
भूली बिसरी यादें
भूली बिसरी यादें
“बेटा स्माइल!” ऐसा कहते हुए नंदिनी ने जब अपनी बेटी हिमानी की फोटो अपने मोबाइल से खींचने चाही तब उसकी बेटी हिमानी ने झल्लाते हुए कहा, “क्या मां आप जब देखो फोटो-फोटो बोलती रहती हैं, मुझे अच्छा नहीं लगता ।जब भी कुछ नया पहनो तो आप मोबाइल लेकर सामने आ जाती हो।”
अपनी टीनएजर बेटी की बातें सुनते हए नंदिनी ने थोड़े तीखे अंदाज में जवाब दिया, “अच्छा जब मेरा मोबाइल लेकर गूगल फोटोस में जाकर 10 -12 साल पहले की अपनी तस्वीरें देखती हो तब तो बड़ा मजा आता है ।अरे! मैंने ऐसे कपड़े पहने थे ,मैंने यहां डांस किया था, इसमें मेरे दांत टूटे हुए हैं, ये मैं पढ़ाई कर रही हूं, यह मेरी वह वाली डॉल है जो अम्मा(दादी) ने गिफ्ट की थी, ओह! हम लोग राजस्थान भी घूमने गए थे ?और यह कहां की फोटो है ? वैष्णो देवी !जरा सोचो अगर मैंने उस वक्त यह सारी तस्वीरें नहीं ली होती तो कहां से पुराने फोटो देख देख कर अपनी यादें ताजा करती और इतना खुश होती ।
नंदिनी की बातें सुनकर हिमानी खामोश हो गई और अच्छा ठीक है कहकर एक नकली मुस्कान लेकर वो फोटो खींचने के लिए तैयार हो गई। उसकी देखा देखी कर उसका 4 वर्षीय बेटा अमन भी अपनी दीदी की तरह नंदिनी से बातें करने लगा और कहने लगा मेरी भी फोटो नहीं लो तब नंदिनी ने उसे किसी तरह मनाया और उसकी फोटो लेने के बाद दोनों भाई बहन की फोटो एक साथ ली और हल्की सी मुस्कान के साथ कहा अब जाओ ।
मोबाइल एक किनारे रखकर और बच्चों को बर्थडे पार्टी में भेजने के बाद, वह अतीत की यादों में चली गई और अपनी अलमारी में रखे ड्रॉअर से वही पुराना कैमरा निकाल कर देखने लगी जो उसकी शादी के बाद उसकी ननद ने उसे उपहार में दिया था। उसका कैमरा देखकर सभी लोग सभी लोग कितने खुश थे । वाह 10 मेगापिक्सल सबसे हाई रेंज वाला कैमरा है । नंदिनी और उसका पति का पति करन उस कैमरे को लेकर बहुत खुश थे क्योंकि आज से 15 साल पहले मोबाइल्स में भी सिर्फ 2 मेगापिक्सल वाला in built कैमरा सबसे ज्यादा और बढ़िया क्वालिटी वाला माना जाता था। वे दोनों यह दोनों इस कैमरे को अपने हनीमून में लेकर गए थे इस बात की चिंता छोड़ कर कि पुराने कैमरे की तरह इसमें सिर्फ 32 या 34 फोटो नहीं बल्कि मनचाहे फोटो ले सकते हैं और जो फोटो सही नहीं आई उन्हें डिलीट भी कर सकते हैं ।
कैमरे की बात आई तो नंदिनी कुछ और साल पहले यादों में खो गई, जब दीदी की नौकरी लगने के बाद घर में पहली बार कैमरा आया था। कुछ खास अवसरों पर ही कैमरे में रील को बैठाया जाता था और फिर बड़ी ही सावधानी से कोई अनुभवी व्यक्ति के कर कमलों द्वारा अगले तीन-चार दिनों में उससे फोटो खींचे जाते क्योंकि एक बार रील खरीदने के बाद उसे कुछ दिनों के अंदर ही उपयोग में लाना पड़ता था। मुझे याद है हम भाई-बहन अलग-अलग कपड़े और अलग-अलग जगहों पर जाकर फोटो खिंचवाया करते थे जब तक रील से आखिरी क्लिक क्लिक की आवाज ना आये और यह घोषणा न की जाए कि रील खत्म हो चुकी है। वैसे तो एक रील में 32 या 34 फोटो ही आते थे पर अगर किस्मत अच्छी रहे तो यह आंकड़ा कभी-कभी 36 को भी छू लेता था और उस वक्त हम सभी की खुशी का ठिकाना नहीं रहता था जैसे कोई खजाना ही हाथ में लग गया।
रील समाप्ति के बाद फोटो स्टुडियो जाकर उसे डिवेलप कराने जिम्मेदारी नंदिनी की थी। एक फोटो को डिवेलप कराने के 3 या 4 रुपये लगते थे, 20 या 22 रुपये की 1 एल्बम आती थी। इस तरह 90 से ₹100 में हमारी यादों का पिटारा बनकर तैयार हो जाता था । गर्मी की छुट्टियां में हम जब खेल कर थक जाते थे तब खाली समय में पुरानी एल्बम निकालकर फोटो देखना हमारे सबसे प्रिय मनोरंजन का साधन था।
पर आजकल जैसे जैसे हम आधुनिक सुख सुविधाओं के साथ जीने के आदि हो गए है शायद इन छोटी-छोटी खुशियों की कदर भी कम होती जा रही है। जब कभी मम्मी या भाई पुराने एल्बम देखकर व्हाट्सएप ग्रुप में मेरे साड़ी लहराते हुए फोटो या जींस की पॉकेट में हाथ डाले फोटो भेजते है तो यकीन नहीं होता कि ये वही पुरानी नंदिनी है। वह भी क्या दिन थे जब सुविधाएं कम थी पर घर में लोग ज्यादा, वक्त बहुत था इसलिए यादें भी बहुत पर अब सुख-सुविधाओं की कोई कमी नहीं है, पर उनका उपभोग करने का वक़्त नही है, भीड़ के बीच भी अकेले हैं और यादों के नाम पर है तो गूगल फोटोज़, जो मोबाइल के साथ बदलते रहते हैं।
मायूस सी मुस्कुराहट के साथ बच्चे आते ही होंगे सोचकर नंदिनी उठ खड़ी हुई और किचन में जाकर रोज के कामों में लग गई।
आरती सामंत
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