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उल्टा नाम का ध्यान

वाल्मीकि की रामायण में कथा आती है- रत्नाकर डाकू को नारद जी ने उलटा नाम जपने को कहा। पर उसे जपना नहीं आया। तब नारद जी ने उसको अभ्यास कराया। यह अभ्यास उच्चारण का नहीं था, वरन् स्फोट का था। वह प्रणव का स्फोट ही था। यह आसान नहीं है।

ब्रह्म मुहूर्त का महत्त्व

पौराणिकों ने उषाकाल को ब्रह्म बेला कहा, बुद्धिवादियों ने गलती से उसे ही ब्रह्ममुहूर्त कहना चाहा। मुहूर्त क्षण भर का होता है-घंटों-घंटों का नहीं होता। ब्रह्म-बेला ढाई घंटे प्रातः में माना जाता है। प्रातः चार से छह बजे सूर्योदय पूर्व का समय।

अजपा साधना : जीवन का महाविज्ञान

अजपा से और कोई श्रेष्ठ नहीं हो सकता। अजपा की स्थिति अत्यन्त चिरस्थायी चिरंतन
विद्यमान है।
यह विधि सार्वभौमिक ऊर्जा के क्षय तथा संरक्षण के सिद्धान्त पर आधारित है। हम श्वास लेते हैं।
वैज्ञानिक इसे ऑक्सीजन कहते हैं।

तन का मन, ब्रह्माण्ड का ब्रह्म

देह में चैतन्य का ही एक नाम है मन। सच कहें तो यह हमारी ही स्वप्नावस्था है। चेतन मन, अवचेतन मन, अचेतन मन और अति चेतन मन को क्रमशः बुद्धि, मन, चित्त, अहंकार नाम से हम जानते हैं। ये आत्मा के ही अलग-अलग व्यापार हैं। इनका अलग से अस्तित्व नहीं है।

पूर्णिमा-अमावस्या का महात्म्य

समय गतिशील है। समय के सद्गुरु काल, स्थान, अवस्था, साधक की स्थिति के अनुसार विधियाँ देते हैं। वही महत्त्वपूर्ण होता है।

दान की महिमा कही न जाये |

अभी बार-बार हमारे यहाँ खबर आ रही है, बड़ी विषम परिस्थिति में हैं | कोरोना घेर रहा है | देखो हमलोग सोचते नहीं हैं कि क्या करें ?

अंतर्यात्रा

निर्विचार होना ही समाधि है। अपने आत्म तत्त्व रमण करना ही समाधि है। तुम अपने में रमण करो। यही मेरी कामना हैं। अपने स्वांसों के माध्यम से अंतर्यात्रा करो। एक समय आएगा कि श्वास रुक जाएगा फिर तुम उसे उपलब्ध हो जाओगे।

प्रेम ही परमात्मा हैं ।

प्रेम शब्द न ही स्त्रीलिंग है, न ही पुलि्ंलग है। आत्मा में भी विभेद नहीं किया जा सकता है। जहाँ भेद दृष्टि है_ वहाँ प्रेम नहीं है-वासना है

जो आत्म बोध करा दे – वही है ‘समय का सद्गुरु’

आप हर बार भोग भोगने के चक्कर में चूक जाते हैं | इस बार मन की न सुनकर गुरु की सुन लें | जीवन का रहस्य खुल जायेगा |