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चाय और एक निशाचर

बात उन दिनों की है जब मुझें कंपनी में करीब दो साल हुए थे। काम और कुछ घरेलू परेशानियों के चलते मैं दूसरी पाली (सेकंड शिफ़्ट) में काम करता था।

बेफिक्री वाली “चाय”

नमिता, शालिनी और नेहा- तीनो सखियाँ काफी दिनों बाद मिलने वाली थी . नमिता घर को सजाने में लगी हुई थी. कितना अच्छा दिन है आज का!

एक चुस्की चाय की कीमत

“चाचा के यहाँ जाना है!” श्रीमती जी का यह घोषणा होते ही , बच्चे चिड़ियों की तरह चहकने लगे। उन्हें तो बस घर से बाहर निकलने का बहाना चाहिए।

भैया, दो कटिंग देना ।

“भैया, दो कटिंग देना।” दुकानदार ने आवाज सुनते, बिना ऊपर देखते, पीतल के बर्तन में ख़ौलते चाय को कलछुल से ऊपर उछाला और अच्छी तरह मिला दिया।