अधूरी कहानियाँ (भाग-2)

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sagar gupta

18 Dec 20246 min read

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अंशिका के घर पार्टी की तैयारी करने मैं समय से पहले ही पहुँच गया। जब पहुँचा तो पाया कि घर पहले से ही सजा हुआ है। मैं अंशिका के कमरे में पहुँचा, अंशिका अपने खुले अलमीरा के सामने खड़ी थी और शायद लड़कियों का सबसे कठिन काम कर रही थी । सामान्य शब्दों में कहा जाए तो वो ये सोच रही थी कि कौन-से कपड़े पहनूँ।

"अंशु, Happy Birthday यार" मैंने पीछे से बड़े जोर से कहा।
उसका शरीर, मेरे सिंह वाले गर्जन से कंपित हो गया।

"बेटा, तू आ गया। नालायक, अपनी माँ को कोई ऐसे डराता है क्या?" उसने मेरा कान जोर से खींचते हुए कहा।

"अब ये माँ-बेटे का नाटक बंद कर। " मैंने उसकी हाथ को पीछे मरोड़ते हुए कहा।

"अरे यार, दर्द हो रहा। हाथ छोड़ो। सॉरी बाबा, अब नहीं करूंगी ये नाटक"
मैंने उसके कोमल हाथ से अपनी पकड़ ढीली कर दी।

"क्या बात है! आज तो तुम पूरा सूट-बूट पहन कर आये हो। बड़े स्मार्ट लग रहे।" उसने मुझे ऊपर से नीचे देखते हुए कहा।

"मेरी एक ही प्यारी दोस्त है। अब उसके जन्मदिन में स्मार्ट बन कर आना तो बनता ही है। वैसे मैं शुरू से ही स्मार्ट हूँ।" मैंने अपने बाल में हाथ फेरते हुए कहा।

"चल झूठा, साक्षी को इम्प्रेस करने का इरादा है।" उसने आँख मारते हुए कहा।
मैं शर्मा कर कुछ नहीं कह सका।

"अच्छा, सुन ये बताओ कि क्या पहनूँ? ये वाली गाउन पहनूँ या फिर ये सलवार सूट?" उसने अपनी उंगली अपने ओंठ के बीचो-बीच रखते हुए पूछा।

"कुछ भी पहन लें। लगेगी, तुम झल्ली ही।" मैंने उसके बिस्तर पर कूद कर बैठते हुए कहा।

"फट्टू, कभी तो मेरी बात का सीधा-साफ़ जवाब दे दिया कर।" उसने बिस्तर का तकिया मेरी तरफ फेंकते हुए कहा।

उसका बिस्तर का तकिया मेरी तरफ फेंकना, हमारे बीच के महाभारत का कारण बन गया।

दूसरे द्वारा हमला किया गया, इसलिए यह मेरे हथियार उठाने का आधार बन गया और फिर "तकिया महायुद्ध" शुरू हो गई।

कभी उसके तकिये से मैंने अपना सर बचाया, तो कभी उसके तकिये का प्रहार सहा। पर मैं एक योद्धा था, आखिरी सांस् तक लड़ना ही था। जब अंशु के सारे प्रहार निसफ़ल होने लगे, तो उसने ब्रहमास्त्र का प्रयोग करने की ठानी। उसने सोफे में रखा हुआ दो cushions मेरी ओर जोर से फेंका और मैंने उन दोनों cushions को अपने तकिये की मदद से इतनी जोर से मारा कि उनका बाउंड्री के बाहर पहुंचना लाज़मी था। एक Cushion उड़ता हुआ , जल रहे बल्ब से जा टकराया जिससे बल्ब जोर की आवाज़ के साथ गिर कर टूट गया और दूसरा cushion ,अलमीरा के ऊपर रखे हुए अवार्ड्स, जो कि अंशु ने नृत्य में जीते थे, से जा टकराया और सारे अवार्ड्स एक-दूसरे से लड़ते हुए नीचे गिर पड़े। 

