आँखें

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धनेश परमार

22 Aug 20247 min read

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आँखें


कॉल सेंटर के बाहर लंबी लाईन लगी थी। नौकरी तो दस लोगों को ही मिलने वाली थी पर लंबी कतार बता रही थी कि नौकरी की आशा में तीन सौ लोग लाईन में थे।

शालिनी ने लोगों की बातचीत से ही अंदाजा लगा लिया था कि नौकरी का आवेदन करने वाले ज्यादा हैं। वह मन ही मन नर्वस हो रही थी कि इतने आँख वालों के बीच उस अंधी लड़की को कॉल सेंटर में नौकरी कैसे मिलेगी ?

तभी प्यून ने उसका नाम पुकारा और वह अपनी बहन स्नेहा के साथ अंदर जाने लगी लेकिन प्यून ने स्नेहा को अंदर जाने से रोक दिया। स्नेहा ने बताना चाहा कि उसकी बहन अंधी है मगर शालिनी ने उसके हाथ को दबाते हुए इशारा करके रोक दिया और अकेले ही अंदर जाने का मन बना लिया।
शालिनी इसी भ्रम में थी कि वह अंधी है तो क्या हुआ उसके पास शिक्षा की आँखें तो हैं मगर आज उसका भ्रम टूट गया।

उसे कॉल सेंटर की नौकरी के लिए अनुपयोगी माना गया। वह वापस बस में अपने शहर जा रही थी। उसके आंसू रूकने का नाम नही ले रहे थे। वह स्नेहा से कह रही थी कि पिताजी ने अपना सारा पैसा मेरी पढ़ाई में लगा दिया। अब अगर मुझे नौकरी नही मिली तो दो वक्त की रोटी भी नसीब नही होगी।

उसकी ये सारी बातें उसी की सीट के पीछे बैठा राजू सुन रहा था। वह शालिनी के पड़ोस में रहता था और मन ही मन शालिनी को पसंद करता था। मगर वह जानता था कि हीन भावना की शिकार शालिनी कभी उसकी जीवन संगिनी बनने को तैयार नहीं होगी।

राजू को समझ में नही आ रहा था कि वह किस तरह शालिनी की मदद करे।
सोचते-सोचते आखिर उसके दिमाग में एक खतरनाक विचार ने जन्म लिया।
उसने घर आकर शालिनी से मुलाकात की और उससे स्पष्ट शब्दों में कहा कि- मैं तुमसें प्यार करता हूँ। हालांकि मैं सुंदर नही हूँ और शायद तुम्हारी आंखे होती तो तुम मुझे रिजेक्ट कर देतीं।

 

शालिनी की आँखों में आंसू आ गए। उसने कहा-वो पागल होते है जो अपने चाहने वाले को रिजेक्ट कर देते हैं। पर राजू मैं तुमसे प्यार नही कर सकती। तुम अपने लिए कोई आँख वाली लड़की ढूंढ लो।

राजू निराश होकर चला गया। कुछ ही दिनों में उसे किसी शहर में बीमा कंपनी में नौकरी मिल गई और वह गांव छोड़कर चला गया।

एक दिन गांव में कुछ एनजीओ वाले आए। उनकी नज़र शालिनी पर गई तो उन्होंने उसे आशा बंधाई कि उसकी आँखे ठीक हो सकती हैं। हालांकि शालिनी को विश्वास नहीं हो रहा था, लेकिन एनजीओ के लोगों के आश्वासन देने पर उसकी खुशी का ठिकाना न रहा।

अब शालिनी के पास आँखें थी। एक नही दो, जो कि उसकी सुंदरता में चार चाँद लगा रही थी।

इस बार उसने एक एम.एन.सी. कॉल सेंटर में आवेदन किया और उसे आठ लाख के वार्षिक पैकेज की अच्छी नौकरी मिल गई। सब कुछ ठीक था, लेकिन अब उसे राजू की याद आ रही थी। उसने राजू को कई जगह तलाश किया। उसके घर पर भी पूछताछ की मगर राजू का कहीं पता नही चल रहा था।

