ज़िद

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sweta gupta

19 Oct 20241 min read

Published in poetrylatest

ज़िद थी मेरी,
मुझे नहीं करना वो, जो सब करते हो जैसे,
करना है मुझे कुछ खास,
नहीं बनना मुझे ऐसे-तैसे ।
वक़्त के थपेड़ों ने,
अब मुझे बना दिया है कुछ ऐसे,
जिसे देख आज मैं सोचती हूँ,
वक़्त ने मुझे भी बना दिया ये कैसे !

कमाना था मुझे बस ढेर सारे पैसे,
मासूमियत को जैसे भी बचा लिया है मैंने,
लेकिन नाते रिश्ते सब छूट जाते हैं जैसे-तैसे ।
अब लगता है...
क्या सचमें कमाना है मुझे ढेर सारे पैसे?
रह लुंगी में जितना है उसमें ही ऐसे,
जिंदगी को देखने का नजरिया अब बदल गया है वैसे,
क्या आपका भी मिलता है विचार कुछ मेरे जैसे?

रचयिता
स्वेता गुप्ता

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sweta gupta

19 Oct 20241 min read

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ज़िद थी मेरी,
मुझे नहीं करना वो, जो सब करते हो जैसे,
करना है मुझे कुछ खास,
नहीं बनना मुझे ऐसे-तैसे ।
वक़्त के थपेड़ों ने,
अब मुझे बना दिया है कुछ ऐसे,
जिसे देख आज मैं सोचती हूँ,
वक़्त ने मुझे भी बना दिया ये कैसे !

कमाना था मुझे बस ढेर सारे पैसे,
मासूमियत को जैसे भी बचा लिया है मैंने,
लेकिन नाते रिश्ते सब छूट जाते हैं जैसे-तैसे ।
अब लगता है...
क्या सचमें कमाना है मुझे ढेर सारे पैसे?
रह लुंगी में जितना है उसमें ही ऐसे,
जिंदगी को देखने का नजरिया अब बदल गया है वैसे,
क्या आपका भी मिलता है विचार कुछ मेरे जैसे?

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