बरसा बादल प्रेम का (गुरु पूर्णिमा विशेष)
आज गुरु पूर्णिमा है। आषाढ़ मास की पूर्णिमा को ही गुरु पूर्णिमा के रूप में मनाया जाता है। ऐसा क्यों? ज्येष्ठ की पूर्णिमा को क्यों नहीं?
आज गुरु पूर्णिमा है। आषाढ़ मास की पूर्णिमा को ही गुरु पूर्णिमा के रूप में मनाया जाता है। ऐसा क्यों? ज्येष्ठ की पूर्णिमा को क्यों नहीं?
हमारे ऋषि बार-बार कहते आ रहे हैं कि जो कुछ आप ब्रह्माण्ड में देख रहे हैं, देखना चाहते हैं वह सभी कुछ इस छोटे से पिण्ड में भी है।
संसार शब्द का अर्थ है, जो निरंतर घूमता रहता है, गाड़ी के चाक की तरह। मन भी इसी तरह घूमता रहता है। एक ही विचार बार-बार घूमते रहते हैं।
महर्षि बाल्मीकि ने कहा था-‘सदा प्रिय लगने वाली बातें कहने वाले लोग सुलभ हैं। लेकिन सुनने में अप्रिय किन्तु परिणाम में अच्छी लगने वाली बातें कहने तथा सुनने वाले दोनों दुर्लभ हैं|
by Sadguru Times · Published March 21, 2023 · Last modified April 15, 2023
सदैव से विषम विचारधराएं समरस प्रवाहित होती रहती हैं। जब सत्तासीन व्यक्ति भोगी, विलासी, सुख-सुविधभोगी तथा सत्तालोलुप हो जाता है तब अनाचार, व्यभिचार भ्रष्टाचार सिर पर चढ़ कर बोलने लगता है।
जो व्यक्ति जीते जी आसक्ति के स्वभाव के साथ-साथ इससे जुड़े सभी प्रकार के भय, ईर्ष्या, दुश्चिंता एवं स्वामित्व को समझकर स्वतः छोड़ने में समानता प्राप्त कर लेते हैं- वही जीते जी आसक्ति से मुक्त हो सकते हैं।
WE MAY REPRESENT LOVE as a triangle, each of the angles of which corresponds to one of its inseparable characteristics.
सुन्दरकाण्ड में सब सुन्दर है और सुन्दरकाण्ड की व्याख्या सुनने वाला भी जब उसको अपना लेता है, तो सब सुन्दर हो जाता है|
आज का विश्व मानव एक ऐसे मुहाने पर खड़ा है जहाँ से वह आतुर दृष्टि से सद्विप्र द्वारा दिशा निर्देशन चाहता है। वह विज्ञान की भोगवादी संस्कृति से ऊब चुका है।
प्रेम- जीवन और समाधि दोनों के लिए समान रूप से उपयोगी है। समाधि को वही उपलब्ध होता है जिसने जीना सीख लिया हो|