Hindi / Poetry December 2, 2022 by Aparna Ghosh by Aparna Ghosh · Published December 2, 2022 बूढ़ा सा दिसंबर एक बूढ़ा सा दिसंबर, सेंक रहा दुपहरी की धूप, उठा रहा फेंके हुए छिलके, बदल रहा उसका भी स्वरूप।