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सदगुरु विश्वमित्र और धनुर्यज्ञ

विश्वमित्र मिथिला पहुँचकर आम के एक सुन्दर बाग में रुक गए। अपने शिष्य से राजा सीरध्वज जनक को आगमन की सूचना भेज दी। राजा अप्रत्याशित सूचना पाकर घबरा गए।

रावण की आत्मा से भेंट

मैंने रामेश्वरम् की यात्रा में इसकी आत्मा से मिलने की चेष्टा की। एक बार जोर से गर्जन-तर्जन की आवाज आई। मेरे शिष्यगण डर गए।

आज्ञा चक्र ही आत्मधाम

आज्ञा चक्र ही आत्म-धाम है। भगवान महावीर आत्मा को ही सब कुछ मान लिए थे। वे देवता-देवी सभी को नकार दिए। परमात्मा शब्द पर भी मौन हो गए।

परमात्मा सदैव हैं साथ।  

हमलोगों को हरदम यह सोचना चाहिए कि हम किसी के एनर्जी फील्ड में नहीं आयेंगे | देखो, प्रत्येक आदमी, प्रत्येक जगह से एक एनर्जी निकल रही है | तुम साधना करके अपने को इतना समझो कि ‘आई एम अ सुपरसोल’ |

भक्त और भगवान

परम प्रिय प्रभु हमें हर समय एक तरफा प्रेम देते हैं। हमारी सुख-सुविधा का ख्याल करते हैं। फिर भी हम उन्हें भूलकर अपने ऊपर ही विश्वास करते हैं। अपने ही पुरुषार्थ पर विश्वास करते हैं। अपनी ही प्रतिभा की बड़ाई करते हैं।