एहसास

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sweta gupta

22 Aug 20241 min read

Published in poetry

ना पास हैं वो मेरे, और ना हीं हैं वो दूर,
फिर क्यों लगें आस-पास, हैं उनका सुरूर।

ना देख सकूं मैं उनको, और ना हीं हैं वो आंखों से दूर,
फिर क्यों लगे उनकी, मौजूदगी का एक अलग ही सुकून।

ना रोक सकूं उन एहसासों को, और ना हीं कर सकूं मैं उनको दूर,
फिर क्यों लगें उन जज्बातों का, एक अलग ही फितूर।

ना आस हैं अब उनसे, और ना हैं उनसे कोई मोह,
फिर क्यों लगें उनके दरस का, एक अलग ही ज़ुनून।

 ना बन सकूं मैं राधा, और ना हीं हूं मैं मीरा,
फिर क्यों उनसे बिच्छरन का एक अलग ही हैं पीड़ा।

ना आधा प्रेम था मेरा, मगर कर ना पाई मैं उसको पूरा,
फिर क्यों लागी उनसे लग्न की ऐसी बीड़ा।

रचयिता – स्वेता गुप्ता

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22 Aug 20241 min read

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ना पास हैं वो मेरे, और ना हीं हैं वो दूर,
फिर क्यों लगें आस-पास, हैं उनका सुरूर।

ना देख सकूं मैं उनको, और ना हीं हैं वो आंखों से दूर,
फिर क्यों लगे उनकी, मौजूदगी का एक अलग ही सुकून।

ना रोक सकूं उन एहसासों को, और ना हीं कर सकूं मैं उनको दूर,
फिर क्यों लगें उन जज्बातों का, एक अलग ही फितूर।

ना आस हैं अब उनसे, और ना हैं उनसे कोई मोह,
फिर क्यों लगें उनके दरस का, एक अलग ही ज़ुनून।

 ना बन सकूं मैं राधा, और ना हीं हूं मैं मीरा,
फिर क्यों उनसे बिच्छरन का एक अलग ही हैं पीड़ा।

ना आधा प्रेम था मेरा, मगर कर ना पाई मैं उसको पूरा,
फिर क्यों लागी उनसे लग्न की ऐसी बीड़ा।

रचयिता – स्वेता गुप्ता

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