दूसरी ओर शालिनी की माँ ने उसके लिए रिश्तों की तलाश शुरु कर दी थी, पर शालिनी के दिल में तो राजू ही बसा था। शालिनी की तलाश ने अब एक मिशन का रूप ले लिया था। वह सोचती रहती थी कि जो लड़का एक अंधी लड़की को अपना बनाना चाहता हो उसका दिल कितना सुंदर होगा। वह राजू से मिलकर उसे सरप्राइज देना चाहती थी।

 
वह राजू का हाथ पकड़ कर कहना चाहती थी कि राजू!  चल शादी करतें हैं। पर इसके लिए राजू का मिलना भी तो जरूरी था।

राजू की तलाश अब गुगल, फेसबुक, ट्विटर, वॉट्सएप से बदलकर प्रार्थना तक जा पंहुची थी।

 
एक दिन उसे उसी अंध विद्यालय के एक कार्यक्रम में मुख्य अतिथि बनने का मौका मिला। जिसमें कभी वह खुद पढ़ा करती थी। वह स्नेहा को साथ लेकर स्कूल की सीढ़ियां चढ़ रही थी तभी सीढ़ियां उतर रहा एक विद्यार्थी स्नेहा से टकरा कर गिर गया।

शालिनी दौड़कर उसे उठाने में मदद करने लगी जो कि वास्तव में वही राजू था, जिसने किसी दिन शालिनी से अपने प्रेम का इजहार किया था। जैसे ही स्नेहा की नजर राजू पर पड़ी, उसके मुंह से निकला- राजू तुम ?

राजू ने भी स्नेहा की आवाज पहचान ली, उसने कहा- स्नेहा तुम ? तुम यहां क्या कर रही हो ?

 
स्नेहा ने कहा- पहले ये बताइए कि आप यहां क्या कर रहे हैं ?

राजू ने कहा- एक एक्सीडेंट में मेरी दोनों आँखें चली गई। इसलिए ब्रेल लिपी सीख रहा हूँ।

 
शालिनी का तो दिमाग़ ही चकरा कर रह गया। वह मन ही मन सोचने लगी- “क्या यही राजू है। इतना काला, इतना बदसूरत और आंखे ना होने की वजह से डरावना भी तो लगता है।”

राजू ने स्नेहा से शालिनी के बारे में पूछा तो शालिनी ने तुंरत उसे इशारा किया कि उसके बारे में ना बताए। स्नेहा ने राजू से कहा कि शालिनी तो नही आ पाई।

राजू ने थोड़ा उदास होकर पूछा, अच्छा। पर शालिनी को तो मुख्य अतिथि के रूप में आमंत्रित किया गया था।

शालिनी ने स्नेहा को कुछ इशारे में समझाया। स्नेहा उसकी बात समझ गई और उसने कहा कि- हां ! आमंत्रित किया था पर उसकी आँखों के अंधेपन की वजह से नहीं आ सकती। इसलिए मैं स्कूल मैनेजमेंट को मना करने आई हूँ।

 
राजू की उदासी और गहरी हो गई। उसने स्नेहा से विदा ली और धीमे-धीमे स्कूल की सीढ़ियां उतरने लगा।

उतरते हुए उसने अपना मोबाइल निकाल लिया था और उसमें कुछ नंबर टटोलने लगा। उसे अपने से दूर जाते देख शालिनी ने राहत की सांस ली और स्नेहा से कहा कि हमने झूठ तो बोल दिया पर वह हमारा पड़ोसी है।

यह झूठ ज्यादा दिन नही चलने वाला।  शालिनी ने फैसला किया कि अब उसे मुख्य अतिथि नही बनना है वरना आज ही राजू को पूरा झूठ पता चल जाएगा। शालिनी फिर से स्नेहा के साथ सीढियां उतरने लगी।

उसने देखा कि राजू भी फोन पर गुस्से में किसी से बात करते हुए उतर रहा है। शालिनी ने स्नेहा को समझाया कि दबे कदमों से उतरना, नही तो राजू हमारे कदमों की आहट से भी पहचान लेगा।

