवार है घर का काम मैं खुद कर लूंगी, तुम आज दिवाली की शॉपिंग के लिए जाओ।”

मैंने देखा कि शांता की भी आँखें गीली थीं और पत्नी की भी।

शांता के जाने के बाद मैंने पत्नी से पूछा “कि 10 हजार क्यों दिए ?”

पत्नी ने जवाब दिया कि “कल जब शांता जाने की तैयारी कर रही थी उसी समय उनकी बेटी का फोन आया था और वह पुस्तकें खरीदने के लिए 3000 रुपए मांग रही थी। यदि उनको 5000 देती तो उसमें से 3000 तो उनकी बेटी की पुस्तकों के पीछे ही खर्च हो जाते और उनके पास सिर्फ 2000 रूपए ही बच पाते।”

आज मुझे ऐसा लगा जैसे हमारे घर में सचमुच दिवाली का उत्सव शुरू हो गया है। मुझे ऐसा लग रहा था जैसे बिना दीप के घर में इंसानियत के दीप जल गए हों।

हमने नम आँखों से पत्नी के बदले हुए स्वभाव को देखा।

साथियों,

मौत की गाड़ी में जिस दिन सोना होगा, न होगा तकिया, न होगा बिस्तर, होगा तो सिर्फ केवल कर्मों का हिसाब।

ज्योत से ज्योत जले, आपकी छोटी सी सहायता से किसी के घर की दीवाली के दीप प्रज्जवलित होंगे।

 

धनेश परमार “परम”

Comments (0)

Please login to share your comments.



दीवाली बोनस

Avatar
धनेश परमार

11 Aug 20246 min read

Published in stories

दीवाली बोनस

 

मैं केवल मोबाइल में बिजी होने का नाटक करता रहा था। दरअसल, मेरा ध्यान और कान रसोई में पत्नी और शांता के बीच चल रही गरमागरम बातचीत पर था।

“बहन दीवाली बोनस दीजिए न, हमें भी दिवाली की शॉपिंग करनी है”, शांता बोली।

पत्नी ने जवाब दिया, “पूरे साल तुम मुफ्त में थोड़ी काम करती हो, माँगी गई तनख्वाह तो हम दे रहे हैं। 501 से अधिक बोनस नहीं मिलेगा,  अगर आप काम करना चाहते हो तो करो।”

शांता बोली “बहन 501 में क्या होता है ? बच्चों के नए कपड़े, मेरे नए कपड़े और मिठाइयाँ और पटाखे घर लाऊँ या नहीं ?”

“लेकिन तुम्हें तो हर घर से बोनस मिलेगा न !” पत्नी ने पलटवार किया।

“बहन चार घर में काम कर रही हूं। अगर हर कोई 500 रुपये दे दे तो क्या होगा? जाने भी दो बहन… मैं स्वयं व्यवस्था कर लूंगी।” यह कहकर शांता स्वयं घर की सफाई करने लगी।

मैं और मेरी बेटी इस बात के सख्त विरोधी थे।

हम कभी भी वॉचमैन, फेरीवाले या फुटपाथ पर सब्जी बेचने वाले से मोलभाव नहीं करते। हर साल, परमात्मा की कृपा से, मुझे वेतन वृद्धि मिलती थी और साथ ही अच्छा खासा बोनस (प्रिस) भी मिलता था। परमात्मा मुझे इतना देते थे कि मेरी झोली कभी खाली नहीं होती थी, मैं संतुष्ट और खुश रहता था। इससे अधिक महत्वपूर्ण क्या चाहिए मुझे ?

जब आपका काम बिना किसी के सामने हाथ फैलाए पूरा हो जाए तो समझ जाएं कि कोई अदृश्य शक्ति आपकी रक्षा कर रही है या आप पर अपनी कृपा बरसा रही है।

शांता काम खत्म करके घर से चली गई लेकिन आज वह उदास मन से चली गई जो मुझे बिल्कुल पसंद नहीं आया। मेरी आंखें गीली हो गईं। पत्नी से इस बारे में चर्चा करने का कोई मतलब नहीं था क्योंकि वो कई बार मुझसे सख्त शब्दों में कहती थी कि हमारी बातों में दखल मत दो।  

घर में आमदनी की कोई दिक्कत नहीं थी, फिर भी पत्नी ऐसा क्यों कर रही होगी?

उस शाम जब हम खाना खाने बैठे थे तो मैंने पत्नी को बताया कि इस दिवाली पर हमें बोनस नहीं मिलेगा।

पत्नी ने गंभीरता से कहा… ऐसे कैसे चलेगा ? अगर आपने पूरे साल काम किया है तो आपको बोनस तो देना ही चाहिए ना ?

