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दादाजी रॉक्स !

“दादाजी ये… दादाजी वो…” की पुकार से डिब्बा गूंज उठा। सोनल की आश्‍चर्य और उम्मीदभरी नज़रें पुस्तकें टटोलते स्मित पर टिक गईं।

दीवाली बोनस

मैं केवल मोबाइल में बिजी होने का नाटक करता रहा था।
दरअसल, मेरा ध्यान और कान रसोई में पत्नी और शांता के बीच चल रही गरमागरम बातचीत पर थे।