
बेकसूर दिल
बेकसूर दिल
क्यों जज्बातों के घेरों मे उलझ जाता है
क्यों अतीत के साए से लिपट जाता है
ए दिल तू न मुस्कुरा इतना
वरना तू कुछ खो देगा
पहले ही सह चुका बहुत कुछ तू
अबकी बार तू रो देगा
छलनी हो चूका है तेरा हर हिस्सा
जग में जाहिर हो चूका है तेरा किस्सा
तू हर वक्त खामोश था
बिना किसी शिकायत के
ऐसा तेरे साथ ही क्यों होता है?…
तू ही क्यों छुप-छुप के दिन रात रोता है ?
तू ही क्यों….?
बेकसूर दिल!
नम्रता गुप्ता
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