
भूकंप
भूकंप
सब कुछ ठीक था,
खिली हुई धूप में,
सब अपने काम में
लगे थे।
स्कूल भरा था,
बाजार सजे थे।
सब एकदम सटीक था,
सब कुछ ठीक था।
फिर, धरती कंपकपाई,
हिलने डुलने लगे
मकान,
कहीं से भागो दौड़ो
की आवाज आई।
सब हिल रहा था,
कोई भवन, अपना
स्थल छोड़ रहा था।
धुंए का गुबार
बढ़ता जाता,
आंखों को कुछ भी
नज़र नहीं आता।
कुछ सेकंडों में,
कपकपाहट रूक गईं,
पर तबाही के आगे
जिंदगी झुक गई।
कितना भयानक दृश्य
रच गया,
सब तरफ हाय तौबा मच
गया।
कैसा कोलाहल था,
कुछ समझ में नहीं
आता था।
जहां नज़र दौड़ाओ,
मौत का तांडव
नज़र आता था।
लोग चीखते चिल्लाते थे,
मलबा में, अपनों का
पता लगाते थे।
रचयिता
दिनेश कुमार सिंह
Photo by Sanej Prasad Suwal: https://www.pexels.com/photo/people-looking-at-wrecked-buildings-7806175/
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