भीगी बिल्ली

Avatar
sagar gupta

20 Aug 20256 min read

Published in storieslatest

अंकित जो शुरू से शांत स्वभाव का लड़का था, वो ख़ुद को लोगों के बीच असहज महसूस करता था।

वो कहीं किसी के घर जाना पसंद नहीं करता था। ऐसा नहीं था कि उसे लोगों के साथ रहना पसंद नहीं था, पर लोगों के सामने आने पर उसकी दिल की धड़कन राजधानी की गति से भी अधिक तेज़ी से धड़कने लगती थी। मानो उसकी साँसे ही उसका साथ छोड़े जा रही हो।

लोग उसके इस आदत के कारण उसे मासूम, सीधा-साधा जैसे अलग- अलग विशेषणों से अलंकृत करते थे। पर उसे ये बातें अच्छी नहीं लगती थी।

इसी कारण से उसके कभी अच्छे मित्र नहीं बने और महिला मित्र बनना तो काफी दूर की बात थी। अपने स्कूल के अन्य विद्यार्थियों को हँसी- ठिठोली करते हुए देख उसे अपने प्रति घृणा- सी हो गयी थी।

एक बार ट्रेन में अपने परिवार के साथ कहीं जाते हुए उसने किसी यात्री को 'अवचेतन मन की शक्ति' किताब पढ़ते हुए देखा। उसे अब तक चेतन या अवचेतन मन का कोई ज्ञान नहीं था। फ़िर भी उसने डरते- सहमते हुए उस यात्री से धीमी आवाज में उस किताब के बारे में पूछा।

और जब उस यात्री ने उसे अवचेतन मन की शक्ति के कारनामे बताए तो मानो उसके शरीर में एक बिजली- सी कौंध गई। उसे समझ आ गया कि वो अपने जीवन में आमूलचूक परिवर्तन ला सकता है।

उसने जिद्द करके अपने पिता से प्लेटफॉर्म के बुक स्टोर से वो किताब ख़रीद ली। और उसे एक ही रात में खत्म कर डाला। उसे अब एक अलग ऊर्जा का अनुभव अपने शरीर में हो रहा था।

उसने और भी किताबें मँगवा ली और सारी किताबें पढ़ कर खत्म कर डाली।

उसने बॉडी लैंग्वेज को समझा। उसने समझा कि कैसे किसी से बात की जाए। सारी किताबें उसने पढ़ डाली थी और वो तैयार था अब भीड़ में अपनी नई पहचान बनाने के लिए।

उसके एक बचपन के दोस्त ने उसे कॉल करके उसे शादी में आने का निमंत्रण दिया और उसने भी काफी सहजता के साथ उसके निमंत्रण को स्वीकार कर लिया।

वो चाहता था कि जिन- जिन चीजों को उसने पढ़ा और समझा, आज उन सारी बातों को वो अमल में लाकर लोगों को ये दिखा देगा कि वो क्या चीज़ है।

उसने इस बार झूले हुए कमीज की जगह चुस्त कमीज को चुना, जो उसके शरीर में एकदम फिट बैठते थे। उसने पैंट की जगह इस बार जीन्स को तरजीह दी। हाथों में चैन वाला एक ब्रांडेड घड़ी पहना और बालों को जैल से उसने एक अच्छा आकार दिया।

उसने शीशे के सामने खड़े हो कर ख़ुद को बिल्ली से शेर बनते देखा। उसने ख़ुद से शीशे के सामने खड़े होकर अपनी श्रेष्ठता जाहिर की, जो उसने किताबों में पढ़ चुकी थी। अब वो तैयार था जंग जितने के लिए।

वो अपने दोस्त के शादी वाले जगह पहुँच चुका था। अंदर से ऊर्जा उसकी नाभि चक्र से ऊपर फ़ैल रही थी। उसके स्कूल के कुछ पुराने मित्र एक जगह ग्रुप बना कर बातें करते दिखे।

वो ख़ुद वहाँ गया और उनसे बातें शुरू की। पहले तो उसके मित्र उसे पहचान ही नहीं पाए और फ़िर उसकी बातों ने उनका मन मोह लिया। उन्हें लग ही नहीं रहा था कि ये वहीं लड़का है, जो पहले सबसे दूर भागता था। हालांकि उसके दिल में धड़कन अब ही तेज थी, वह शुरू में असहज ही महसूस कर रहा था, पर उसने बुद्धू दिल को समझा लिया, "आल इज वेल"।

