
सांवला रंग
सांवला रंग
‘सावित्री , अरी ओ सावित्री …’
‘सावित्री , अरी ओ सावित्री …जल्दी जल्दी घर का काम निपटा ले, लड़के वाले आते ही होंगे’, सावित्री की दादी गायों को चारा खिलाते हुए कह रही थी
‘हाँ दादी !’ सावित्री ने दबे स्वर मे कहा ।
सावित्री को देखने लड़के वाले आने वाले थे ,पर सावित्री के मन में ख़ुशी के बदले परेशानी बानी हुई थी, कारण था -उसका सांवला रंग ।
सावित्री अपने चेहरे को आईने में निहार रही थी और सोच रही थी की, क्या आज भी अन्य दिनों की तरह लड़के वाले उसे उसके सांवले रंग के कारण अस्वीकार कर देंगे? क्या हर बार की तरह इस बार भी उसकी दादी के सपने जो उसने अपनी पोती के लिए देख रखे है टूट जायेंगे ?
सावित्री का लालन पालन उसकी दादी ने ही किया था । बचपन में ही सावित्री के माता पिता का देहांत हो चुका था । बूढी दादी ने ही सावित्री का लालन पालन किया था पर अब दादी को सावित्री के ब्याह की चिंता सत्ता रही थी । सावित्री के नैन नक्श बहुत तीखे थे, बहुत ही सुन्दर थी वह, लेकिन उसकी सुंदरता पर मानो उसका सांवला रंग ग्रहण की तरह बैठा हुआ था । लड़के वाले आते और उसे उसके सांवले रंग के कारण अस्वीकार करके चले जाते।
सावित्री अब एक सुन्दर सी सारी पहनकर तैयार हो चुकी थी । दादी भी चाय पकोड़े की तैयारी कर चुकी थी , पड़ोस वाली विमला चची भी मदद के लिए आ चुकी थी।
‘लड़के वाले आ गए …… लड़के वाले आ गए’, विमला चची ख़ुशी स्वर में बोल रही थी ।
‘आइये आइये !’, दादी ने भी मेहमानों का स्वागत किया, फिर मेहमानों को एक चौकी में बिठाया ।
चार लोग आये थे -लड़का, उसके माता -पिता और साथ में एक दूर की बुआ । फिर दादी और विमला चची मेहमानो के आव भगत में लग गए।
‘अब जरा लड़की को भी बुला लीजिये’, लड़के के पिता ने कहा।
‘हां -हां ,क्यों नहीं ….’,दादी ने कहा। विमला चाची अंदर कमरे में जाती है और सावित्री को साथ लेकर आती है।
पर ये क्या, सावित्री को देखते ही चारो मेहमानो के चेहरे का रंग ही उतर जाता है । लड़के की बुआ कटाक्ष करते हुए बोलती है, की फोटो में तो लड़की का रंग गोरा दिख रहा था । लड़के के माता -पिता के हाव भाव भी कुछ ठीक नहीं लग रहे थे । उन लोगो ने भी व्यंग्य करते हुए कहा की फोटो से तो बिलकुल अलग है लड़की का रंग ।
दादी घबरा जाती है ,वो बोलती है की मेरी सावित्री तो लाखो है, घर के सारे काम में निपुण है मेरी बच्ची ,आठवीं पास भी है। घर में कुछ दिन आराम से रहेगी तो रंग अपने आप ही साफ़ हो जायेगा ।
‘नहीं ……नहीं ,मुझे अपने लड़के के लिए गोरी लड़की ही चाहिए’, लड़के की माँ ने कहा। ‘चलिए जी ,फ़ालतू में समय पास कर कुछ फायदा नहीं’।
‘हाँ…..चलो चलो’, पिता ने भी हामी भर दी ।
‘ऐसा मत कीजिये, मैं आपके हाथ जोड़ती हूँ ,फिर से मेरी बच्ची का दिल टूट जायेगा, थोड़ा तो तरस खाइये ,बिन माता पिता की बच्ची है यह’
‘सारे बेसहारों का ठेका क्या हमने ही ले रखा है क्या?’ बुआ ने कटाक्ष किया ।
‘चलिए हटिये और जाने दीजिये’, बोलते हुए सब आगे बढ़ने लगे. सावित्री सब कुछ देख रही थी ,अचानक वो चिल्ला उठी, ‘दादी क्यों भीख मांग रही हो इन लोगो से मेरे लिए ? क्यूँ दादी क्यों?’
चारो मेहमान अचानक रुक जाते है ,फिर सावित्री बोलती है, ‘मुझे भी ऐसी जगह ब्याह नहीं करना जहा रंग के आधार पर भेद भाव किया जाता हो, नहीं बनना मुझे भी आपके घर की बहू’
लड़के की माँ बोलती है, ‘बाप रे ! तेवर तो देखो इस लड़की के ,कितनी अकड़ है इसमें। चलो जी अब एक मिनट के लिए भी नहीं रुकना यहां’
फिर चारो चले जाते है ।
सावित्री दादी को जोर से गले लगाती है और बोलती है, ‘दादी, क्या मैं आपके लिए बोझ बन गयी हूँ?’
‘नहीं बेटी ,मेरे जीवन का एकमात्र सहारा तो तू ही है ;पर मेरी बच्ची …. बेटियों को तो एक न एक दिन ब्याह करके दूसरे घर जाना ही होता है न !और मेरी ज़िन्दगी का क्या भरोसा ,मैं तो आज हूँ कल नहीं’
‘दादी, ऐसी बातें मत करो, मैं और आप एक दूसरे का सहारा है और आगे भी रहेंगे। मैं उम्र आपकी सेवा में लगा दूंगी । दादी, मैं अपनीं आगे की पढ़ाई भीं पूरी कर लूंगी, नहीं करनी मुझे शादी दादी, मुझे अपने आप से अलग मत करो’
फिर दादी और पोती एक दूसरे को गले लगाते हुए खूब रोती है, पास में खड़ी विमला चाची के आँखों से भी अश्रु धरा बह रहे थे और दादी पोती का यह प्यार देखकर उनका भी मन भाव विभोर हो रहा था ।
नम्रता गुप्ता
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