
धूप
धूप
आंखों में उसके भी नींद लिपटी होगी,
पत्तों के कंबल से झांकती वो धूप,
दोपहर को जाने से पहले सिमटी होगी,
बरामदे पर यूं ही धूल फाकती वो धूप,
आम के अचार में स्वाद भरा होगा,
बरनी पर मदमदाती मुस्काती वो धूप,
मिर्ची को सूखते काटी चिमटी होगी,
छत पर बेपरवाह खुराफाती वो धूप,
गपशप के छिलकों में ढलती होगी,
मूंगफली नारंगी में खिलखलाती वो धूप,
मां के दुशाले में जाकर छिपी होगी,
ठंड से सिहरती कपकपाती वो धूप।।
स्वरचित एवं मौलिक
©अपर्णा
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