दिल की डोर

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sweta gupta

21 Jul 20241 min read

Published in poetry

दिल की डोर

दिल की डोर कुछ ऐसी बंधी हैं उनसे कि हर लम्हा उन्हें याद किया करतें हैं,
दिल जब चाहें, आंखें बंद उन्हें देख लिया करते हैं। 

वो हर लम्हा जो साथ बिताया था, फिर जी लिया करतें हैं,
वो आंखें उनकी, वो हंसी उनकी चुपके से देख लिया करते हैं।

ऐसा तों नहीं कि उनसा कोई और मिला नहीं था हमें कभी,
मगर कोई बात हैं जिसे आज भी ना समझ पाएं हैं।

रब भी ऐसा खेल रचाता हैं जिनसे दिल की डोर गहरी हो, उन्हें ही देने में क्यों कतराता हैं,
वो दूसरों पर प्यार की बारिश लुटाते रहें, हमें एक बूंद को तरसाते रहे,

डर लगता हैं कि उनके आने तक कहीं बहुत देर ना हो जाएं,
जिस राह पर चलना चाहा था उनके साथ कभी,
उस राह से दामन कहीं छूट ना जाए।

वो हर लम्हा जो साथ बिताया था उन्हें जी लिया करते हैं,
दिल जब चाहें, बस आंखें बंद उन्हें देख लिया करते हैं।

 

रचयिता,
स्वेता गुप्ता

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21 Jul 20241 min read

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दिल की डोर

दिल की डोर कुछ ऐसी बंधी हैं उनसे कि हर लम्हा उन्हें याद किया करतें हैं,
दिल जब चाहें, आंखें बंद उन्हें देख लिया करते हैं। 

वो हर लम्हा जो साथ बिताया था, फिर जी लिया करतें हैं,
वो आंखें उनकी, वो हंसी उनकी चुपके से देख लिया करते हैं।

ऐसा तों नहीं कि उनसा कोई और मिला नहीं था हमें कभी,
मगर कोई बात हैं जिसे आज भी ना समझ पाएं हैं।

रब भी ऐसा खेल रचाता हैं जिनसे दिल की डोर गहरी हो, उन्हें ही देने में क्यों कतराता हैं,
वो दूसरों पर प्यार की बारिश लुटाते रहें, हमें एक बूंद को तरसाते रहे,

डर लगता हैं कि उनके आने तक कहीं बहुत देर ना हो जाएं,
जिस राह पर चलना चाहा था उनके साथ कभी,
उस राह से दामन कहीं छूट ना जाए।

वो हर लम्हा जो साथ बिताया था उन्हें जी लिया करते हैं,
दिल जब चाहें, बस आंखें बंद उन्हें देख लिया करते हैं।

 

रचयिता,
स्वेता गुप्ता

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