वर और वधु दोनों स्टेज पर आ चुके थे। दोनों की तस्वीरें फोटोग्राफर साहब खींचे जा रहे थे, पर अंकित को उनके पोज थोड़े जँच नहीं रहे थे। वर और वधु दोनों एक- दूसरे से थोड़े दूर खड़े थे। इसलिए फोटो में वो पूर्णता नहीं महसूस हो रही थी। अंकित ने अपने दोस्तों के बीच इस बात को रखा और सबने उसकी बात मानी कि कुछ कमी- सी लग रही है। पर किसी ने कुछ कहा नहीं।

अंकित जो कि अब अंतर्मुखी से बहिर्मुखी हो चुका था, उससे रहा नहीं गया और उसने स्टेज के पास जाकर दोनों हाथों से ईशारा करते हुए एक दूसरे के पास आने की बात चिल्ला कर वर-वधु से की, "यार, तुमलोग पास हो जाओ, फोटो अच्छी नहीं आ रही है। "

उसकी चिल्लाहट में इतना जोर था कि लोगों की नज़र उस पर पड़ी। वधु ने भी पहली बार सर उठा कर उसे आँखें छोटी करते हुए देखा। दोनों अब पास आ चुके थे और अंकित अब ख़ुद को परिपूर्ण समझने लगा था। उसने अपने अंदर आई परिवर्तन को साफ़- साफ़ देख लिया था। वो खुश था।

कुछ ही देर में वर-वधु का जयमाला हो चुका था, जिसमें वो एक-दूसरे को माला पहनाते है। अब थी ग्रुप फोटो की बारी।

अंकित और उसके मित्रगण भी अपनी बारी का इंतेज़ार करने लगे। परिवार वालों के बाद अंकित के मित्र ने ईशारा करके स्टेज में आने को कहा। अंकित सबसे आगे था। क्यों न रहे आगे, वहीं तो सबका नेतृत्व कर रहा था।

वो वधु के बगल में खड़ा हो गया। और मित्रगण भी फोटो खिंचवाने एक- दूसरे के अगल- बगल खड़े हो चुके थे। फोटो खिंचवाना पूरा हो चुका था। सब स्टेज से जाने को तैयार थे। तभी अंकित ने अपने मित्र से कहा, " अरे, भाभी से हमारा साक्षात्कार नहीं करवाओगे?"

उस मित्र ने जिसकी शादी हो रही थी, बारी- बारी से सबका परिचय अपनी वधु से करवाया। जैसे ही अंकित की बारी आई, और उसका परिचय उसके मित्र ने करवाया तो अंकित को किताबों में पढ़ी हुई बात याद आ गई और उसने आँख मिलाते हुए झट से अपना हाथ बढ़ाते हुए वधु को बधाई देनी चाही।

थोड़ी देर मानो सब थम गया था। हाथ आगे था, वधु वही तटस्थ खड़ी थी। लोगों की नज़र स्टेज पर मानो जम-सी गई थी। मानो किसी मूवी का क्लाईमैक्स चल रहा हो।

कुछ सेकंड्स बाद वधु ने नीचे देखते हुए आधा- अधूरा हाथ जोड़ लिया। रुकी हुई हवा फ़िर से गतिमान हो चुकी थी। फ़िर से भीड़ की आवाज़ साफ- साफ सुनाई देने लगी थी।

अंकित को मानो सांप डस चुका था। उसे लगने लगा था कि लोगों की नज़र अब बस उस पर थी और उसके इस कृत्य की बातें ही हो रही हो। मानो वे मीडिया बंधु हो, जो कोई कांड होने के बाद गुनाह करने वाले के पीछे पड़ जाते है।

अंकित ने सर नीचे झुका लिया और बिना कुछ कहे लोगों की नजरों से बचते हुए बाहर चला गया क्योंकि उसके लिए अब साँस लेना भी दूभर हो चुका था।

वो अब एक शेर से दुबारा भीगी बिल्ली बन चुका था।

Moral/Immoral of the Story-

सीमाएं तय कीजिए ताकि आत्मसम्मान बना रहे..

One can’t kiss one’s bride or groom during the wedding ceremony; it depends on the culture you are in ;)

Comments (0)

Please login to share your comments.



