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Ye बेटियां

आरुषि की तरह उतरती हैं आंगन में
घर बार को उजालों से भर देती हैं।
ये बेटियां ही तो हैं जो
उजड़े उजड़े मकान को घर कर देती हैं।
ये वो प्रार्थना है जो पूरी हुई हैं
खुशी हैं जो जीवन में खुशी भर देती हैं।
पिता का मन ,पिता की बेबसी समझती हैं
मां की सीखों का मतलब समझती हैं
एक घर सजाती हैं तो दूजा घर संभालती हैं
बेटियां रिश्तों का मतलब समझती हैं।
स्वाती की बूंद सी वो मिलती कहां हर किसी को
सबके नसीब में ये नन्ही परियां नहीं होती हैं।
बाबा की लाडली वो भाई की वो दुलारी
दीदी का साया वो मां की परछाई
सबके नसीब में ऐसी बेटियां नहीं होतीं हैं।
~मीनू यतिन
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