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पुरुषश्रेष्ठ अर्जुन के प्रश्नों पर भगवान् श्रीकृष्ण का निश्चय मत

हे पुरुषश्रेष्ठ अर्जुन! संन्यास और त्याग, इन दोनों में से पहले त्याग के विषय में तू मेरा निश्चय सुन| क्योंकि त्याग सात्त्विक, राजस और तामस भेद से तीन प्रकार का कहा गया है

बरसा बादल प्रेम का (गुरु पूर्णिमा विशेष)

आज गुरु पूर्णिमा है। आषाढ़ मास की पूर्णिमा को ही गुरु पूर्णिमा के रूप में मनाया जाता है। ऐसा क्यों? ज्येष्ठ की पूर्णिमा को क्यों नहीं?

जीवन, मृत्यु क्या है?

संसार शब्द का अर्थ है, जो निरंतर घूमता रहता है, गाड़ी के चाक की तरह। मन भी इसी तरह घूमता रहता है। एक ही विचार बार-बार घूमते रहते हैं।

कर्मयोग

महर्षि बाल्मीकि ने कहा था-‘सदा प्रिय लगने वाली बातें कहने वाले लोग सुलभ हैं। लेकिन सुनने में अप्रिय किन्तु परिणाम में अच्छी लगने वाली बातें कहने तथा सुनने वाले दोनों दुर्लभ हैं|

विषम विचार

सदैव से विषम विचारधराएं समरस प्रवाहित होती रहती हैं। जब सत्तासीन व्यक्ति भोगी, विलासी, सुख-सुविधभोगी तथा सत्तालोलुप हो जाता है तब अनाचार, व्यभिचार भ्रष्टाचार सिर पर चढ़ कर बोलने लगता है।

आसक्ति से मुक्ति

जो व्यक्ति जीते जी आसक्ति के स्वभाव के साथ-साथ इससे जुड़े सभी प्रकार के भय, ईर्ष्या, दुश्चिंता एवं स्वामित्व को समझकर स्वतः छोड़ने में समानता प्राप्त कर लेते हैं- वही जीते जी आसक्ति से मुक्त हो सकते हैं।

सुन्दरकाण्ड

सुन्दरकाण्ड में सब सुन्दर है और सुन्दरकाण्ड की व्याख्या सुनने वाला भी जब उसको अपना लेता है, तो सब सुन्दर हो जाता है|

सदविप्र समाज का संकल्प- रामराज्य

आज का विश्व मानव एक ऐसे मुहाने पर खड़ा है जहाँ से वह आतुर दृष्टि से सद्विप्र द्वारा दिशा निर्देशन चाहता है। वह विज्ञान की भोगवादी संस्कृति से ऊब चुका है।