दोनों दबे कदमों से राजू के करीब से गुजरी मगर फोन पर चल रही बातचीत से शालिनी को झटका सा लगा। वह थोडा रूककर ध्यान से राजू की बातें सुनने लगी।

राजू फोन पर एनजीओ के लोगों को डांट रहा था कि शालिनी आज भी नही देख पा रही है। वह एनजीओ वालों को ना जाने क्या क्या कहता जा रहा था। आखिर में उसकी आँखों से आंसू निकल पड़े और एनजीओ वालों को बद्दुआ देते हुए कहा-
तुम लागों ने मेरी शालिनी की जिंदगी खराब कर दी। काश ! मेरे पास और आँखें होती तो मैं दोबारा उसे आँखें दान कर देता मगर इस बार तुम्हारे पास नही आता।

 
सारी बातें सुनकर शालिनी की आँखों से आंसू बह निकले, वह राजू से जाकर लिपट गई और माफी माँगने लगी।

उसने जो-जो झूठ स्नेहा से बुलवाया था, वह सब भी बता दिया। राजू ने हँसकर कहा- अरे पगली। मैं तो जानता था कि आँखें मिलने पर तू मुझे रिजेक्ट कर देगी। इसीलिए तो मैं खुद ही तुझसे दूर चला आया।

 
अब मुझे तेरी जरुरत नहीं है क्योंकि जब से आँखें तुझे दी है, तू मेरी आँखों में ही रहती है। शालिनी रोते हुए राजू के गले लग गई।

उसने कहा- पर राजू मुझे तो तेरी जरुरत है। शायद मैं सुंदरता के मायने ही भूल गई थी, मुझे माफ कर दो।

शालिनी, राजू के साथ अंध विद्यालय की सीढ़ियां चढ रही थी, क्योंकि उसे दुनिया के सामने एक ऐसे इंसान को लाना था जो अब उसकी नजर में देवता था।

 

धनेश परमार ‘परम’

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धनेश परमार

22 Aug 20247 min read

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कॉल सेंटर के बाहर लंबी लाईन लगी थी। नौकरी तो दस लोगों को ही मिलने वाली थी पर लंबी कतार बता रही थी कि नौकरी की आशा में तीन सौ लोग लाईन में थे।

शालिनी ने लोगों की बातचीत से ही अंदाजा लगा लिया था कि नौकरी का आवेदन करने वाले ज्यादा हैं। वह मन ही मन नर्वस हो रही थी कि इतने आँख वालों के बीच उस अंधी लड़की को कॉल सेंटर में नौकरी कैसे मिलेगी ?

तभी प्यून ने उसका नाम पुकारा और वह अपनी बहन स्नेहा के साथ अंदर जाने लगी लेकिन प्यून ने स्नेहा को अंदर जाने से रोक दिया। स्नेहा ने बताना चाहा कि उसकी बहन अंधी है मगर शालिनी ने उसके हाथ को दबाते हुए इशारा करके रोक दिया और अकेले ही अंदर जाने का मन बना लिया।
शालिनी इसी भ्रम में थी कि वह अंधी है तो क्या हुआ उसके पास शिक्षा की आँखें तो हैं मगर आज उसका भ्रम टूट गया।

उसे कॉल सेंटर की नौकरी के लिए अनुपयोगी माना गया। वह वापस बस में अपने शहर जा रही थी। उसके आंसू रूकने का नाम नही ले रहे थे। वह स्नेहा से कह रही थी कि पिताजी ने अपना सारा पैसा मेरी पढ़ाई में लगा दिया। अब अगर मुझे नौकरी नही मिली तो दो वक्त की रोटी भी नसीब नही होगी।

उसकी ये सारी बातें उसी की सीट के पीछे बैठा राजू सुन रहा था। वह शालिनी के पड़ोस में रहता था और मन ही मन शालिनी को पसंद करता था। मगर वह जानता था कि हीन भावना की शिकार शालिनी कभी उसकी जीवन संगिनी बनने को तैयार नहीं होगी।

