
आत्म प्रेम
.png?alt=media&token=756db6d6-4829-4997-b720-1d5728300837)
आत्म प्रेम
काली बदरी से इन नयनों को,
सम्भाल लो कोई दूजा गीला करे,
फिर हो अतिवात,
कहो क्यों ये चाहिए।
लहरों से इन केशों को खुद ही संवार लो,
कोई दूजा उलझा दे,
फिर पड़े गांठ,
कहो क्यों ये चाहिए।
अपने इन अधरों को,
यु हीं मुस्कुराने दो,
कोई दूजा हंसाए फिर हो उपकार,
कहो क्यों ये चाहिए।
स्वयं से पूर्ण कर लो प्रेम तुम,
कोई दूजा करे,
फिर हो अभाव,
कहो क्यों ये चाहिए।
वैष्णवी सिंह
Comments (0)
Please login to share your comments.