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मिलती-जुलती ज़िंदगानी
आज सुनाओ एक कहानी,
कुछ अपनी, कुछ तुम्हारी,
मिलती-जुलती ज़िंदगानी ।
आसमां में है अनेक तारे,
मगर उनमें था कोई खास,
जो दिल के था बहुत पास ।
लड़ पड़ी थी मैं सबसे,
कि चाहिए मुझे वही अब रब से,
थी नहीं कोई परवा अब किसी की ।
मगर टूट गया वो तारा आसमान से,
या यूं कहूं, जो लिखा नहीं था मेरी कहानी में,
हम सब की ज़िंदगानी में,
है ये एक मिलती- जुलती कहानी ।
आओ सुनाओ तुम्हें आगे कि कहानी ...
अश्मंजिश मे चल रही थी मैं ।
कि उस टूटे तारे की यादों में है रहना ?
या रंजिशों को दिल में है छिपाना ?
मगर समय ने मुझमें हिम्मत जुटाई,
और मैं फिर नज़रे उठा कर आसमान में देखने लगी,
और मुझे ये बात समझ में आई ।
कि टूट कर बिखरना है बहुत आसान,
मगर टूटकर, खुदको समेटने वालों की है अपनी अलग पहचान ।
तो अगर ये कहानी मिलती-जुलती है हम सबकी ज़िंदगानी में,
तो ये तय कर लेना कि तुम्हें कहानी के किस भाग में रहना है ।
कल फिर आऊंगी मैं,
इस कहानी के नए तारों के साथ,
जो होगी हम सबकी मिलती-जुलती ज़िंदगानी के साथ ।
रचयिता
स्वेता गुप्ता
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