राजू को समझ में नही आ रहा था कि वह किस तरह शालिनी की मदद करे।
सोचते-सोचते आखिर उसके दिमाग में एक खतरनाक विचार ने जन्म लिया।
उसने घर आकर शालिनी से मुलाकात की और उससे स्पष्ट शब्दों में कहा कि- मैं तुमसें प्यार करता हूँ। हालांकि मैं सुंदर नही हूँ और शायद तुम्हारी आंखे होती तो तुम मुझे रिजेक्ट कर देतीं।

 

शालिनी की आँखों में आंसू आ गए। उसने कहा-वो पागल होते है जो अपने चाहने वाले को रिजेक्ट कर देते हैं। पर राजू मैं तुमसे प्यार नही कर सकती। तुम अपने लिए कोई आँख वाली लड़की ढूंढ लो।

राजू निराश होकर चला गया। कुछ ही दिनों में उसे किसी शहर में बीमा कंपनी में नौकरी मिल गई और वह गांव छोड़कर चला गया।

एक दिन गांव में कुछ एनजीओ वाले आए। उनकी नज़र शालिनी पर गई तो उन्होंने उसे आशा बंधाई कि उसकी आँखे ठीक हो सकती हैं। हालांकि शालिनी को विश्वास नहीं हो रहा था, लेकिन एनजीओ के लोगों के आश्वासन देने पर उसकी खुशी का ठिकाना न रहा।

अब शालिनी के पास आँखें थी। एक नही दो, जो कि उसकी सुंदरता में चार चाँद लगा रही थी।

इस बार उसने एक एम.एन.सी. कॉल सेंटर में आवेदन किया और उसे आठ लाख के वार्षिक पैकेज की अच्छी नौकरी मिल गई। सब कुछ ठीक था, लेकिन अब उसे राजू की याद आ रही थी। उसने राजू को कई जगह तलाश किया। उसके घर पर भी पूछताछ की मगर राजू का कहीं पता नही चल रहा था।

दूसरी ओर शालिनी की माँ ने उसके लिए रिश्तों की तलाश शुरु कर दी थी, पर शालिनी के दिल में तो राजू ही बसा था। शालिनी की तलाश ने अब एक मिशन का रूप ले लिया था। वह सोचती रहती थी कि जो लड़का एक अंधी लड़की को अपना बनाना चाहता हो उसका दिल कितना सुंदर होगा। वह राजू से मिलकर उसे सरप्राइज देना चाहती थी।

 
वह राजू का हाथ पकड़ कर कहना चाहती थी कि राजू!  चल शादी करतें हैं। पर इसके लिए राजू का मिलना भी तो जरूरी था।

राजू की तलाश अब गुगल, फेसबुक, ट्विटर, वॉट्सएप से बदलकर प्रार्थना तक जा पंहुची थी।

 
एक दिन उसे उसी अंध विद्यालय के एक कार्यक्रम में मुख्य अतिथि बनने का मौका मिला। जिसमें कभी वह खुद पढ़ा करती थी। वह स्नेहा को साथ लेकर स्कूल की सीढ़ियां चढ़ रही थी तभी सीढ़ियां उतर रहा एक विद्यार्थी स्नेहा से टकरा कर गिर गया।

शालिनी दौड़कर उसे उठाने में मदद करने लगी जो कि वास्तव में वही राजू था, जिसने किसी दिन शालिनी से अपने प्रेम का इजहार किया था। जैसे ही स्नेहा की नजर राजू पर पड़ी, उसके मुंह से निकला- राजू तुम ?

राजू ने भी स्नेहा की आवाज पहचान ली, उसने कहा- स्नेहा तुम ? तुम यहां क्या कर रही हो ?

 
स्नेहा ने कहा- पहले ये बताइए कि आप यहां क्या कर रहे हैं ?

