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टूटते रिश्ते

सुबह के साढ़े सात बजे जब ख्याति स्कूल के लिए ‌तैयार हुई तो‌ चुपके से ऊपर मम्मी के बेडरूम में ‌ग‌ई। धीरे से डोर सरकाया देखा तो सारा सामान बिखरा पड़ा था।

घोंचू

कथाकार कहानी शुरू करे.. उससे पहले मैं सारा बात स्पष्ठ कर दूं और कुछ अपने बारे में भी बता दूं।
पहली बात ये कि मैं घोंचू नहीं हूँ। पता नहीं, कहानीकार को मेरे से कौन-सी व्यक्तिगत दुश्मनी थी कि उन्होंने कहानी का शीर्षक ‘घोंचू’ रखा।

यादें

अकल्पित मैंने उसे वहाँ दूर बैठा देख एक हल्की-सी मुस्कान दी। पर उसकी बेरुखी अब भी वैसी ही थी, जितनी 4-5 साल पहले थी। अतीत के गर्त से मैं तो बाहर आ गया था, पर शायद उसने अपने पर काट दिए थे.. शायद वो उससे निकलना ही नहीं चाहती थी।

नैन मटक्का

मैंने इस बार हिम्मत करके उसकी आँखों से अपनी आँखें मिलायी। उसकी आँखें मुझे ही देख रही थी और मेरे द्वारा उसको एकटक देखने से वो थोड़ी सी झेप गई और नजरें नीची कर ली।

अधूरा-सा मैं

यादों का पिटारा, जिसे शौर्य ने कहीं गर्त में छुपा लिया था, वो अब अंशिका के सामने धीरे-धीरे प्रकट हो रहा था।