धूप

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aparna ghosh

11 Aug 20241 min read

Published in poetry

धूप

 

आंखों में उसके भी नींद लिपटी होगी,

पत्तों के कंबल से झांकती वो धूप,

 

दोपहर को जाने से पहले सिमटी होगी,

बरामदे पर यूं ही धूल फाकती वो धूप,

 

आम के अचार में स्वाद भरा होगा,

बरनी पर मदमदाती मुस्काती वो धूप,

 

मिर्ची को सूखते काटी चिमटी होगी,

छत पर बेपरवाह खुराफाती वो धूप,

 

गपशप के छिलकों में ढलती होगी,

मूंगफली नारंगी में खिलखलाती वो धूप,

 

मां के दुशाले में जाकर छिपी होगी,

ठंड से सिहरती कपकपाती वो धूप।।

 

स्वरचित एवं मौलिक

©अपर्णा

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धूप

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aparna ghosh

11 Aug 20241 min read

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धूप

 

आंखों में उसके भी नींद लिपटी होगी,

पत्तों के कंबल से झांकती वो धूप,

 

दोपहर को जाने से पहले सिमटी होगी,

बरामदे पर यूं ही धूल फाकती वो धूप,

 

आम के अचार में स्वाद भरा होगा,

बरनी पर मदमदाती मुस्काती वो धूप,

 

मिर्ची को सूखते काटी चिमटी होगी,

छत पर बेपरवाह खुराफाती वो धूप,

 

गपशप के छिलकों में ढलती होगी,

मूंगफली नारंगी में खिलखलाती वो धूप,

 

मां के दुशाले में जाकर छिपी होगी,

ठंड से सिहरती कपकपाती वो धूप।।

 

स्वरचित एवं मौलिक

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