राजू ने कहा- एक एक्सीडेंट में मेरी दोनों आँखें चली गई। इसलिए ब्रेल लिपी सीख रहा हूँ।

 
शालिनी का तो दिमाग़ ही चकरा कर रह गया। वह मन ही मन सोचने लगी- “क्या यही राजू है। इतना काला, इतना बदसूरत और आंखे ना होने की वजह से डरावना भी तो लगता है।”

राजू ने स्नेहा से शालिनी के बारे में पूछा तो शालिनी ने तुंरत उसे इशारा किया कि उसके बारे में ना बताए। स्नेहा ने राजू से कहा कि शालिनी तो नही आ पाई।

राजू ने थोड़ा उदास होकर पूछा, अच्छा। पर शालिनी को तो मुख्य अतिथि के रूप में आमंत्रित किया गया था।

शालिनी ने स्नेहा को कुछ इशारे में समझाया। स्नेहा उसकी बात समझ गई और उसने कहा कि- हां ! आमंत्रित किया था पर उसकी आँखों के अंधेपन की वजह से नहीं आ सकती। इसलिए मैं स्कूल मैनेजमेंट को मना करने आई हूँ।

 
राजू की उदासी और गहरी हो गई। उसने स्नेहा से विदा ली और धीमे-धीमे स्कूल की सीढ़ियां उतरने लगा।

उतरते हुए उसने अपना मोबाइल निकाल लिया था और उसमें कुछ नंबर टटोलने लगा। उसे अपने से दूर जाते देख शालिनी ने राहत की सांस ली और स्नेहा से कहा कि हमने झूठ तो बोल दिया पर वह हमारा पड़ोसी है।

यह झूठ ज्यादा दिन नही चलने वाला।  शालिनी ने फैसला किया कि अब उसे मुख्य अतिथि नही बनना है वरना आज ही राजू को पूरा झूठ पता चल जाएगा। शालिनी फिर से स्नेहा के साथ सीढियां उतरने लगी।

उसने देखा कि राजू भी फोन पर गुस्से में किसी से बात करते हुए उतर रहा है। शालिनी ने स्नेहा को समझाया कि दबे कदमों से उतरना, नही तो राजू हमारे कदमों की आहट से भी पहचान लेगा।

दोनों दबे कदमों से राजू के करीब से गुजरी मगर फोन पर चल रही बातचीत से शालिनी को झटका सा लगा। वह थोडा रूककर ध्यान से राजू की बातें सुनने लगी।

राजू फोन पर एनजीओ के लोगों को डांट रहा था कि शालिनी आज भी नही देख पा रही है। वह एनजीओ वालों को ना जाने क्या क्या कहता जा रहा था। आखिर में उसकी आँखों से आंसू निकल पड़े और एनजीओ वालों को बद्दुआ देते हुए कहा-
तुम लागों ने मेरी शालिनी की जिंदगी खराब कर दी। काश ! मेरे पास और आँखें होती तो मैं दोबारा उसे आँखें दान कर देता मगर इस बार तुम्हारे पास नही आता।

 
सारी बातें सुनकर शालिनी की आँखों से आंसू बह निकले, वह राजू से जाकर लिपट गई और माफी माँगने लगी।

उसने जो-जो झूठ स्नेहा से बुलवाया था, वह सब भी बता दिया। राजू ने हँसकर कहा- अरे पगली। मैं तो जानता था कि आँखें मिलने पर तू मुझे रिजेक्ट कर देगी। इसीलिए तो मैं खुद ही तुझसे दूर चला आया।

 
अब मुझे तेरी जरुरत नहीं है क्योंकि जब से आँखें तुझे दी है, तू मेरी आँखों में ही रहती है। शालिनी रोते हुए राजू के गले लग गई।

उसने कहा- पर राजू मुझे तो तेरी जरुरत है। शायद मैं सुंदरता के मायने ही भूल गई थी, मुझे माफ कर दो।

शालिनी, राजू के साथ अंध विद्यालय की सीढ़ियां चढ रही थी, क्योंकि उसे दुनिया के सामने एक ऐसे इंसान को लाना था जो अब उसकी नजर में देवता था।

 

धनेश परमार ‘परम’

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