शिकायत

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meenu yatin

17 Aug 20241 min read

Published in poetry

शिकायत

है औरतें,
नफरत भुगत रहीं हैं
निगाहों का, हाथों का
पागल सी भीड़ का
शिकार हो रहीं हैं, हैं कहाँ वो जो
संभालने चले थे
वो जो कहते हैं
आदमी खुद को
या खुदा समझते थे।

उन सिसकियों
चीखों का कर्ज है
तुम पर,
ये जिम्मेदारी तुम्हारी है
हर चीज पे अगर
दावेदारी तुम्हारी है

ये भीड़ बेगैरत है
नफरत ही इसकी फितरत है
जाने क्या इसकी नीयत है
इस पर है हावी कैसा वहम
मैं ,सिर्फ मैं, का अहम
दोषी और निर्दोष में फर्क
देखता नहीं क्यों
डरी सहमीं बिलखती
आँखों के
टपकते दर्द से

पिघलता नहीं क्यों
क्यों नफरत का जहर
सब ओर घोल देता है
ये कैसा इंसान है खुदा ?
खुद को बेहतर
साबित करने को
इंसानियत भी छोड़ देता है ।

 

मीनू यतिन

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शिकायत

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meenu yatin

17 Aug 20241 min read

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शिकायत

है औरतें,
नफरत भुगत रहीं हैं
निगाहों का, हाथों का
पागल सी भीड़ का
शिकार हो रहीं हैं, हैं कहाँ वो जो
संभालने चले थे
वो जो कहते हैं
आदमी खुद को
या खुदा समझते थे।

उन सिसकियों
चीखों का कर्ज है
तुम पर,
ये जिम्मेदारी तुम्हारी है
हर चीज पे अगर
दावेदारी तुम्हारी है

ये भीड़ बेगैरत है
नफरत ही इसकी फितरत है
जाने क्या इसकी नीयत है
इस पर है हावी कैसा वहम
मैं ,सिर्फ मैं, का अहम
दोषी और निर्दोष में फर्क
देखता नहीं क्यों
डरी सहमीं बिलखती
आँखों के
टपकते दर्द से

पिघलता नहीं क्यों
क्यों नफरत का जहर
सब ओर घोल देता है
ये कैसा इंसान है खुदा ?
खुद को बेहतर
साबित करने को
इंसानियत भी छोड़ देता है ।

 

मीनू यतिन

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