मैंने और अंशिका ने आशंकित चेहरे के साथ कमरे की दरवाजे की तरफ देखा, अंपायर इतनी सारी आवाज़ सुनकर दरवाजे के बाहर आ चुका था। अब उसे निर्णय लेना था कि ये छक्का था या बाउंड्री में कैच हो गया। हमदोनों अंपायर की तरफ अपना-अपना कान पकड़ कर उसके निर्णय का इंतज़ार कर रहे थे ।

अंपायर ने दोनों cushions और उससे हुई क्षति का जायजा लिया और गुस्से भरी आँखों से कहा,"तुमदोनों कब सुधरोगे? इतने बड़े हो गए हो, लेकिन हड़कते बच्चों वाली है तुमदोनो की। पूरे रूम को तहस-नहस कर दिया है। अब जो रायता फैलाए हो तुमदोनों, अब इसे तुमदोनों ही साफ करो। इनके ऑफिस से आने के पहले, सब कुछ पहले जैसा हो जाना चाहिए।"

इस तरह अंपायर ने पूरे क्रिकेट के इतिहास में एक नया निर्णय लिया और दोनों टीम को हारा हुआ घोषित कर दिया।

"सॉरी आंटी, पर गलती इसकी थी। इसने ही तकिया पहले फेंका।" मैंने अपने मासूमियत भरे शब्दों में कहा।

"नहीं माँ, गलती इसकी थी। इसने मुझे फट्टू कहा।" अंशिका ने मुँह बनाते हुए कहा।

"अब बस चुप रहो तुमदोनों। तुमदोनों की गलती है। अब ये रूम तुमदोनों ही ठीक करो और अंशिका, जल्दी तैयार हो, मेहमान आने लगेंगे थोड़ी देर में। मुझे तुमदोनों की लड़ाई के अलावे भी बहुत काम है।" उन्होंने कमरे से किचेन की ओर बढ़ते हुए कहा।

उनके जाने के बाद मैंने अंशिका को देखा और अंशिका ने मुझे। फिर हम दोनों एक-दूसरे को देख खिल-खिला कर हँसने लगे।

"झल्ली, तेरी गलती थी। मान ले तू।"

"चल न फट्टू, तू अपनी गलती मानेगा नहीं। मैं ही मान लेती हूं अपनी गलती। अब खुश।"

xxxxxxx 

मैं अब आंटी का हाथ बाँटने, उनके किचेन आ गया था। अंशिका अपने रूम में तैयार हो रही थी। मेहमान आने लगे थे और हमारे दोस्त भी। मैं बार- बार कुछ बहाना करके पार्टी हॉल देख आता था कि कहीं साक्षी तो नहीं आ गई। पर उसका अब तक कोई अता-पता नहीं था।

"मैं आ गई । कैसी लग रही हूँ मैं?" अंशिका ने किचेन में घुसते हुए कहा
मैंने और उसकी मम्मी ने उसकी तरफ पलट कर देखा और उसे देख मैं अवाक रह गया।

गाउन में अंशिका किसी परी से कम नहीं लग रही थी। गुलाबी रंग के गाउन के रंग से मैच करने वाली सैंडल उसने पहनी हुई थी औऱ बाल में सफ़ेद रंग का गुलाब-सा दिखने वाला एक जुड़ा लगाया हुआ था। आँखों के नीचे मोटी तह में लगा हुआ काजल उसके आँखों की शोभा बढ़ा रहा था। उसने थोड़े अजीब-से रंग-बिरंगा मस्करा अपने पलकों में लगा रखा था और ओंठों में गुलाबी रंग का सुनहरा-सा लिपस्टिक लगा रखा था। मैंने आज तक उसका ये रूप कभी नहीं देखा था। वो सिंडरेला से कम नहीं लग रही थी।

"अरे मेरी बेटी, तो परी से कम नहीं लग रही। आ जा, मैं तुम्हें टिका लगा दूं, किसी की नज़र न लगें तुम्हें।" आंटी ने अपने आँखों से काजल की परत अपने उंगली में निकालते हुए कहा।

