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ये कैसा है नशा !
नशा , ये कैसा है नशा ।
मैं सोच में पड़ गई,
आख़िर कितनी नशीली होगी ये नशा ।
ओ नशा, क्या सुन रहा है तू मुझे पहले ये बता?
क्या सचमे मिल रहा है मज़ा, उस बोतल में है जो नशा ?
या उस छोटे से सिगरेट में, जो खुद धुआ होकर है उड़ा ?
क्या तुझे सचमे पता है कि तू किस चीज़ में है फ़सा?
आख़िर है क्या ये नशा, कोई मुझे भी तो ज़रा कोई बता ?
क्या नाकामियाब रिश्तों में मिल रहा है तुम्हें कोई नशा ?
या उस दुःख में सचमे तुम्हें मिल रहा है कोई मज़ा ?
ज़रा अपनी समस्या तो पहले बता ।
क्या दूसरों से आकर्षण पाने का है ये नशा ?
या उस मीठे दर्द में रहने का है ये नशा ?
क्या पद, पैसा, प्रतिष्ठा कमाने का है तुझे नशा ?
या दूसरों से तुलना कर, खुदकी खुशियों को कम करने में आ रहा है मज़ा ?
निकल आओ इस चक्रव्यू से, नहीं रखा है इसमें कुछ भी, कसम से ।
अगर पहुँच रही है तुम तक ये बात, तो छोड़ दो उस नशे का हाथ।
एक बार फिर पूछती हूं...क्या सच में रहना है उस नशे के साथ ?
या करना है एक नया आग़ाज़, ख़ुशियों के साथ ।
रचयिता
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