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बेचैन दिल
ऐ दिल, तू क्यों बेचैन रहता है?
क्यों नहीं समझता है,
ये दुनिया ऐसी नहीं चलती, जैसे तू चाहता है,
ऐ दिल तू क्यों दौड़ रहा है, और दौड़ा रहा है?
फ़िलहाल तेरे सवालों का जवाब नहीं मेरे पास,
तेरे बक-बक से परेशान हो गई हूं मैं,
तू क्यों नहीं संभलता है !
औरों को क्यों देखता है !
कागज के फूल को तू बारिश में नहीं बचा पाएगा,
क्यों औरों से झूठी उम्मीद रखता है।
ऐ दिल तू क्यों बेचैन रहता है?
बेह जाने दे कशमकश की सियाही को,
टूट जाने दे सब्र का ये बान। रोक मत खुदको,
आ जाने दे ये तूफ़ान, डर मत बेह जाने दे ये आसमान,
जो होना है, उसे हो जाने दे,
तू सिर्फ बैठ, और देख ये तूफ़ान,
रिश्तों के भावंदर में खुदको बना तू आसान।
ऐ दिल तू क्यों बेचैन रहता है?
जरूरी नहीं कि नदी में गिरने वाले डूब ही जाएं,
कई बार ये कुदरत का तरीका होता है हमें नदी के उस पार पहुंचने का, अगर गिर रही है, तो गिर जाने दे,
टूट रही है, टूट जाने दे,
कोई छूट रहा है, तो छूट जाने दे,
कर दे समर्पण- जिसने तुझे बनाया,
उसने उस नदी को भी तो है बनाया,
ऐ दिल, तू अपनी बेचैनियों को भी सौप दे।
लड़ मत, बस कर दे समर्पण, तू कर दे समर्पण।
स्वेता गुप्ता
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