"माँ, प्लीज मेकअप खराब मत करो। काजल लगा दोगी तो ऐसा लगेगा कि चाँद में दाग लगा है।" अंशिका ने उनका हाथ हटाते हुए अपने बालों को अपने कान के पीछे करते हुए कहा।

"देख रहे हो बेटा। उसे किसी की नज़र न लगे, इसके लिए काजल लगा रही तो बोलती है, मेकअप खराब मत करो।" आंटी ने मेरी ओर शिकायत भरी नजरों से देखते हुए कहा।

"आंटी, क्या कीजियेगा। आजकल की लड़की देखने में बंदरिया लगती है, लेकिन खुद को किसी राजकुमारी से कम नहीं समझती।" मैंने आंटी के पीछे छिपते हुए कहा।

"क्या कहा मोटू तुमने? मैं बंदरिया दिखती, रुक तुझे अभी बताती हूँ।“ किचन में रखे बेलने को उठाकर मेरी ओर बढ़ते हुए अंशिका ने कहा।

"माफ कर दे अंशु। मजाक कर रहा था।"

"न बच्चे न। आज तो तुम्हें नहीं छोडूंगी।

"अरे बस करो तुमदोनों। मेहमान आ गए है। चलो केक काटने। लड़ाई कभी और कर लेना।" आंटी ने मुझे अपने पीछे अंशिका के बेलन से बचाते हुए कहा।

"आज तो तुम बच गया। अगली बार नहीं बचेगा तुम मेरे से, मोटे। अब चलो सब, पार्टी हाल में।" अंशिका ने बेलन रख मेरा हाथ पकड़ कर मुझे खींचते हुए कहा।

xxxxxx

दोस्ती कितनी हसीन होती है। अगर ये न हो, तो जीवन कितना वीरान हो जायेगा न। जब माँ-बाप बात नहीं समझ पाते है, तो अपना दुःख दर्द बाँटने के लिए हमें दोस्त ही मिलते है। हालांकि वो बात को समझ पाए या नहीं, पर उन्हें अपने दर्द बयां करने से ही हमारे दर्द कितने कम हो जाते है। लगता है, मानो, कोई पत्थर सीने से हट गया हो......

सागर गुप्ता

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sagar gupta

18 Dec 20246 min read

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अंशिका के घर पार्टी की तैयारी करने मैं समय से पहले ही पहुँच गया। जब पहुँचा तो पाया कि घर पहले से ही सजा हुआ है। मैं अंशिका के कमरे में पहुँचा, अंशिका अपने खुले अलमीरा के सामने खड़ी थी और शायद लड़कियों का सबसे कठिन काम कर रही थी । सामान्य शब्दों में कहा जाए तो वो ये सोच रही थी कि कौन-से कपड़े पहनूँ।

"अंशु, Happy Birthday यार" मैंने पीछे से बड़े जोर से कहा।
उसका शरीर, मेरे सिंह वाले गर्जन से कंपित हो गया।

"बेटा, तू आ गया। नालायक, अपनी माँ को कोई ऐसे डराता है क्या?" उसने मेरा कान जोर से खींचते हुए कहा।

"अब ये माँ-बेटे का नाटक बंद कर। " मैंने उसकी हाथ को पीछे मरोड़ते हुए कहा।

"अरे यार, दर्द हो रहा। हाथ छोड़ो। सॉरी बाबा, अब नहीं करूंगी ये नाटक"
मैंने उसके कोमल हाथ से अपनी पकड़ ढीली कर दी।

"क्या बात है! आज तो तुम पूरा सूट-बूट पहन कर आये हो। बड़े स्मार्ट लग रहे।" उसने मुझे ऊपर से नीचे देखते हुए कहा।

"मेरी एक ही प्यारी दोस्त है। अब उसके जन्मदिन में स्मार्ट बन कर आना तो बनता ही है। वैसे मैं शुरू से ही स्मार्ट हूँ।" मैंने अपने बाल में हाथ फेरते हुए कहा।

"चल झूठा, साक्षी को इम्प्रेस करने का इरादा है।" उसने आँख मारते हुए कहा।
मैं शर्मा कर कुछ नहीं कह सका।