मैंने कहा, यूनियन वालों ने प्रबंधन से बात की थी लेकिन प्रबंधन ने कहा कि हम हर महीने वेतन दे रहे हैं न ? जिसे काम करना है करे या फिर नई नौकरी ढूंढ़ ले।

पत्नी कहती है “इसे बदमाशी कहते हैं… इस बार आपको कितना बोनस मिलने वाला था ? ”

मैंने कहा, “अस्सी हजार”।

पत्नी निराश होकर खाने लगी।

मैं मुस्कुरा कर खड़ा हो गया, “पत्नी ने पूछा, अचानक क्यों ? ”

मैंने कहा, “मैं झूठ बोल रहा था। मुझे अस्सी हजार बोनस मिलेगा।”

पत्नी और बेटी खुश हो गए।

मैंने पत्नी से कहा “तुम बुरा मत लगाना लेकिन अगर आपके पति को बोनस मिलेगा तो वह खुश हो जाएंगी लेकिन हमारे घर पर काम करने वाली शांता को बोनस मिलेगा तो क्या वह और उसका परिवार खुश नहीं होंगे ?

क्या आपको नहीं लगता कि भगवान हमें आँख मूँद कर कुछ दे रहा है।

शांता को नाराज़ मत करो, नहीं तो मेरे परमात्मा मुझसे नाराज़ हो जाएंगे।”

पत्नी और बेटी की आंखें नम हो गईं। पत्नी ने कहा “आप 100% सही कह रहे हो। हमारे सुख और शांति के पीछे परमात्मा की कृपा तो है ही, लेकिन किसी की दुआ भी छिपी होती है। जो दिखती नहीं है वो महसूस होती है। मुझे अपनी गलती का एहसास हो गया है।”

बेटी ने कहा “पापा मुझे तुम पर गर्व है। अगर हम 365 दिन अपना काम करने वाले लोगों को अपनी आंखों के सामने रखेंगे तो परमात्मा भी उससे खुश होंगे।”

परमात्मा किसी पर कृपा बरसाने के लिए एक माध्यम चुनते हैं और यदि उन्होंने हमें वह माध्यम चुन लिया तो समझ लें कि हमारा मनुष्य जन्म सफल हो गया।

पत्नी ने कहा “एक परमात्मा ही तो है जो गिने बिना सब कुछ देता है, और एक हम हैं जो उसका नाम भी गिन-गिन के लेते हैं।”

हमें जो मिला है वह न केवल बुद्धि या परिश्रम का परिणाम है बल्कि पिछले जन्मों के कर्मों और कई लोगों की दुआओं का संयुक्त परिणाम भी है।

बेटी बोली, “वाह पापा वाह! मम्मी ही नहीं मैंने भी आपसे बहुत कुछ सीखा है।”

अगले दिन, शांता काम करने के लिए घर आई, लेकिन हमेशा की तरह, उसने मेरी पत्नी से जय श्री कृष्ण नहीं कहा।

पत्नी ने खड़े होकर शांता के सिर पर हाथ रखा और कहा, “शांता बहन, आज मुझे जय श्री कृष्ण नहीं कहोगी ? ”

शांता की आंखें गीली थीं। पत्नी ने कहा, “शांता बहन, अगर तुम्हें बुरा लगा हो तो मुझे माफ करना। मुझे अपनी गलती का एहसास हो गया है। यह लिफाफा ले लो, इसमें दस हजार रुपए हैं।

मेरी ओर से 5000 और मेरे पति की ओर से 5000।”

“अरे, इतने ज्यादा न दें।” शांता ने कहा।

पत्नी ने कहा “5000 से दीवाली मनाना और शेष 5000 बेटी की पढ़ाई पर खर्च करना। पढ़ाई पर खर्च करने के लिए दिए गए रूपए पढ़ाई के लिए ही खर्च करोगी और उसका हिसाब भी देना पड़ेगा। आज रविवार है घर का काम मैं खुद कर लूंगी, तुम आज दिवाली की शॉपिंग के लिए जाओ।”

मैंने देखा कि शांता की भी आँखें गीली थीं और पत्नी की भी।

शांता के जाने के बाद मैंने पत्नी से पूछा “कि 10 हजार क्यों दिए ?”

पत्नी ने जवाब दिया कि “कल जब शांता जाने की तैयारी कर रही थी उसी समय उनकी बेटी का फोन आया था और वह पुस्तकें खरीदने के लिए 3000 रुपए मांग रही थी। यदि उनको 5000 देती तो उसमें से 3000 तो उनकी बेटी की पुस्तकों के पीछे ही खर्च हो जाते और उनके पास सिर्फ 2000 रूपए ही बच पाते।”

आज मुझे ऐसा लगा जैसे हमारे घर में सचमुच दिवाली का उत्सव शुरू हो गया है। मुझे ऐसा लग रहा था जैसे बिना दीप के घर में इंसानियत के दीप जल गए हों।

हमने नम आँखों से पत्नी के बदले हुए स्वभाव को देखा।

साथियों,

मौत की गाड़ी में जिस दिन सोना होगा, न होगा तकिया, न होगा बिस्तर, होगा तो सिर्फ केवल कर्मों का हिसाब।

ज्योत से ज्योत जले, आपकी छोटी सी सहायता से किसी के घर की दीवाली के दीप प्रज्जवलित होंगे।

 

धनेश परमार “परम”

Comments (0)

Please login to share your comments.