Sir, संग चाय

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dineshkumar singh

28 Jul 20242 min read

Published in stories

Sir, संग चाय

“दिनेश, चाय तो लोगे ना?”

सुनते ही मेरे आंखों में एक चमक आ गई। देर हो रही थी और मैं तो सिर्फ ऑफिस के कुछ पेपर सर (Sir) को घर देने आया था। पर चाय नकारना मेरे संस्कार में नही था। और खासकर, सर के साथ चाय पीने का मतलब, उनके साथ कुछ और समय व्यतित करना। मतलब सोने पे सुहागा।

“दिनेश, क्या सोचने लगे? थोड़ा थोड़ा ले लेंगे। मैं भी साथ दूंगा।” अरे वाह, मैं खुश हो गया, फिर सकुचाते हुए कहा ठीक है सर। सर ने थोड़े दूध में, चायपत्ती, शक्कर अदरक, मिलाकर गैस पर चढ़ा दिया और यहाँ वहाँ की बातें शुरू हो गई।

सर के रिटयरमेंट के पहले मैं सर के साथ काम करता था।  सर की सोच काफी साफ़ और गहरी होती थी।  कभी कभी लगता की शायद उन्हें भविष्य की घटनाएं पहले से दिख जाती थी। इसलिए उनसे बात करने के लिए लोग मौका ढूंढते रहते थे।  सर का मीटिंग कैलेंडर हमेशा भरा रहता था। उनका समय मिलना बहुत मुशिकल होता था। पर आज मुझे यह अवसर सर ने ही दे दिया। मैं भी खुलकर बातें करने लगा। अच्छा लग रहा था। चाय भी तैयार हो गई।

सर ने बिस्किट भी प्लेट में लगा दिया। चाय की चुस्कियां भरते हुए, सर भविष्य के बारे में मुझे मार्गदर्शन भी करते जा रहे थे। मै अपनी नई जिम्मेदारियों से थोड़ा असहज था।  पर सर ने उलझे हुए विचारों को सुलझा दिया।  चाय की एक घूँट अंदर जाती और सर के हर शब्द मष्तिस्क में।  मानो जैसे में एक एक घूँट में अपने आने वाले कल को देख रहा हूँ। जो चाय मै २ मिनट में ख़त्म कर सकता था, ना जाने कितने मिनटों तक मुझे वो ताजगी दिए रहे।

काफ़ी देर तक हम बात करते रहे। ऐसा, तनाव रहित, बिना किसी समय सीमा के जिंदगी से जुड़ी बातें करने का एक अमूल्य मौका मिला। चाय का एक और दौर चला।

तकरीबन दो घंटे बाद मैंने सर से जाने की अनुमति ली। सर ने कहा, फिर आना कभी इसी तरह चाय पीने। मैंने कहा जरूर सर, चाय के साथ आपके विचारों का अमृत भी मिलता हैं, जरूर आऊंगा।

आज की चाय जिंदगी भर के लिए यादगार बन गई।

 

दिनेश कुमार सिंह

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“दिनेश, चाय तो लोगे ना?”

सुनते ही मेरे आंखों में एक चमक आ गई। देर हो रही थी और मैं तो सिर्फ ऑफिस के कुछ पेपर सर (Sir) को घर देने आया था। पर चाय नकारना मेरे संस्कार में नही था। और खासकर, सर के साथ चाय पीने का मतलब, उनके साथ कुछ और समय व्यतित करना। मतलब सोने पे सुहागा।

“दिनेश, क्या सोचने लगे? थोड़ा थोड़ा ले लेंगे। मैं भी साथ दूंगा।” अरे वाह, मैं खुश हो गया, फिर सकुचाते हुए कहा ठीक है सर। सर ने थोड़े दूध में, चायपत्ती, शक्कर अदरक, मिलाकर गैस पर चढ़ा दिया और यहाँ वहाँ की बातें शुरू हो गई।

सर के रिटयरमेंट के पहले मैं सर के साथ काम करता था।  सर की सोच काफी साफ़ और गहरी होती थी।  कभी कभी लगता की शायद उन्हें भविष्य की घटनाएं पहले से दिख जाती थी। इसलिए उनसे बात करने के लिए लोग मौका ढूंढते रहते थे।  सर का मीटिंग कैलेंडर हमेशा भरा रहता था। उनका समय मिलना बहुत मुशिकल होता था। पर आज मुझे यह अवसर सर ने ही दे दिया। मैं भी खुलकर बातें करने लगा। अच्छा लग रहा था। चाय भी तैयार हो गई।

सर ने बिस्किट भी प्लेट में लगा दिया। चाय की चुस्कियां भरते हुए, सर भविष्य के बारे में मुझे मार्गदर्शन भी करते जा रहे थे। मै अपनी नई जिम्मेदारियों से थोड़ा असहज था।  पर सर ने उलझे हुए विचारों को सुलझा दिया।  चाय की एक घूँट अंदर जाती और सर के हर शब्द मष्तिस्क में।  मानो जैसे में एक एक घूँट में अपने आने वाले कल को देख रहा हूँ। जो चाय मै २ मिनट में ख़त्म कर सकता था, ना जाने कितने मिनटों तक मुझे वो ताजगी दिए रहे।

काफ़ी देर तक हम बात करते रहे। ऐसा, तनाव रहित, बिना किसी समय सीमा के जिंदगी से जुड़ी बातें करने का एक अमूल्य मौका मिला। चाय का एक और दौर चला।

तकरीबन दो घंटे बाद मैंने सर से जाने की अनुमति ली। सर ने कहा, फिर आना कभी इसी तरह चाय पीने। मैंने कहा जरूर सर, चाय के साथ आपके विचारों का अमृत भी मिलता हैं, जरूर आऊंगा।

आज की चाय जिंदगी भर के लिए यादगार बन गई।

 

दिनेश कुमार सिंह

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