"अच्छा, सुन ये बताओ कि क्या पहनूँ? ये वाली गाउन पहनूँ या फिर ये सलवार सूट?" उसने अपनी उंगली अपने ओंठ के बीचो-बीच रखते हुए पूछा।

"कुछ भी पहन लें। लगेगी, तुम झल्ली ही।" मैंने उसके बिस्तर पर कूद कर बैठते हुए कहा।

"फट्टू, कभी तो मेरी बात का सीधा-साफ़ जवाब दे दिया कर।" उसने बिस्तर का तकिया मेरी तरफ फेंकते हुए कहा।

उसका बिस्तर का तकिया मेरी तरफ फेंकना, हमारे बीच के महाभारत का कारण बन गया।

दूसरे द्वारा हमला किया गया, इसलिए यह मेरे हथियार उठाने का आधार बन गया और फिर "तकिया महायुद्ध" शुरू हो गई।

कभी उसके तकिये से मैंने अपना सर बचाया, तो कभी उसके तकिये का प्रहार सहा। पर मैं एक योद्धा था, आखिरी सांस् तक लड़ना ही था। जब अंशु के सारे प्रहार निसफ़ल होने लगे, तो उसने ब्रहमास्त्र का प्रयोग करने की ठानी। उसने सोफे में रखा हुआ दो cushions मेरी ओर जोर से फेंका और मैंने उन दोनों cushions को अपने तकिये की मदद से इतनी जोर से मारा कि उनका बाउंड्री के बाहर पहुंचना लाज़मी था। एक Cushion उड़ता हुआ , जल रहे बल्ब से जा टकराया जिससे बल्ब जोर की आवाज़ के साथ गिर कर टूट गया और दूसरा cushion ,अलमीरा के ऊपर रखे हुए अवार्ड्स, जो कि अंशु ने नृत्य में जीते थे, से जा टकराया और सारे अवार्ड्स एक-दूसरे से लड़ते हुए नीचे गिर पड़े। 

मैंने और अंशिका ने आशंकित चेहरे के साथ कमरे की दरवाजे की तरफ देखा, अंपायर इतनी सारी आवाज़ सुनकर दरवाजे के बाहर आ चुका था। अब उसे निर्णय लेना था कि ये छक्का था या बाउंड्री में कैच हो गया। हमदोनों अंपायर की तरफ अपना-अपना कान पकड़ कर उसके निर्णय का इंतज़ार कर रहे थे ।

अंपायर ने दोनों cushions और उससे हुई क्षति का जायजा लिया और गुस्से भरी आँखों से कहा,"तुमदोनों कब सुधरोगे? इतने बड़े हो गए हो, लेकिन हड़कते बच्चों वाली है तुमदोनो की। पूरे रूम को तहस-नहस कर दिया है। अब जो रायता फैलाए हो तुमदोनों, अब इसे तुमदोनों ही साफ करो। इनके ऑफिस से आने के पहले, सब कुछ पहले जैसा हो जाना चाहिए।"

इस तरह अंपायर ने पूरे क्रिकेट के इतिहास में एक नया निर्णय लिया और दोनों टीम को हारा हुआ घोषित कर दिया।

"सॉरी आंटी, पर गलती इसकी थी। इसने ही तकिया पहले फेंका।" मैंने अपने मासूमियत भरे शब्दों में कहा।

"नहीं माँ, गलती इसकी थी। इसने मुझे फट्टू कहा।" अंशिका ने मुँह बनाते हुए कहा।

"अब बस चुप रहो तुमदोनों। तुमदोनों की गलती है। अब ये रूम तुमदोनों ही ठीक करो और अंशिका, जल्दी तैयार हो, मेहमान आने लगेंगे थोड़ी देर में। मुझे तुमदोनों की लड़ाई के अलावे भी बहुत काम है।" उन्होंने कमरे से किचेन की ओर बढ़ते हुए कहा।

उनके जाने के बाद मैंने अंशिका को देखा और अंशिका ने मुझे। फिर हम दोनों एक-दूसरे को देख खिल-खिला कर हँसने लगे।

"झल्ली, तेरी गलती थी। मान ले तू।"

