
माँ, तुम कब आओगी ?
माँ, तुम कब आओगी ?
घनघोर अंधेरा है,
दुःख, दारिद्रय ने
घेरा है,
माँ, तुम कब ज्योति
जलाओगी?
माँ, तुम कब
आओगी?
दुर्बल पीड़ित है,
पीड़िता, बस यूँही
जीवित है,
माँ, तुम कब
बचाओगी?
माँ, तुम कब
आओगी?
मन भयभीत है,
सच हार रहा है,
बस झूट की ही
जीत है।
माँ, तुम कैसे यह
परिवर्तन लाओगी?
माँ, तुम कब
आओगी?
दुराचारी, फिर
भारी है,
अबला, फिर बेचारी है।
हे महिषासुर मर्दिनी,
फिर कब संहार
मचाओगी,
माँ, तुम कब
आओगी?
माँ, तुम कब
आओगी?
रचयिता- दिनेश कुमार सिंह
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