.jpeg?alt=media&token=0787ca67-989a-4705-955c-95a4face7397)
स्कूल रीयूनियन
दोस्त तो कई थे,
मगर बन जाते हैं कुछ खास।
‘स्कूल रीयूनियन’ के बहाने खुले कई पुरीने राज,
स्कूल के इस सफर में बने कुछ अच्छे दोस्त।
जाने कहां चले गए, जिन्हे हम चिट्ठियां करते थे पोस्ट,
आज कर रही हूँ मैं उन खट्टी-मीठी यादों को पोस्ट।
जैसे मैं हूं ईस छोटी सी कविता की होस्ट,
आज फिर पुरानी यादें ताजा हो गईं यारों।
शायद ही कोई होगा जिसने नहीं खाया होगा सर सैमुअल की छड़ी,
जो कर देता था, एक आवाज पर पूरी क्लास की होश खड़ी।
आज भी याद है कैंटीन का वो आलू-पूरी की सब्जी,
जिन्हे खाकर किया करते थे हम ढेर सारी मस्ती।
आज भी याद आता है वो दिन जब बचाते थे हम पॉकेट-मनी,
स्कूल के बाद किया करते थे हम ख़ूब तफ़रीह।
जाने कितनी लव-स्टोरीज स्कूल के बेंच तक ही रह गईं,
डस्टर की धूल में जाने कहां वो खो गईं ।
रखते थे हम सबका एक अलग ही नया नाम,
जिन्हे सुन हस्ते हुए लगता था क्या नहीं है उनको कोई काम?
कुछ ऐसा भी है नाम,
जिनका अब ना चेहरा याद है, और ना ही नाम।
स्कूल के गेट से बाहर क्या निकले,
की सारी दुनिया ही बदल गयी।
वक़्त ने कुछ ऐसा दस्तक दिया,
कि जिंदगी के इस सफर में, हमें कुछ अलग ही बना दिया।
चल आज फिर उस बेंच पर बैठे हम सब,
और जी ले वो बचपन आज फिर कुछ इस तरह।
कि वो बचपना रह जाए जिंदगी भर,
और हम फिर खिलखिलाएं जिंदगी भर कुछ इस तरह।
चलो मिलकर हँस ले आज हम फिर ज़रा,
जी ले हम फिर वही बचपन,
आज कुछ और ज़रा!
स्वेता गुप्ता
Comments (0)
Please login to share your comments.