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बंद मुठ्ठी
बंद मुठ्ठी में बंधे, कई पुराने पल,
कुछ मीठे, कुछ खट्ठे यादों के पल ।
कुछ दिल को, कुछ रूह को छू जाने वाले पल,
इस बंद मुठ्ठी में छुपे कई पुराने पल ।
जाने कितने बरसों से भर रखें है वो सारे पल,
इस बंद मुठ्ठी में क्यों भरते जा रहे हो और ऐसे पल?
बरसों से चली आ रही है ये क्रिया,
उस बोझ से अब थक चुकी है ये बंद मुठ्ठी ।
चीख़-चीख़ कर कह रही है अब मुझसे,
छोड़ दो ये सारी रंजिशें अब दिल से ।
कर दो अब विदा जो कभी था बहुत खास,
क्योंकि कुदरत नहीं चाहती थी कि वो हो आपके पास ।
आज़माना मेरी ये एक बात ...
बंद मुठी हमेशा रहती अपने ही साथ ।
नहीं होता उसके कोई साथ,
खुल जाओ तुम अंदर से,
मुठी खुलेगी, तभी थामेगा कोई तुम्हारा हाथ ।
तभ लोग आएंगे आपके साथ,
नहीं रहोगे तभ तुम पुरानी यादों के साथ,
खोल दो अब बंद मुठ्ठी ।
कर दो खुदको अब आज़ाद,
बस खोल दो ये बंद मुठ्ठी ।
खोल दो ये बंद मुठ्ठी ।
स्वेता गुप्ता
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