"चल न फट्टू, तू अपनी गलती मानेगा नहीं। मैं ही मान लेती हूं अपनी गलती। अब खुश।"

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मैं अब आंटी का हाथ बाँटने, उनके किचेन आ गया था। अंशिका अपने रूम में तैयार हो रही थी। मेहमान आने लगे थे और हमारे दोस्त भी। मैं बार- बार कुछ बहाना करके पार्टी हॉल देख आता था कि कहीं साक्षी तो नहीं आ गई। पर उसका अब तक कोई अता-पता नहीं था।

"मैं आ गई । कैसी लग रही हूँ मैं?" अंशिका ने किचेन में घुसते हुए कहा
मैंने और उसकी मम्मी ने उसकी तरफ पलट कर देखा और उसे देख मैं अवाक रह गया।

गाउन में अंशिका किसी परी से कम नहीं लग रही थी। गुलाबी रंग के गाउन के रंग से मैच करने वाली सैंडल उसने पहनी हुई थी औऱ बाल में सफ़ेद रंग का गुलाब-सा दिखने वाला एक जुड़ा लगाया हुआ था। आँखों के नीचे मोटी तह में लगा हुआ काजल उसके आँखों की शोभा बढ़ा रहा था। उसने थोड़े अजीब-से रंग-बिरंगा मस्करा अपने पलकों में लगा रखा था और ओंठों में गुलाबी रंग का सुनहरा-सा लिपस्टिक लगा रखा था। मैंने आज तक उसका ये रूप कभी नहीं देखा था। वो सिंडरेला से कम नहीं लग रही थी।

"अरे मेरी बेटी, तो परी से कम नहीं लग रही। आ जा, मैं तुम्हें टिका लगा दूं, किसी की नज़र न लगें तुम्हें।" आंटी ने अपने आँखों से काजल की परत अपने उंगली में निकालते हुए कहा।

"माँ, प्लीज मेकअप खराब मत करो। काजल लगा दोगी तो ऐसा लगेगा कि चाँद में दाग लगा है।" अंशिका ने उनका हाथ हटाते हुए अपने बालों को अपने कान के पीछे करते हुए कहा।

"देख रहे हो बेटा। उसे किसी की नज़र न लगे, इसके लिए काजल लगा रही तो बोलती है, मेकअप खराब मत करो।" आंटी ने मेरी ओर शिकायत भरी नजरों से देखते हुए कहा।

"आंटी, क्या कीजियेगा। आजकल की लड़की देखने में बंदरिया लगती है, लेकिन खुद को किसी राजकुमारी से कम नहीं समझती।" मैंने आंटी के पीछे छिपते हुए कहा।

"क्या कहा मोटू तुमने? मैं बंदरिया दिखती, रुक तुझे अभी बताती हूँ।“ किचन में रखे बेलने को उठाकर मेरी ओर बढ़ते हुए अंशिका ने कहा।

"माफ कर दे अंशु। मजाक कर रहा था।"

"न बच्चे न। आज तो तुम्हें नहीं छोडूंगी।

"अरे बस करो तुमदोनों। मेहमान आ गए है। चलो केक काटने। लड़ाई कभी और कर लेना।" आंटी ने मुझे अपने पीछे अंशिका के बेलन से बचाते हुए कहा।

"आज तो तुम बच गया। अगली बार नहीं बचेगा तुम मेरे से, मोटे। अब चलो सब, पार्टी हाल में।" अंशिका ने बेलन रख मेरा हाथ पकड़ कर मुझे खींचते हुए कहा।

xxxxxx

दोस्ती कितनी हसीन होती है। अगर ये न हो, तो जीवन कितना वीरान हो जायेगा न। जब माँ-बाप बात नहीं समझ पाते है, तो अपना दुःख दर्द बाँटने के लिए हमें दोस्त ही मिलते है। हालांकि वो बात को समझ पाए या नहीं, पर उन्हें अपने दर्द बयां करने से ही हमारे दर्द कितने कम हो जाते है। लगता है, मानो, कोई पत्थर सीने से हट गया हो......

सागर गुप्ता

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