एक ऐसी सीढ़ी

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sweta gupta

22 Oct 20242 min read

Published in poetrylatest

हूँ मैं आज भी पापा की लाडली और हमेशा रहूंगी,
करते हैं वो मुझे प्यार, यह सबसे कहूंगी ।
हर रिश्ते में, मैंने आपको ढूंढने की कोशिश की है,
और हर बार यही गलती मैंने दोबारा की है ।

जब भी मैं किसी चीज से डरती,
आपकी वो बात मैं खुदसे कहती,
"कभी किसी से नहीं डरना,
मैं हूं तुम्हारे साथ,
ये बात हमेशा याद रखना" ।

जानती हूं बादलों से आप कहीं मुझे देखते होंगे,
जो गिर भी जाओ मैं कभी,
मुझे उठने को दोबारा कहते होंगे ।
काश कोई ऐसी सीढ़ी होती,
जो मुझे आप तक पहुंचा जाती ।

ऊंचाई से डर लगता है मुझे,
पर आपसे मिलने के लिए वो सीढ़ी चढ़ जाती ।
ऊपर पहुंचकर एक बार आपको गले लगाती,
और मैं आपको हर वो बात कह पाती,
जो शायद कभी कह नहीं सकी,
या शायद आपको अच्छे से सुन नहीं पाई ।

तपती धूप मे आप उस घने पेड़ की छाँव थे,
या यूं कहू आप एक कवच,
एक ढाल के तरह हम सब के लिए थे ।
चाहे कुछ भी हो जाए हर मुश्किल का सामना मैं डटकर करूंगी,
पर आपकी कमी हमेशा रहेगी ,
जो यादें हमने बनाई है वो जिंदगी भर रहेंगी ।

आप एक बार कंधे पर हाथ रखदे,
बस इतना ही काफी होगा पापा ।
मैं आपकी तरह बहुत मजबूत हूं ,
इतनी जल्द मैं भी हार नहीं मानूंगी ।
हूं मैं आज भी अपने पापा की लाडली और हमेशा रहूंगी ,
करते हैं वो मुझे प्यार, यह सबसे कहूंगी ।

रचयिता
स्वेता गुप्ता

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22 Oct 20242 min read

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हूँ मैं आज भी पापा की लाडली और हमेशा रहूंगी,
करते हैं वो मुझे प्यार, यह सबसे कहूंगी ।
हर रिश्ते में, मैंने आपको ढूंढने की कोशिश की है,
और हर बार यही गलती मैंने दोबारा की है ।

जब भी मैं किसी चीज से डरती,
आपकी वो बात मैं खुदसे कहती,
"कभी किसी से नहीं डरना,
मैं हूं तुम्हारे साथ,
ये बात हमेशा याद रखना" ।

जानती हूं बादलों से आप कहीं मुझे देखते होंगे,
जो गिर भी जाओ मैं कभी,
मुझे उठने को दोबारा कहते होंगे ।
काश कोई ऐसी सीढ़ी होती,
जो मुझे आप तक पहुंचा जाती ।

ऊंचाई से डर लगता है मुझे,
पर आपसे मिलने के लिए वो सीढ़ी चढ़ जाती ।
ऊपर पहुंचकर एक बार आपको गले लगाती,
और मैं आपको हर वो बात कह पाती,
जो शायद कभी कह नहीं सकी,
या शायद आपको अच्छे से सुन नहीं पाई ।

तपती धूप मे आप उस घने पेड़ की छाँव थे,
या यूं कहू आप एक कवच,
एक ढाल के तरह हम सब के लिए थे ।
चाहे कुछ भी हो जाए हर मुश्किल का सामना मैं डटकर करूंगी,
पर आपकी कमी हमेशा रहेगी ,
जो यादें हमने बनाई है वो जिंदगी भर रहेंगी ।

आप एक बार कंधे पर हाथ रखदे,
बस इतना ही काफी होगा पापा ।
मैं आपकी तरह बहुत मजबूत हूं ,
इतनी जल्द मैं भी हार नहीं मानूंगी ।
हूं मैं आज भी अपने पापा की लाडली और हमेशा रहूंगी ,
करते हैं वो मुझे प्यार, यह सबसे कहूंगी ।

रचयिता
स्वेता गुप्ता

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