सुख दु:ख का साथ

Avatar
sweta gupta

22 Aug 20241 min read

Published in poetry

ग़म कि सीहाई अब धुंधली हुई जाई रे,
खुशियों की बारिशों ने अब ली अंगड़ाई रे।

सुख-दुःख का खेल उसने यह कैसा रचाया रे,
सुख के पीछे-पीछे भाग देख, दुःख पीछे आया रे।

उदासी की चादर अब छोटी हुईं जाई रे,
खुशियों की बादल अब फैली चलीं जाई रे।

कर हवाले, उसके सहारे, फिर देख, वह कैसा रास रचाता रे,
हर सवाल का जवाब, खड़ा वो, तुझे कैसे समझाता रे।

ग़म कि सीहाई अब धुंधली हुई जाई रे,
खुशियों की बारिशों ने अब ली अंगड़ाई रे।।

रचयिता -स्वेता गुप्ता

 

 

Comments (0)

Please login to share your comments.



सुख दु:ख का साथ

Avatar
sweta gupta

22 Aug 20241 min read

Published in poetry

ग़म कि सीहाई अब धुंधली हुई जाई रे,
खुशियों की बारिशों ने अब ली अंगड़ाई रे।

सुख-दुःख का खेल उसने यह कैसा रचाया रे,
सुख के पीछे-पीछे भाग देख, दुःख पीछे आया रे।

उदासी की चादर अब छोटी हुईं जाई रे,
खुशियों की बादल अब फैली चलीं जाई रे।

कर हवाले, उसके सहारे, फिर देख, वह कैसा रास रचाता रे,
हर सवाल का जवाब, खड़ा वो, तुझे कैसे समझाता रे।

ग़म कि सीहाई अब धुंधली हुई जाई रे,
खुशियों की बारिशों ने अब ली अंगड़ाई रे।।

रचयिता -स्वेता गुप्ता

 

 

Comments (0)

Please login to share your comments.