
मस्ती
मस्ती
हैं मस्ती में रहना,
ये आज मुझे है कहना ।
मस्ती की बारिश में भीगते रहो,
हरदम यूं ही मुस्कुराते रहो।
ग़म, पास आने से कतराएंगे,
खुशियां बाहें फैलाएंगे।
जो बीत चुका, उसे हम क्यों सोचें,
जो आने वाला हैं, उससे हम क्यों डरे।
ना कर अपने मस्ती को कम,
इसी सोच ने की हैं जिंदगी कम।
यहां कोई नहीं है, ये सब हैं एक मेला,
तुम ख़ुद के हो, ये भी हैं एक खेला।
हैं आज मुझे ये कहना,
हर पल बस मस्ती में ही रहना।
रचयिता – स्वेता गुप्ता
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