भीगी बिल्ली

Avatar
sagar gupta

20 Aug 20256 min read

Published in storieslatest

अंकित जो शुरू से शांत स्वभाव का लड़का था, वो ख़ुद को लोगों के बीच असहज महसूस करता था।

वो कहीं किसी के घर जाना पसंद नहीं करता था। ऐसा नहीं था कि उसे लोगों के साथ रहना पसंद नहीं था, पर लोगों के सामने आने पर उसकी दिल की धड़कन राजधानी की गति से भी अधिक तेज़ी से धड़कने लगती थी। मानो उसकी साँसे ही उसका साथ छोड़े जा रही हो।

लोग उसके इस आदत के कारण उसे मासूम, सीधा-साधा जैसे अलग- अलग विशेषणों से अलंकृत करते थे। पर उसे ये बातें अच्छी नहीं लगती थी।

इसी कारण से उसके कभी अच्छे मित्र नहीं बने और महिला मित्र बनना तो काफी दूर की बात थी। अपने स्कूल के अन्य विद्यार्थियों को हँसी- ठिठोली करते हुए देख उसे अपने प्रति घृणा- सी हो गयी थी।

एक बार ट्रेन में अपने परिवार के साथ कहीं जाते हुए उसने किसी यात्री को 'अवचेतन मन की शक्ति' किताब पढ़ते हुए देखा। उसे अब तक चेतन या अवचेतन मन का कोई ज्ञान नहीं था। फ़िर भी उसने डरते- सहमते हुए उस यात्री से धीमी आवाज में उस किताब के बारे में पूछा।

और जब उस यात्री ने उसे अवचेतन मन की शक्ति के कारनामे बताए तो मानो उसके शरीर में एक बिजली- सी कौंध गई। उसे समझ आ गया कि वो अपने जीवन में आमूलचूक परिवर्तन ला सकता है।

उसने जिद्द करके अपने पिता से प्लेटफॉर्म के बुक स्टोर से वो किताब ख़रीद ली। और उसे एक ही रात में खत्म कर डाला। उसे अब एक अलग ऊर्जा का अनुभव अपने शरीर में हो रहा था।

उसने और भी किताबें मँगवा ली और सारी किताबें पढ़ कर खत्म कर डाली।

उसने बॉडी लैंग्वेज को समझा। उसने समझा कि कैसे किसी से बात की जाए। सारी किताबें उसने पढ़ डाली थी और वो तैयार था अब भीड़ में अपनी नई पहचान बनाने के लिए।

उसके एक बचपन के दोस्त ने उसे कॉल करके उसे शादी में आने का निमंत्रण दिया और उसने भी काफी सहजता के साथ उसके निमंत्रण को स्वीकार कर लिया।

वो चाहता था कि जिन- जिन चीजों को उसने पढ़ा और समझा, आज उन सारी बातों को वो अमल में लाकर लोगों को ये दिखा देगा कि वो क्या चीज़ है।

उसने इस बार झूले हुए कमीज की जगह चुस्त कमीज को चुना, जो उसके शरीर में एकदम फिट बैठते थे। उसने पैंट की जगह इस बार जीन्स को तरजीह दी। हाथों में चैन वाला एक ब्रांडेड घड़ी पहना और बालों को जैल से उसने एक अच्छा आकार दिया।

उसने शीशे के सामने खड़े हो कर ख़ुद को बिल्ली से शेर बनते देखा। उसने ख़ुद से शीशे के सामने खड़े होकर अपनी श्रेष्ठता जाहिर की, जो उसने किताबों में पढ़ चुकी थी। अब वो तैयार था जंग जितने के लिए।

वो अपने दोस्त के शादी वाले जगह पहुँच चुका था। अंदर से ऊर्जा उसकी नाभि चक्र से ऊपर फ़ैल रही थी। उसके स्कूल के कुछ पुराने मित्र एक जगह ग्रुप बना कर बातें करते दिखे।

वो ख़ुद वहाँ गया और उनसे बातें शुरू की। पहले तो उसके मित्र उसे पहचान ही नहीं पाए और फ़िर उसकी बातों ने उनका मन मोह लिया। उन्हें लग ही नहीं रहा था कि ये वहीं लड़का है, जो पहले सबसे दूर भागता था। हालांकि उसके दिल में धड़कन अब ही तेज थी, वह शुरू में असहज ही महसूस कर रहा था, पर उसने बुद्धू दिल को समझा लिया, "आल इज वेल"।

