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सारथी
बिन मांगे मिल जाए ,
तो मांग काहे को आए ।
बिन देखन दिख जाए,
तो नयन काहे को चाहे ।
बिन सुनन औरों की,
तू काहे नाही उनको सुन्न जाए ।
बिन सौपान जो बिगड़ जाए,
तो अफ़सोस काहे मनाए ।
बिन अपेक्षा किये बीना,
तू काहे नाही है प्रीत लगाये ।
बिन बोले तू क्यूँ नाही,
अपनी बात गिरधर तक पहुचाए ?
बिन सन्देह किये बिना,
तू काहे नाही आगे कदम बढ़ाये ।
बिन डरे तू कभी तो,
उन पर सब छोड़ आए ।
बिन छुअन तू काहे,
अपने गिरधर पर विश्वास को खो आए ?
वो तेरा भला किये है,
और भला ही करेंगे ।
बस रख विश्वास ।
रख विश्वास ।
स्वेता गुप्ता
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