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दीवाली बोनस

मैं केवल मोबाइल में बिजी होने का नाटक करता रहा था।
दरअसल, मेरा ध्यान और कान रसोई में पत्नी और शांता के बीच चल रही गरमागरम बातचीत पर थे।

दीप्त जग 

मिट्टी, जो सींची गई हर खेत से
हर गाँव से
वो बराबरी से सबका ख़याल करती
कुम्हार के गीले हाथो का शृंगार करती
निखर जाए महि पर

दीवाली पर्व

दियों के उजाले हैं, झिलमिलाती बत्तियाँ
कंदील की लौ जगमगाती हैं
आसमान हो या जमीन रौशन नजर आती है ।