वर और वधु दोनों स्टेज पर आ चुके थे। दोनों की तस्वीरें फोटोग्राफर साहब खींचे जा रहे थे, पर अंकित को उनके पोज थोड़े जँच नहीं रहे थे। वर और वधु दोनों एक- दूसरे से थोड़े दूर खड़े थे। इसलिए फोटो में वो पूर्णता नहीं महसूस हो रही थी। अंकित ने अपने दोस्तों के बीच इस बात को रखा और सबने उसकी बात मानी कि कुछ कमी- सी लग रही है। पर किसी ने कुछ कहा नहीं।

अंकित जो कि अब अंतर्मुखी से बहिर्मुखी हो चुका था, उससे रहा नहीं गया और उसने स्टेज के पास जाकर दोनों हाथों से ईशारा करते हुए एक दूसरे के पास आने की बात चिल्ला कर वर-वधु से की, "यार, तुमलोग पास हो जाओ, फोटो अच्छी नहीं आ रही है। "

उसकी चिल्लाहट में इतना जोर था कि लोगों की नज़र उस पर पड़ी। वधु ने भी पहली बार सर उठा कर उसे आँखें छोटी करते हुए देखा। दोनों अब पास आ चुके थे और अंकित अब ख़ुद को परिपूर्ण समझने लगा था। उसने अपने अंदर आई परिवर्तन को साफ़- साफ़ देख लिया था। वो खुश था।

कुछ ही देर में वर-वधु का जयमाला हो चुका था, जिसमें वो एक-दूसरे को माला पहनाते है। अब थी ग्रुप फोटो की बारी।

अंकित और उसके मित्रगण भी अपनी बारी का इंतेज़ार करने लगे। परिवार वालों के बाद अंकित के मित्र ने ईशारा करके स्टेज में आने को कहा। अंकित सबसे आगे था। क्यों न रहे आगे, वहीं तो सबका नेतृत्व कर रहा था।

वो वधु के बगल में खड़ा हो गया। और मित्रगण भी फोटो खिंचवाने एक- दूसरे के अगल- बगल खड़े हो चुके थे। फोटो खिंचवाना पूरा हो चुका था। सब स्टेज से जाने को तैयार थे। तभी अंकित ने अपने मित्र से कहा, " अरे, भाभी से हमारा साक्षात्कार नहीं करवाओगे?"

उस मित्र ने जिसकी शादी हो रही थी, बारी- बारी से सबका परिचय अपनी वधु से करवाया। जैसे ही अंकित की बारी आई, और उसका परिचय उसके मित्र ने करवाया तो अंकित को किताबों में पढ़ी हुई बात याद आ गई और उसने आँख मिलाते हुए झट से अपना हाथ बढ़ाते हुए वधु को बधाई देनी चाही।

थोड़ी देर मानो सब थम गया था। हाथ आगे था, वधु वही तटस्थ खड़ी थी। लोगों की नज़र स्टेज पर मानो जम-सी गई थी। मानो किसी मूवी का क्लाईमैक्स चल रहा हो।

कुछ सेकंड्स बाद वधु ने नीचे देखते हुए आधा- अधूरा हाथ जोड़ लिया। रुकी हुई हवा फ़िर से गतिमान हो चुकी थी। फ़िर से भीड़ की आवाज़ साफ- साफ सुनाई देने लगी थी।

अंकित को मानो सांप डस चुका था। उसे लगने लगा था कि लोगों की नज़र अब बस उस पर थी और उसके इस कृत्य की बातें ही हो रही हो। मानो वे मीडिया बंधु हो, जो कोई कांड होने के बाद गुनाह करने वाले के पीछे पड़ जाते है।

अंकित ने सर नीचे झुका लिया और बिना कुछ कहे लोगों की नजरों से बचते हुए बाहर चला गया क्योंकि उसके लिए अब साँस लेना भी दूभर हो चुका था।

वो अब एक शेर से दुबारा भीगी बिल्ली बन चुका था।

Moral/Immoral of the Story-

सीमाएं तय कीजिए ताकि आत्मसम्मान बना रहे..

One can’t kiss one’s bride or groom during the wedding ceremony; it depends on the culture you are in ;)

Comments (0)

Please login to share your comments.